भरतपुर. उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को याचिका की सुनवाई करते हुए कॉलेजों को पुराना संबद्धता शुल्क जमा कराने की छूट दी है, साथ ही फीस बढ़ाने के संबंध में विश्वविद्यालय के 27 मई 2023 को जारी किए गए आदेश पर रोक लगा दी. न्यायाधीश इंद्रजीत सिंह की बेंच ने सुनवाई करते हुए स्टे दिया है.
कॉलेजों की ओर से अधिवक्ता आराधना स्वामी और मोहित खंडेलवाल ने दलील देते हुए कहा कि वित्त समिति और अकादमिक परिषद ने शुल्क में प्रति सत्र 10 फीसदी बढ़ोतरी करने की सिफारिश की थी, लेकिन महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने 100 फीसदी से ज्यादा फीस वृद्धि कर दी है. विश्वविद्यालय ने विद्यार्थियों की फीस वृद्धि के साथ ही कई अनावश्यक शुल्क भी लगा दिए हैं. कोरोना के बाद इतनी अधिक फीस और शुल्कों में वृद्धि से विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों पर बोझ पड़ेगा.
नहीं लगेगा अतिरिक्त शुल्क : इस संबंध में विश्वविद्यालय के उप कुलसचिव एवं जनसंपर्क अधिकारी डॉ. अरुण कुमार पांडेय ने बताया कि उच्च न्यायालय के आदेश की प्रति मिल गई है. उच्च न्यायालय ने कॉलेजों से वर्ष 2019 का संबद्धता शुल्क लेने के आदेश दिए हैं. इसके अलावा विश्वविद्यालय की ओर से बढ़ाए गए 2200 रुपये के शुल्क पर भी रोक लगा दी गई है.
इस फीस वृद्धि का हो रहा था विरोध : असल में विश्वविद्यालय के कुलसचिव सुभाष चंद्र शर्मा ने गत माह एक आदेश जारी किया, जिसमें लिखा कि नए सत्र से संबद्ध कॉलेजों के छात्रों साथ ही प्रत्येक स्वयंपाठी छात्रों को एल्युमिनी एसोसिएशन के गठन एवं विकास के लिए परीक्षा शुल्क 500 रुपये, विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय के विकास के लिए 500 रुपये, विश्वविद्यालय विकास शुल्क 500 रुपये, स्टूडेंट एक्टिविटी सेंटर की स्थापना के लिए स्टूडेंट वेलफेयर शुल्क 500 रुपये, प्रत्येक विद्यार्थी से प्री रजिस्ट्रेशन शुल्क के रूप में 200 रुपये शुल्क लगाया. प्री रजिस्ट्रेशन शुल्क नामांकन शुल्क के अतिरिक्त होगा. कुल मिलाकर विद्यार्थी पर 2200 रुपये का अतिरिक्त शुल्क का बोझ डाला था. अतिरिक्त शुल्क के विरोध में बीते कई दिनों से एबीवीपी और एनएसयूआई के कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.