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ढोला-मारू का अमर प्रेम- दोहे में सुनाया राजकुमारी का सौंदर्य, प्यार, व्यथा - VALENTINE DAY SPECIAL

आज वैलेंटाइन डे इस खास मौके पर हम आपको बता रहे हैं ढोला-मारू की अमर प्रेम गाथा.

विरह से मिलन तक
विरह से मिलन तक (फोटो ईटीवी भारत अजमेर)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 14, 2025, 11:21 AM IST

Updated : Feb 14, 2025, 2:25 PM IST

अजमेरः राजस्थान शौर्य, भक्ति, त्याग और उपासना की धरती है. इस पवित्र धरा के अतीत में कई प्रेम कहानियां भी हुई हैं, जो आज भी लोकगीतों और दोहों के माध्यम से जीवंत हैं. इन्हीं में ढोला-मारू की प्रेम गाथा भी शामिल है. ढोला मारू किसी कवि या लेखक की कल्पना नहीं है, बल्कि दो ऐसे किरदार हैं जो निश्चल प्रेमी और प्रेमिका के रूप में किस्से, कहानियों, लोक गीतों और दोहों में अमर हो चुके हैं. ढोला मारु की प्रेम गाथा 9वीं सदी की है. 938 ईस्वी में उनकी शादी केकड़ी के बघेरा गांव में होना बताया जाता है. जहा आज भी उनके विवाह का तोरण द्वार और हवन वेदी के चार खंब आज भी मौजूद है.

आज ईटीवी भारत आपको ढोला-मारू के उस स्थान के बारे में बता रहा है, जहां दोनों प्रेमियों का मिलन पहली बार हुआ था. यहीं पर दोनों के दिलों में प्रेम जागृत हुआ था. इनकी निशानियां आज भी मौजूद हैं. हालांकि लंबे कालखंड और सरकारी बेरुखी के कारण ढोला-मारू के प्रेम की गवाह ये स्थल अब वीरान सा हो गया है.

ढोला-मारू की अमर प्रेम गाथा (वीडियो ईटीवी भारत अजमेर)

पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते आ रहे अमर प्रेमगाथाः नरवर गांव के ग्रामीण बताते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी ढोला-मारू की प्रेम कथा सुनते आए हैं. ढोला-मारू पर लिखे गीत और दोहे आज भी प्रचलित हैं. पूर्व सरपंच रामेश्वर लाल गुरु बताते हैं कि नरवर गांव ढोला-मारू का ही गांव है. यहीं पर ढोला-मारू का मिलन हुआ था. नरवर गांव अजमेर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. पूर्व सरपंच बताते हैं कि ढोला-मारू एक निश्छल प्रेमकथा है, जिस पर यकीन कर पाना आज के दौर के लोगों के लिए काफी कठिन है. उन्होंने कहा कि ढोला को लेकर लोगों में कई किंवदंतियां हैं. कुछ लोग ढोला को एमपी के नरवर गढ़ का बताते हैं, जबकि ज्यादातर लोग ढोला को अजमेर के निकट नरवर गांव का ही मानते हैं. वहीं, मारू को जांगलू देश जो अब बीकानेर के पूंगल ठिकाने के राजा पिंगल की पुत्री बताया जाता है. दंतकथा है कि ढोला और मारू की माताएं पुष्कर मेले के दौरान आपस मे मिली थी. यहीं दोनों सखियां बन गई. आपस में बातचीत में दोनों ने अपनी संतान के विवाह संबंध के बारे में भी बात कर ली. उस समय ढोला की 3 वर्ष की आयु थी और मारू छह माह की थी.

ढोला मारू के प्रेम का प्रतीक है कुआं
ढोला मारू के प्रेम का प्रतीक है कुआं (फोटो ईटीवी भारत अजमेर)

विरह से मिलन तकः पूर्व सरपंच रामेश्वर लाल गुरु बताते हैं कि वयस्क होने तक ढोला-मारू ने कभी एक-दूसरे को नहीं देखा था, केवल एक दूसरे के बारे में दूसरों से सुना था. दोनों के दिलों में एक दूसरे से मिलने की तड़प बढ़ने लगी थी. इस बीच ढोला का विवाह उसके माता पिता ने दूसरी कन्या से कर दिया, लेकिन ढोला हमेशा मारू को देखने के लिए ज्यादा उत्सुक था. इस कारण उसकी पत्नी को जलन होती थी. ढोला किसी ना किसी तरह से मारू के बारे में पता करने की कोशिश करता रहता था. इधर, मारू भी उसे दिखने के लिए उत्सुक रहती थी. मारू बड़ी हो चुकी थी, लिहाजा राजा पूंगल की ओर से नरवर बार-बार संदेश भेज कर आग्रह किया जाता रहा कि राजकुमार ढोला आकर मारू को ले जाए, लेकिन यह संदेश ढोला और उनके माता-पिता तक पहुंच ही नहीं पाता था. ढोला की पत्नी संदेश वाहक को मरवा देती थी. वहीं, ढोला-मारू विरह की आग में जल रहे थे. साथ ही असमंजस की स्थिति में भी थे. ढोला को लग रहा था कि परिवार आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति में होने के कारण मारू के घर से संदेश उन्हें नहीं आ रहा है. वहीं, मारू को लग रहा था कि ढोला ने दूसरी शादी कर ली, इसलिए अब वह मारू को नहीं चाहता, लेकिन मारू को उम्मीद थी कि मन में जो अपने प्रियतम की छवि है वह उसे हकीकत में देखेगी.

ढोला-मारू की अमर प्रेम गाथा
ढोला-मारू की अमर प्रेम गाथा (फोटो ईटीवी भारत अजमेर)

पढ़ें: दास्तां-ए-मोहब्बत: प्यार की एक ऐसी कहानी, जो अधूरी होकर भी है मुकम्मल

ढोली ने याचक बन महल के नीचे गया दोहाः जब ढोली के माध्यम से राजा पूंगल से संदेशा नरवर भिजवाया, तब मारू ने संदेश वाहक को कुछ दोहे लिखकर दिए और कहा कि संदेशा सीधे तौर पर नहीं देना है, बल्कि दोहा गाकर ढोला को सुनना है. साथ ही हिदायत दी गई कि किसी को यह भी नहीं बताना कि वह पूंगल से संदेशा लेकर आया है. ढोली काफी चतुर था. उसने वादा किया कि वह ढोला को साथ लेकर ही आएगा, जैसे-तैसे ढोली ढोला के महल के नीचे पंहुचा और मारू के लिखे दोहे को तेज आवाज में गाने लगा. जब ढोला के कानों में गीत की आवाज आई तो ढोली को बुलवाया गया. महल में जब ढोली ने दोहे गाए तो उसमें मारवणी (मारू) का नाम सुनते ही ढोला चौंक गया. ढोली से ढोला ने उसके बारे में पूछा तब ढोली ने सब कुछ बता दिया और साथ ही पूंगल राजा का संदेश भी सुनाया. ढोली ने मारू की सुंदरता के बारे में भी ढोला को बताया. संदेश ने ढोला को मारू से मिलने के लिए बेचैन कर दिया. उस वक्त ही ढोला ढोली के साथ पूंगल के लिए रवाना हो गया और पूंगल से मारू को लाने के बाद दोनों का विवाह केकड़ी में स्थित बघेरा गांव में हुआ. बघेरा गांव में आज भी ढोला मारू के विवाह के प्रतीक के रूप में तोरण और यज्ञ स्थल के चार खंभे लगे हुए हैं.

अमर प्रेम की गजब कहानी
अमर प्रेम की गजब कहानी (फोटो ईटीवी भारत अजमेर)

ढोला मारू के प्रेम का प्रतीक है कुआंः सरपंच धर्मेंद्र चौधरी बताते है कि विवाह के बाद ढोला-मारू एक दूसरे में खोए रहते थे. नरवर गांव में एक कुआं आज भी उनकी अमर प्रेम गाथा का चश्मदीद गवाह है. भवानी खेड़ा और नरवर के बीच सड़क से 50 मीटर झाड़ियों के बीच गहरा कुआं है. कुए के मुंडेर पत्थरों से बनी हुई है. कुएं के बीचों-बीच मोटे पत्थर की पट्टी है. ग्रामीण बताते हैं कि यहीं पर ढोला मारू झूला डालकर घंटों झूला झूलते थे और प्रेम के गीत गाया करते थे. कुएं के समीप ही हाथी थान यानी हाथी घोड़ों को पानी पिलाने की खेली भी बनी हुई है, जिसके अब कुछ अवशेष रह गए हैं. सरकारी बेरुखी ने ढोला-मारू के प्रेम के प्रतीक इस प्राचीन कुएं को भी वीरान बना दिया है.

पढ़ें: वैलेंटाइन डे : डिजिटल हुआ प्यार का इजहार, 80 फीसदी बाजार शिफ्ट हुआ ऑनलाइन पर

लोक गीतों और दोहों में जीवंत है ढोला मारू की प्रेम कथाः ग्रामीण तेजू बताते है कि ढोला मारू का पवित्र प्रेम आज भी लोगों के जेहन में किस्से कहानी के रूप में है. राजस्थान के कई क्षेत्र में ढोला मारू के दोहे और उनकी प्रेम कहानियां में ढले गीत गाए जाते हैं. मंगल गीतों में भी ढोला मारू के गीतों का समावेश होता है. ढोला मारू का प्रेम इतिहास के पन्नों में अमर हो गया है.

अजमेरः राजस्थान शौर्य, भक्ति, त्याग और उपासना की धरती है. इस पवित्र धरा के अतीत में कई प्रेम कहानियां भी हुई हैं, जो आज भी लोकगीतों और दोहों के माध्यम से जीवंत हैं. इन्हीं में ढोला-मारू की प्रेम गाथा भी शामिल है. ढोला मारू किसी कवि या लेखक की कल्पना नहीं है, बल्कि दो ऐसे किरदार हैं जो निश्चल प्रेमी और प्रेमिका के रूप में किस्से, कहानियों, लोक गीतों और दोहों में अमर हो चुके हैं. ढोला मारु की प्रेम गाथा 9वीं सदी की है. 938 ईस्वी में उनकी शादी केकड़ी के बघेरा गांव में होना बताया जाता है. जहा आज भी उनके विवाह का तोरण द्वार और हवन वेदी के चार खंब आज भी मौजूद है.

आज ईटीवी भारत आपको ढोला-मारू के उस स्थान के बारे में बता रहा है, जहां दोनों प्रेमियों का मिलन पहली बार हुआ था. यहीं पर दोनों के दिलों में प्रेम जागृत हुआ था. इनकी निशानियां आज भी मौजूद हैं. हालांकि लंबे कालखंड और सरकारी बेरुखी के कारण ढोला-मारू के प्रेम की गवाह ये स्थल अब वीरान सा हो गया है.

ढोला-मारू की अमर प्रेम गाथा (वीडियो ईटीवी भारत अजमेर)

पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते आ रहे अमर प्रेमगाथाः नरवर गांव के ग्रामीण बताते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी ढोला-मारू की प्रेम कथा सुनते आए हैं. ढोला-मारू पर लिखे गीत और दोहे आज भी प्रचलित हैं. पूर्व सरपंच रामेश्वर लाल गुरु बताते हैं कि नरवर गांव ढोला-मारू का ही गांव है. यहीं पर ढोला-मारू का मिलन हुआ था. नरवर गांव अजमेर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. पूर्व सरपंच बताते हैं कि ढोला-मारू एक निश्छल प्रेमकथा है, जिस पर यकीन कर पाना आज के दौर के लोगों के लिए काफी कठिन है. उन्होंने कहा कि ढोला को लेकर लोगों में कई किंवदंतियां हैं. कुछ लोग ढोला को एमपी के नरवर गढ़ का बताते हैं, जबकि ज्यादातर लोग ढोला को अजमेर के निकट नरवर गांव का ही मानते हैं. वहीं, मारू को जांगलू देश जो अब बीकानेर के पूंगल ठिकाने के राजा पिंगल की पुत्री बताया जाता है. दंतकथा है कि ढोला और मारू की माताएं पुष्कर मेले के दौरान आपस मे मिली थी. यहीं दोनों सखियां बन गई. आपस में बातचीत में दोनों ने अपनी संतान के विवाह संबंध के बारे में भी बात कर ली. उस समय ढोला की 3 वर्ष की आयु थी और मारू छह माह की थी.

ढोला मारू के प्रेम का प्रतीक है कुआं
ढोला मारू के प्रेम का प्रतीक है कुआं (फोटो ईटीवी भारत अजमेर)

विरह से मिलन तकः पूर्व सरपंच रामेश्वर लाल गुरु बताते हैं कि वयस्क होने तक ढोला-मारू ने कभी एक-दूसरे को नहीं देखा था, केवल एक दूसरे के बारे में दूसरों से सुना था. दोनों के दिलों में एक दूसरे से मिलने की तड़प बढ़ने लगी थी. इस बीच ढोला का विवाह उसके माता पिता ने दूसरी कन्या से कर दिया, लेकिन ढोला हमेशा मारू को देखने के लिए ज्यादा उत्सुक था. इस कारण उसकी पत्नी को जलन होती थी. ढोला किसी ना किसी तरह से मारू के बारे में पता करने की कोशिश करता रहता था. इधर, मारू भी उसे दिखने के लिए उत्सुक रहती थी. मारू बड़ी हो चुकी थी, लिहाजा राजा पूंगल की ओर से नरवर बार-बार संदेश भेज कर आग्रह किया जाता रहा कि राजकुमार ढोला आकर मारू को ले जाए, लेकिन यह संदेश ढोला और उनके माता-पिता तक पहुंच ही नहीं पाता था. ढोला की पत्नी संदेश वाहक को मरवा देती थी. वहीं, ढोला-मारू विरह की आग में जल रहे थे. साथ ही असमंजस की स्थिति में भी थे. ढोला को लग रहा था कि परिवार आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति में होने के कारण मारू के घर से संदेश उन्हें नहीं आ रहा है. वहीं, मारू को लग रहा था कि ढोला ने दूसरी शादी कर ली, इसलिए अब वह मारू को नहीं चाहता, लेकिन मारू को उम्मीद थी कि मन में जो अपने प्रियतम की छवि है वह उसे हकीकत में देखेगी.

ढोला-मारू की अमर प्रेम गाथा
ढोला-मारू की अमर प्रेम गाथा (फोटो ईटीवी भारत अजमेर)

पढ़ें: दास्तां-ए-मोहब्बत: प्यार की एक ऐसी कहानी, जो अधूरी होकर भी है मुकम्मल

ढोली ने याचक बन महल के नीचे गया दोहाः जब ढोली के माध्यम से राजा पूंगल से संदेशा नरवर भिजवाया, तब मारू ने संदेश वाहक को कुछ दोहे लिखकर दिए और कहा कि संदेशा सीधे तौर पर नहीं देना है, बल्कि दोहा गाकर ढोला को सुनना है. साथ ही हिदायत दी गई कि किसी को यह भी नहीं बताना कि वह पूंगल से संदेशा लेकर आया है. ढोली काफी चतुर था. उसने वादा किया कि वह ढोला को साथ लेकर ही आएगा, जैसे-तैसे ढोली ढोला के महल के नीचे पंहुचा और मारू के लिखे दोहे को तेज आवाज में गाने लगा. जब ढोला के कानों में गीत की आवाज आई तो ढोली को बुलवाया गया. महल में जब ढोली ने दोहे गाए तो उसमें मारवणी (मारू) का नाम सुनते ही ढोला चौंक गया. ढोली से ढोला ने उसके बारे में पूछा तब ढोली ने सब कुछ बता दिया और साथ ही पूंगल राजा का संदेश भी सुनाया. ढोली ने मारू की सुंदरता के बारे में भी ढोला को बताया. संदेश ने ढोला को मारू से मिलने के लिए बेचैन कर दिया. उस वक्त ही ढोला ढोली के साथ पूंगल के लिए रवाना हो गया और पूंगल से मारू को लाने के बाद दोनों का विवाह केकड़ी में स्थित बघेरा गांव में हुआ. बघेरा गांव में आज भी ढोला मारू के विवाह के प्रतीक के रूप में तोरण और यज्ञ स्थल के चार खंभे लगे हुए हैं.

अमर प्रेम की गजब कहानी
अमर प्रेम की गजब कहानी (फोटो ईटीवी भारत अजमेर)

ढोला मारू के प्रेम का प्रतीक है कुआंः सरपंच धर्मेंद्र चौधरी बताते है कि विवाह के बाद ढोला-मारू एक दूसरे में खोए रहते थे. नरवर गांव में एक कुआं आज भी उनकी अमर प्रेम गाथा का चश्मदीद गवाह है. भवानी खेड़ा और नरवर के बीच सड़क से 50 मीटर झाड़ियों के बीच गहरा कुआं है. कुए के मुंडेर पत्थरों से बनी हुई है. कुएं के बीचों-बीच मोटे पत्थर की पट्टी है. ग्रामीण बताते हैं कि यहीं पर ढोला मारू झूला डालकर घंटों झूला झूलते थे और प्रेम के गीत गाया करते थे. कुएं के समीप ही हाथी थान यानी हाथी घोड़ों को पानी पिलाने की खेली भी बनी हुई है, जिसके अब कुछ अवशेष रह गए हैं. सरकारी बेरुखी ने ढोला-मारू के प्रेम के प्रतीक इस प्राचीन कुएं को भी वीरान बना दिया है.

पढ़ें: वैलेंटाइन डे : डिजिटल हुआ प्यार का इजहार, 80 फीसदी बाजार शिफ्ट हुआ ऑनलाइन पर

लोक गीतों और दोहों में जीवंत है ढोला मारू की प्रेम कथाः ग्रामीण तेजू बताते है कि ढोला मारू का पवित्र प्रेम आज भी लोगों के जेहन में किस्से कहानी के रूप में है. राजस्थान के कई क्षेत्र में ढोला मारू के दोहे और उनकी प्रेम कहानियां में ढले गीत गाए जाते हैं. मंगल गीतों में भी ढोला मारू के गीतों का समावेश होता है. ढोला मारू का प्रेम इतिहास के पन्नों में अमर हो गया है.

Last Updated : Feb 14, 2025, 2:25 PM IST
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