नदबई (भरतपुर). कस्बे से 10 किलोमीटर दूर गांव न्यौठा स्थित लोक देवता बाबू महाराज का मंदिर जनआस्था का बड़ा केंद्र है. यहां साल में एक बार लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है. पिछले 2 सालों से कोरोना महामारी के कारण बाबू बाबा मेला नहीं लग रहा था. इस बार सोमवार को बाबू बाबा का मेला भरेगा. इसकी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.
बाबू महाराज मेला कमेटी सदस्य लखनलाल पाठक और पुरुषोत्तम सिंह गुर्जर ने बताया कि कोरोना काल में बाबू महाराज का मेला स्थगित (Babu Maharaj temple in Nadbai Bharatpur) रहा. लेकिन इस बार मेला सोमवार को भरेगा. इससे पहले रविवार को कलश यात्रा गायत्री परिवार की टोली की ओर से निकाली गई. शाम को दीप यज्ञ होगा. साथ ही सोमवार को मेला भरेगा. सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक भव्य झांकी दर्शन होंगे. साथ ही सुबह 9 से शाम 5 बजे तक अन्नकूट प्रसाद का वितरण होगा.
उन्होंने बताया कि सोमवार को लंबी कूद, गोला फेंक प्रतियोगिता होगी. साथ ही मेडिकल कैंप का आयोजन भी किया जाएगा. मेले में भंडारे का भी आयोजन किया जाता है. प्रसाद के रूप में कढ़ी बाजरा होता है. भंडारे से 1 दिन पहले 11 भट्टियों पर प्रसादी बनना शुरू हो गया है. जिसमें 60 क्विंटल बाजरा,1 क्विंटन चौरा,1 क्विंटल मूंग, 2 क्विंटल देशी घी, 25 किलो तिली, 1 क्विंटल मटर, 1 क्विंटल चौरी, काजू किसमिस अन्नकूट प्रसादी में मिलाया जाता. साथ ही 40 ड्राम छाछ और 5 क्विंटल बेसन से कढ़ी बनाई जा रही है.
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यह है मंदिर का इतिहासः लोक देवता बाबू महाराज का मंदिर करीब 500 साल से भी पुराना होना (Lakkhi Mela in Babu Maharaj temple in Nadbai) बताया जाता है. यहां पिछले 465 साल से अखंड धूना जल रहा है. लोग इसकी रज (भभूती) लेकर जाते हैं. मान्यता है कि धूना की यह रज लगाने से चर्म रोग दूर हो जाता है. मंदिर में बाबू महाराज के अलावा एक दर्जन अन्य देवी देवताओं की भी प्रतिमाएं हैं.
पुरुषोत्तम सिंह गुर्जर और लखनलाल पाठक ने बताया की बाबू महाराज अवतार की भूमि धौलपुर में चंबल (Lakkhi Mela in Nadbai Bharatpur) नदी किनारे है. जहां हजारों साल पहले 80 साल की सिया ने कठोर तप किया, जो कुष्ठ रोग से पीड़ित थी. संतान से वंचित सिया को बाबू महाराज की कृपा से पुत्र प्राप्ति हुई और कुष्ठ रोग से छुटकारा मिला. उन्होंने बताया कि बाबू महाराज के मंदिर पर दूरदराज से चर्म रोग से पीड़ित लोग बाबा की रज लेने के लिए यहां पहुंचते हैं.
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खुदाई में निकली थी प्रतिमा, यह है कहानीः गांव न्यौठा निवासी लखनलाल पाठक और पुरुषोत्तम गुर्जर बताते हैं कि इस मंदिर के संबंध में किवंदती है कि गांव का एक ग्वाला दुधारू मवेशियों को चराने जंगल में जाता था. इन मवेशियों में से एक गाय रोजना पोखर के पास जाती और एक मिट्टी के टीले पर उसके चारों थन से दूध की धार निकलती. ग्वाला टीले के पास गया जहां उसे चांदी का सिक्का मिला. ग्वाले ने घर पर जाकर गाय और सिक्के की घटना बताई. लेकिन किसी को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ. लेकिन ग्वाला जिसके सिर पर हाथ रख देता वह खुश हो जाता था. एक बार गांव की महिलाएं पोखर पर मिट्टी लेने गई. जहां सास-बहू मिट्टी खोद रही थीं. तभी टीले के पास खुदाई करते समय बहू को अंदर से आवाज सुनाई दी. सास-बहू दोनों डर गई. उनके साथ गई एक अन्य महिला ने टीले के खुदाई की. जिसमें प्रतिमा निकली. गांव के लोगों ने पोखर किनारे एक चबूतरा बनाकर उस प्रतिमा को स्थापित कर दिया.