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स्पेशल स्टोरी: खानवा के मैदान में ही राणा सांगा को लगे थे 80 घाव...आज भी देखी जा सकती है गोला-बारूद से छलनी पहाड़ी

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Published : Oct 4, 2019, 5:39 PM IST

राजस्थान वीरों और योद्धाओं की भूमि है. अपनी आन-बान-शान, शौर्य, साहस, कुर्बानी, त्याग और बलिदान के लिए सम्पूर्ण विश्व में राजस्थान ख्यात है. राजस्थान का इतिहास गौरवशाली रहा है. जिस पर हर प्रदेशवासी को गर्व है. यहां के योद्धा अपने राज्य की रक्षा के लिए कभी किसी के सामने नहीं झुकें. ऐसे ही एक योद्धा थे राणा सांगा.

khanwa Battle, khanwa war,खानवा का युद्ध

भरतपुर. इतिहास में महायुद्ध के नाम से विख्यात हुए खानवा युद्ध के बारे में बताते है जहां बाबर और मेवाड़ के शासक राणा सांगा के बीच भयानक युद्ध हुआ. जिसमें दोनों तरफ से लाखों की संख्या में सेना ने भाग लिया. खानवा का मैदान पहली बार युद्ध में इस्तेमाल की गई तकनीकी का भी गवाह रहा है.

खानवा के मैदान में ही राणा सांगा को लगे थे 80 घाव

खानवा के मैदान में आज भी चट्टानों पर गोला बारूद के निशान है. गोलिया से छलनी पहाड़ आसानी से देखें जा सकते है. जिसको देखकर आप अंदाजा लगा सकते है की कितना भीषण युद्ध हुआ होगा. भरतपुर-धौलपुर रोड पर रूपवास के पास ही खानवा गांव है. यहां का कण-कण आज भी इस युद्ध की गवाही देता है. खानवा के मैदान में पहली बार युद्ध में तोपों का इस्तेमाल किया गया था.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: 175 साल से दिन के उजाले में सड़क पर हो रही बिना संवाद की रामलीला...आज भी रोमांच बरकरार

मेवाड़ के राणा सांगा और बाबर के मध्य 17 मार्च 1527 को युद्ध लड़ा गया था.युद्ध करते हुए राणा सांगा की एक आंख, एक हाथ, एक पैर क्षतिग्रस्त हो गए थे और उनके शरीर में करीब 80 जख्म आए थे. बावजूद राणा सांगा युद्ध मैदान में डटे रहे. भारत में मुगलों के प्रवेश को रोकने के लिए ये युद्ध हुआ था. युद्ध में राणा सांगा के बेहोश होने के बाद उनके सरदार उनको दूर एक सुरक्षित स्थान पर ले गए. जहां उनका इलाज कराया गया. लेकिन थोड़ा ठीक होने पर राणा सांगा ने फिर से युद्द करने की इच्छा जताई थी. तभी एक असंतुष्ट उनके सरदार ने उनको जहर दे दिया था. जिसके कारण उनकी 1528 में मौत हो गयी थी और इस खानवा युद्ध को बाबर जीत गया था.

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चट्टानों पर गोलियों के निशान

इतिहासकारों की माने तो खानवा एक गांव था. जो आज भरतपुर जिले में आता है. जो उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के फतेहपुर सीकरी के पास है. लेकिन खानवा युद्ध के समय यह युद्ध स्थल खानवा फतेहपुर सीकरी में आता था और कहा जाता है की पहले वहां सिकरवार जाटों का राज था. इसलिए उसे सीकरी नाम दिया गया. बाद में बाबर द्वारा खानवा युद्ध को फतेह करने के बाद सीकरी का नाम फतेहपुर सीकरी रखा गया. वहीं खानवा की पहाड़ियां पर जो खानवा युद्ध की भूमि थी. वहां पर राज्य सरकार की तरफ से स्मारक भी बनाया गया है. बता दें कि खानवा गांव में साल 2007 में राणा सांगा स्मारक बनाया गया था. पहाड़ी पर स्थित इस ऐतिहासिक स्मारक की तस्वीर वीर योद्धा राणा सांगा की वीरता का बखान करती है. स्मारक स्थल पर इस युद्ध में भाग लेने वाले योद्धाओं की मूर्तियां भी वीरों की गाथा का गुणगान करती है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: IT सलाहाकार ने फॉर्च्यूनर को बनाई एम्बुलेंस...अबतक 14 लोगों की बचाई जान

राणा सांगा अपने पिता रायमल की मौत के बाद मेवाड़ के शासक बने थे. जिन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया और राजपूतों को इकठ्ठा करने का काम किया साथ ही दिल्ली पर शासन करने वाले लोदी राजवंश को हराया था. जिसमें उन्होंने काबुल आदेश भेजकर बाबर को साथ देने के लिए भी बुलाया था. मगर बाद में राज्य विस्तार की लालसा के चलते दोनों के बीच खाई पैदा हो गयी और 1527 में पानीपत युद्ध की सफलता के बाद इन दोनों के बीच खानवा का युद्द हुआ.

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बाबर के मन में राणा का भय

भगवान श्रीकृष्ण की भक्त मीराबाई राणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराम की पत्नी थी. बाद में इसी पीड़ी के महाराणा प्रताप और बाबर के पौत्र अकबर के बीच भी हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था. राजस्थान की इस मिट्टी में जन्म लेने वाले वीर योद्धाओं की कभी भी कमी नहीं रही. जिन्होंने अपनी ताकत का लोह हमेशा मनवाया था.

प्रख्यात इतिहासकार मजूमदार ने भी खानवा युद्ध का वर्णन किया है. जहां उन्होंने इस युद्द पर काफी अच्छा प्रकाश डाला है और बताया गया है की आज जो खानवा गांव है. वहां एक पहाड़ी आज भी स्थित है. जहां राणा सांगा ने अपनी सेना के साथ डेरा डाला था. जहां पहाड़ी पर आज भी बाबर द्वारा चलाई गयी तोपों के गोलों के निशान देखे जा सकते है.

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राणा सांगा का संस्कृति प्रतिष्ठापना

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: स्वर्णनगरी के युवा ने बनाया एक ऐसा अनूठा डिवाइस जो पानी को व्यर्थ बहने से रोकेगा

कई अंग्रेज विद्वानों ने भी अपने गजेटियर में खानवा युद्ध का वर्णन किया है. जो युद्ध के बाद यहां देखने के लिए आये थे और वे गजेटियर आज भी लन्दन स्थित लाइब्रेरी में रखे हुए है. दरअसल बाबर की राज्य विस्तार लालसा के चलते राणा सांगा से मतभेद हो गया था. क्योंकि राणा सांगा देश में हिंदुत्व स्थापित करना चाहते थे. मगर बाबर द्वारा पूरे देश पर अपनी बादशाहत स्थापित करनी थी. जिसके चलते दोनों के बीच खानवा युद्ध हुआ. जहां राणा सांगा बेहद गंभीर घायल हो गए थे और उसके बाबजूद वह फिर से युद्ध करना चाहते थे. जिसके चलते खुद राणा सांगा के किसी सरदार ने ही उनकी विष देकर हत्या कर दी थी.

भरतपुर. इतिहास में महायुद्ध के नाम से विख्यात हुए खानवा युद्ध के बारे में बताते है जहां बाबर और मेवाड़ के शासक राणा सांगा के बीच भयानक युद्ध हुआ. जिसमें दोनों तरफ से लाखों की संख्या में सेना ने भाग लिया. खानवा का मैदान पहली बार युद्ध में इस्तेमाल की गई तकनीकी का भी गवाह रहा है.

खानवा के मैदान में ही राणा सांगा को लगे थे 80 घाव

खानवा के मैदान में आज भी चट्टानों पर गोला बारूद के निशान है. गोलिया से छलनी पहाड़ आसानी से देखें जा सकते है. जिसको देखकर आप अंदाजा लगा सकते है की कितना भीषण युद्ध हुआ होगा. भरतपुर-धौलपुर रोड पर रूपवास के पास ही खानवा गांव है. यहां का कण-कण आज भी इस युद्ध की गवाही देता है. खानवा के मैदान में पहली बार युद्ध में तोपों का इस्तेमाल किया गया था.

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मेवाड़ के राणा सांगा और बाबर के मध्य 17 मार्च 1527 को युद्ध लड़ा गया था.युद्ध करते हुए राणा सांगा की एक आंख, एक हाथ, एक पैर क्षतिग्रस्त हो गए थे और उनके शरीर में करीब 80 जख्म आए थे. बावजूद राणा सांगा युद्ध मैदान में डटे रहे. भारत में मुगलों के प्रवेश को रोकने के लिए ये युद्ध हुआ था. युद्ध में राणा सांगा के बेहोश होने के बाद उनके सरदार उनको दूर एक सुरक्षित स्थान पर ले गए. जहां उनका इलाज कराया गया. लेकिन थोड़ा ठीक होने पर राणा सांगा ने फिर से युद्द करने की इच्छा जताई थी. तभी एक असंतुष्ट उनके सरदार ने उनको जहर दे दिया था. जिसके कारण उनकी 1528 में मौत हो गयी थी और इस खानवा युद्ध को बाबर जीत गया था.

khanwa Battle, khanwa war,खानवा का युद्ध
चट्टानों पर गोलियों के निशान

इतिहासकारों की माने तो खानवा एक गांव था. जो आज भरतपुर जिले में आता है. जो उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के फतेहपुर सीकरी के पास है. लेकिन खानवा युद्ध के समय यह युद्ध स्थल खानवा फतेहपुर सीकरी में आता था और कहा जाता है की पहले वहां सिकरवार जाटों का राज था. इसलिए उसे सीकरी नाम दिया गया. बाद में बाबर द्वारा खानवा युद्ध को फतेह करने के बाद सीकरी का नाम फतेहपुर सीकरी रखा गया. वहीं खानवा की पहाड़ियां पर जो खानवा युद्ध की भूमि थी. वहां पर राज्य सरकार की तरफ से स्मारक भी बनाया गया है. बता दें कि खानवा गांव में साल 2007 में राणा सांगा स्मारक बनाया गया था. पहाड़ी पर स्थित इस ऐतिहासिक स्मारक की तस्वीर वीर योद्धा राणा सांगा की वीरता का बखान करती है. स्मारक स्थल पर इस युद्ध में भाग लेने वाले योद्धाओं की मूर्तियां भी वीरों की गाथा का गुणगान करती है.

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राणा सांगा अपने पिता रायमल की मौत के बाद मेवाड़ के शासक बने थे. जिन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया और राजपूतों को इकठ्ठा करने का काम किया साथ ही दिल्ली पर शासन करने वाले लोदी राजवंश को हराया था. जिसमें उन्होंने काबुल आदेश भेजकर बाबर को साथ देने के लिए भी बुलाया था. मगर बाद में राज्य विस्तार की लालसा के चलते दोनों के बीच खाई पैदा हो गयी और 1527 में पानीपत युद्ध की सफलता के बाद इन दोनों के बीच खानवा का युद्द हुआ.

khanwa Battle, khanwa war,खानवा का युद्ध
बाबर के मन में राणा का भय

भगवान श्रीकृष्ण की भक्त मीराबाई राणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराम की पत्नी थी. बाद में इसी पीड़ी के महाराणा प्रताप और बाबर के पौत्र अकबर के बीच भी हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था. राजस्थान की इस मिट्टी में जन्म लेने वाले वीर योद्धाओं की कभी भी कमी नहीं रही. जिन्होंने अपनी ताकत का लोह हमेशा मनवाया था.

प्रख्यात इतिहासकार मजूमदार ने भी खानवा युद्ध का वर्णन किया है. जहां उन्होंने इस युद्द पर काफी अच्छा प्रकाश डाला है और बताया गया है की आज जो खानवा गांव है. वहां एक पहाड़ी आज भी स्थित है. जहां राणा सांगा ने अपनी सेना के साथ डेरा डाला था. जहां पहाड़ी पर आज भी बाबर द्वारा चलाई गयी तोपों के गोलों के निशान देखे जा सकते है.

khanwa Battle, khanwa war,खानवा का युद्ध
राणा सांगा का संस्कृति प्रतिष्ठापना

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कई अंग्रेज विद्वानों ने भी अपने गजेटियर में खानवा युद्ध का वर्णन किया है. जो युद्ध के बाद यहां देखने के लिए आये थे और वे गजेटियर आज भी लन्दन स्थित लाइब्रेरी में रखे हुए है. दरअसल बाबर की राज्य विस्तार लालसा के चलते राणा सांगा से मतभेद हो गया था. क्योंकि राणा सांगा देश में हिंदुत्व स्थापित करना चाहते थे. मगर बाबर द्वारा पूरे देश पर अपनी बादशाहत स्थापित करनी थी. जिसके चलते दोनों के बीच खानवा युद्ध हुआ. जहां राणा सांगा बेहद गंभीर घायल हो गए थे और उसके बाबजूद वह फिर से युद्ध करना चाहते थे. जिसके चलते खुद राणा सांगा के किसी सरदार ने ही उनकी विष देकर हत्या कर दी थी.

Intro:इतिहास में राजस्थान बीरों की भूमि के लिए जाना जाता है जहाँ अनेकों वीर योद्दा हुए जिन्होंने अपनी आन बान सान व् अपने राज्य की रक्षा के लिए कभी किसी के सामने नहीं झुके--

इतिहास में महायुध्द के नाम से विख्यात हुए खानवा युद्द के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे है जहाँ बाबर और मेवाड़ के शासक राणा सांगा के बीच भयानक युद्द हुआ जिसमे दोनों तरफ से लाखों सेना ने भाग लिया और उस युद्द में पहली बार बाबर की तरफ से तोपों का प्रयोग किया गया था---

खानवा राजस्थान के भरतपुर जिले में रूपवास तहसील में स्थित एक छोटा सा गाँव है जो आगरा से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ से फतेहपुर सिकरी भी काफी पास है जहाँ पहाड़ियां स्थित है और खानवा युद्द भूमि पर राज्य सरकार की तरफ से स्मारक भी बनाया गया है जहाँ देशी विदेशी पर्यटक यहाँ आकर इस खानवा युद्द के बारे में जानकारी लेते है---

इतिहासकारों की माने तो खानवा एक गाँव था जो आज भरतपुर जिले में आता है जहाँ से उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के फतेहपुर सीकरी के पास है लेकिन खानवा युद्द के समय यह युद्द स्थल खानवा फतेहपुर सीकरी में आता था और कहा जाता है की पहले वहां सिकरवार जाटों का राज था इसलिए उसे सीकरी नाम दिया गया बाद में बाबर द्वारा खानवा युद्द को फ़तेह करने के बाद सीकरी का नाम फतेहपुर सीकरी रखा गया जिसे आज भी फतेहपुर सीकरी के नाम से ही जाना जाता है---  

खानवा युद्द 17 मार्च 1527 में शुरू हुआ था जहाँ मेवाड़ शासक राणा सांगा और आक्रांता बाबर के बीच भीषण युद्द हुआ था जहाँ युद्द करते हुए राणा सांगा की एक आँख,एक हाथ,एक पैर क्षतिग्रस्त हो गए थे और उनके शरीर में करीब 80 जख्म आये थे जहाँ बेहोश होने के बाद उनके सरदार उनको दूर एक सुरक्षित स्थान पर ले गए जहाँ उनका इलाज कराया गया लेकिन थोड़ा ठीक होने पर राणा सांगा ने फिर से युद्द करने की इच्छा जताई थी तभी एक असंतुष्ट उनके सरदार ने उनको जहर दे दिया था जिसके कारण उनकी 1528 में मौत हो गयी थी और इस खानवा युद्द को बाबर जीत गया था---

राणा सांगा अपने पिता रायमल की मौत के बाद मेवाड़ के शासक बने थे जिन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया और राजपूतों को इकठ्ठा करने का काम किया व् दिल्ली पर शासन करने वाले लोदी राजवंश को हराया था जिसमे उन्होंने काबुल आदेश भेजकर बाबर को साथ देने के लिए भी बुलाया था मगर बाद में राज्य विस्तार की लालसा के चलते दोनों के बीच खाई पैदा हो गयी और 1527 में पानीपत युद्द की सफलता के बाद इन दोनों के बीच खानवा का युद्द हुआ---

भगवान्रा कृष्ण की भक्त मीराबाई राणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराम की पत्नी थी | बाद में इसी पीड़ी के महाराणा प्रताप और बाबर के पौत्र अकबर के बीच भी हल्दीघाटी का युद्द हुआ था | राजस्थान की इस मिट्टी में जन्म लेने वाले वीर योद्दाओं की कभी भी कमी नहीं रही जिन्होंने अपनी ताकत का लौह हमेशा मनवाया था---

प्रख्यात इतिहासकार मजूमदार ने भी खानवा युद्द का वर्णन किया है जहाँ उन्होंने इस युद्द पर काफी अच्छा प्रकाश डाला है और बताया गया है की आज जो खानवा गाँव है वहां एक पहाड़ी आज भी स्थित है जहाँ राणा सांगा ने अपनी सेना के साथ डेरा डाला था जहाँ पहाड़ी पर आज भी बाबर द्वारा चलाई गयी तोपों के गोलों के निशान देखे जा सकते है---

कई अंग्रेज विद्वानों ने भी अपने गजेटियर में खानवा युद्द का वर्णन किया है जो युद्द के बाद यहाँ देखने के लिए आये थे और वे गजेटियर आज भी लन्दन स्थित लाइब्रेरी में रखे हुए है---दरअशल बाबर की राज्य विस्तार लालसा के चलते राणा सांगा से मतभेद हो गया था क्योंकि राणा सांगा देश में हिंदुत्व स्थापित करना चाहते थे मगर बाबर द्वारा पूरे देश पर अपनी बादशाहत स्थापित करनी थी जिसके चलते दोनों के बीच खानवा युद्द हुआ जहाँ राणा सांगा बेहद गंभीर घायल हो गए थे और उसके बाबजूद वह फिर से युद्द करना चाहते थे जिसके चलते खुद राणा सांगा के किसी सरदार ने ही उनकी विष देकर हत्या कर दी थी----




Body:राणा सांगा और बाबर के बीच खनुआ में हुआ ऐतिहासिक युद्ध


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