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Special: भावी पीढ़ी को गंभीर बीमारियों से बचाना है तो शादी से पहले मिलाएं 'स्वास्थ्य कुंडली'

भावी पीढ़ी को गंभीर बीमारियों से बचाना है तो शादी से पहले जैसे लड़के और लड़की की जन्म कुंडली का मिलान करते हैं. वैसे ही अब 'स्वास्थ्य कुंडली' का भी मिलान करना चाहिए. जिससे आने वाली पीढ़ी यानि बच्चे को गंभीर बीमारियों से सुरक्षित किया जा सके. इसकी जानकारी भरतपुर जनाना अस्पताल के सभागार में आयोजित स्वास्थ्य कार्यक्रम में दी गई. देखिए भरतपुर से स्पेशल रिपोर्ट...

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शादी से पहले मिलाएं 'स्वास्थ्य कुंडली' !
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Published : Jan 21, 2020, 3:16 PM IST

Updated : Jan 21, 2020, 3:37 PM IST

भरतपुर. अब तक शादी से पहले लड़का और लड़की की कुंडली का मिलान किया जाता रहा है. लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सकों की सलाह मानें तो अब कुंडली के साथ ही स्वास्थ्य कुंडली का मिलान भी कराना चाहिए. क्योंकि शादी से पहले लड़का और लड़की की स्वास्थ्य जांच नहीं कराने की वजह से भावी पीढ़ी यानि कि बच्चों को थैलेसीमिया और हीमोफीलिया जैसी कई गंभीर अनुवांशिक बीमारियां मिल रही है.

शादी से पहले मिलाएं 'स्वास्थ्य कुंडली'!

ऐसे में विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि बच्चों को इन बीमारियों से बचाने का सबसे सही तरीका यही है कि शादी से पहले काउंसलिंग कर लड़का और लड़की दोनों की स्वास्थ्य जांच करा ली जाए.

थैलेसीमिया बीमारी से यूं संभव है बचाव...

भरतपुर आरबीएम अस्पताल के ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. वीरेंद्र ठाकुर ने बताया कि बच्चों में थैलेसीमिया बीमारी का सबसे बड़ा कारण उनके माता-पिता होते हैं. यह एक आनुवांशिक बीमारी है और इससे बचाव का सही तरीका यही है कि शादी से पहले लड़का और लड़की दोनों की जांच कर इस बारे में पता कर लिया जाए. वहीं चिकित्सा विभाग के ब्लड सेल के फील्ड ऑफिसर पवन कुमार शर्मा ने बताया कि यदि लड़का और लड़की दोनों थैलेसीमिया माइनर हैं तो उनके बच्चे में थैलेसीमिया मेजर होने की पूरी संभावना रहती है. ऐसे में यदि लड़का और लड़की की स्वास्थ्य जांच कर शादी से पहले ही इस बीमारी के बारे में पता चल जाए तो दोनों को शादी नहीं करनी चाहिए, ताकि होने वाला बच्चे को इस गंभीर बीमारी का नुकसान न उठाना पड़े. इसी प्रकार हीमोफीलिया बीमारी से भी बचाव संभव है.

पढ़ें- जयपुर : सूर्य ग्रहण देखने के बाद बच्चों की आंखें खराब, 40-70 फीसदी जला रेटिना

यूं भी कर सकते हैं बचाव...

पवन कुमार ने बताया कि यदि शादी से पहले लड़का और लड़की अपने स्वास्थ्य जांच नहीं करा पाते हैं तो गर्भावस्था के दौरान 10 से 12 सप्ताह की गर्भ की जांच भी कराई जा सकती है. यदि जांच में बच्चा थैलेसीमिया मेजर पाया जाता है तो उसका गर्भावस्था के दौरान ही उपचार संभव है और वह स्वस्थ जीवन जी सकता है.

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भरतपुर में कार्यशाला आयोजित

क्या है थैलेसीमिया बीमारी...

असल में थैलेसीमिया बच्चों में आनुवांशिक तौर पर होने वाला खून का रोग है. इस बीमारी में खून में हीमोग्लोबिन बनना कम हो जाता है. जिससे पीड़ित को हर माह खून चढ़ाना पड़ता है. बार-बार खून चढ़ाने से शरीर में आयरन जमा हो जाता है, जिसे कम करने के लिए दवाइयां खानी पड़ती हैं. ऐसे में इसकी मरीज की औसत आयु 25 से 26 साल ही होती है.

पढ़ें- एसएमएस अस्पताल में हुआ पहला हार्ट ट्रांसप्लांट, चिकित्सा मंत्री ने जताई खुशी

क्या है हीमोफीलिया बीमारी...

इस बीमारी में खून का थक्का जमाने वाले फैक्टर 8 और फैक्टर 9 या फिर दोनों की कमी हो जाती है. इससे शरीर के भीतर ही या बाहरी हिस्सों में खून का रिसाव होने लगता है. रिसाव के चलते हाथ पैर के जोड़ खराब होने लगते हैं. रिसाव रोकने के लिए ऊपर से फैक्टर लगाए जाते हैं. इससे ज्यादातर पुरुष प्रभावित होते हैं. 5 हजार की आबादी पर एक व्यक्ति इससे पीड़ित होता है.

भरतपुर में थैलेसीमिया के करीब 100 मरीज...

ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. वीरेंद्र ठाकुर ने बताया कि भरतपुर जिले में वर्तमान में करीब 100 थैलेसीमिया मरीज हैं, साथ ही करीब 15 मरीज हीमोफीलिया के हैं.

पढ़ें- प्रदेश में हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद लीवर ट्रांसप्लांट की भी तैयारी : चिकित्सा मंत्री

लोगों को रक्तदान के लिए किया जागरूक...

भरतपुर जनाना अस्पताल के सभागार में थैलेसीमिया और हीमोफीलिया जागरूकता एवं स्वैच्छिक रक्तदान प्रोत्साहन कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस दौरान आरबीएम जिला अस्पताल के पीएमओ डॉ. नवदीप सैनी और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. कप्तान सिंह ने लोगों को बीमारी के प्रति जागरूक रहने के साथ ही अधिक से अधिक स्वैच्छिक रक्तदान करने की अपील की. कार्यशाला में चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मियों के साथ ही मरीज और उनके परिजन भी मौजूद रहे.

भरतपुर. अब तक शादी से पहले लड़का और लड़की की कुंडली का मिलान किया जाता रहा है. लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सकों की सलाह मानें तो अब कुंडली के साथ ही स्वास्थ्य कुंडली का मिलान भी कराना चाहिए. क्योंकि शादी से पहले लड़का और लड़की की स्वास्थ्य जांच नहीं कराने की वजह से भावी पीढ़ी यानि कि बच्चों को थैलेसीमिया और हीमोफीलिया जैसी कई गंभीर अनुवांशिक बीमारियां मिल रही है.

शादी से पहले मिलाएं 'स्वास्थ्य कुंडली'!

ऐसे में विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि बच्चों को इन बीमारियों से बचाने का सबसे सही तरीका यही है कि शादी से पहले काउंसलिंग कर लड़का और लड़की दोनों की स्वास्थ्य जांच करा ली जाए.

थैलेसीमिया बीमारी से यूं संभव है बचाव...

भरतपुर आरबीएम अस्पताल के ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. वीरेंद्र ठाकुर ने बताया कि बच्चों में थैलेसीमिया बीमारी का सबसे बड़ा कारण उनके माता-पिता होते हैं. यह एक आनुवांशिक बीमारी है और इससे बचाव का सही तरीका यही है कि शादी से पहले लड़का और लड़की दोनों की जांच कर इस बारे में पता कर लिया जाए. वहीं चिकित्सा विभाग के ब्लड सेल के फील्ड ऑफिसर पवन कुमार शर्मा ने बताया कि यदि लड़का और लड़की दोनों थैलेसीमिया माइनर हैं तो उनके बच्चे में थैलेसीमिया मेजर होने की पूरी संभावना रहती है. ऐसे में यदि लड़का और लड़की की स्वास्थ्य जांच कर शादी से पहले ही इस बीमारी के बारे में पता चल जाए तो दोनों को शादी नहीं करनी चाहिए, ताकि होने वाला बच्चे को इस गंभीर बीमारी का नुकसान न उठाना पड़े. इसी प्रकार हीमोफीलिया बीमारी से भी बचाव संभव है.

पढ़ें- जयपुर : सूर्य ग्रहण देखने के बाद बच्चों की आंखें खराब, 40-70 फीसदी जला रेटिना

यूं भी कर सकते हैं बचाव...

पवन कुमार ने बताया कि यदि शादी से पहले लड़का और लड़की अपने स्वास्थ्य जांच नहीं करा पाते हैं तो गर्भावस्था के दौरान 10 से 12 सप्ताह की गर्भ की जांच भी कराई जा सकती है. यदि जांच में बच्चा थैलेसीमिया मेजर पाया जाता है तो उसका गर्भावस्था के दौरान ही उपचार संभव है और वह स्वस्थ जीवन जी सकता है.

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भरतपुर में कार्यशाला आयोजित

क्या है थैलेसीमिया बीमारी...

असल में थैलेसीमिया बच्चों में आनुवांशिक तौर पर होने वाला खून का रोग है. इस बीमारी में खून में हीमोग्लोबिन बनना कम हो जाता है. जिससे पीड़ित को हर माह खून चढ़ाना पड़ता है. बार-बार खून चढ़ाने से शरीर में आयरन जमा हो जाता है, जिसे कम करने के लिए दवाइयां खानी पड़ती हैं. ऐसे में इसकी मरीज की औसत आयु 25 से 26 साल ही होती है.

पढ़ें- एसएमएस अस्पताल में हुआ पहला हार्ट ट्रांसप्लांट, चिकित्सा मंत्री ने जताई खुशी

क्या है हीमोफीलिया बीमारी...

इस बीमारी में खून का थक्का जमाने वाले फैक्टर 8 और फैक्टर 9 या फिर दोनों की कमी हो जाती है. इससे शरीर के भीतर ही या बाहरी हिस्सों में खून का रिसाव होने लगता है. रिसाव के चलते हाथ पैर के जोड़ खराब होने लगते हैं. रिसाव रोकने के लिए ऊपर से फैक्टर लगाए जाते हैं. इससे ज्यादातर पुरुष प्रभावित होते हैं. 5 हजार की आबादी पर एक व्यक्ति इससे पीड़ित होता है.

भरतपुर में थैलेसीमिया के करीब 100 मरीज...

ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. वीरेंद्र ठाकुर ने बताया कि भरतपुर जिले में वर्तमान में करीब 100 थैलेसीमिया मरीज हैं, साथ ही करीब 15 मरीज हीमोफीलिया के हैं.

पढ़ें- प्रदेश में हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद लीवर ट्रांसप्लांट की भी तैयारी : चिकित्सा मंत्री

लोगों को रक्तदान के लिए किया जागरूक...

भरतपुर जनाना अस्पताल के सभागार में थैलेसीमिया और हीमोफीलिया जागरूकता एवं स्वैच्छिक रक्तदान प्रोत्साहन कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस दौरान आरबीएम जिला अस्पताल के पीएमओ डॉ. नवदीप सैनी और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. कप्तान सिंह ने लोगों को बीमारी के प्रति जागरूक रहने के साथ ही अधिक से अधिक स्वैच्छिक रक्तदान करने की अपील की. कार्यशाला में चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मियों के साथ ही मरीज और उनके परिजन भी मौजूद रहे.

Intro:भरतपुर.
अब तक शादी से पहले लड़का और लड़की की कुंडली का मिलान किया जाता रहा है। लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सकों की सलाह मानें तो अब कुंडली के साथ ही स्वास्थ्य कुंडली का मिलान भी कराना चाहिए। क्योंकि शादी से पहले लड़का और लड़की की स्वास्थ्य जांच नहीं कराने की वजह से भावी पीढ़ी यानी कि बच्चों को थैलेसीमिया और हीमोफीलिया जैसी कई गंभीर अनुवांशिक बीमारियां सौगात में मिल रही है। ऐसे में विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि बच्चों को इन बीमारियों से बचाने का सबसे सही तरीका यही है कि शादी से पहले काउंसलिंग कर लड़का और लड़की दोनों की स्वास्थ्य जांच करा ली जाए।


Body:थैलेसीमिया बीमारी से यूं संभव है बचाव
आरबीएम जिला अस्पताल के ब्लड बैंक प्रभारी डॉ वीरेंद्र ठाकुर ने बताया कि बच्चों में थैलेसीमिया बीमारी का सबसे बड़ा कारण उनके माता-पिता होते हैं। यह एक अनुवांशिक बीमारी है और इससे बचाव का सही तरीका यही है कि शादी से पहले लड़का और लड़की दोनों की जांच कर इस बारे में पता कर लिया जाए।
वहीं चिकित्सा विभाग के ब्लड सेल के फील्ड ऑफिसर पवन कुमार शर्मा ने बताया कि यदि लड़का और लड़की दोनों थैलेसीमिया माइनर हैं तो उनके बच्चे थैलेसीमिया मेजर होने की पूरी संभावना रहती है। ऐसे में यदि लड़का और लड़की की स्वास्थ्य जांच कर शादी से पहले ही इस बीमारी के बारे में पता चल जाए तो दोनों को शादी नहीं करनी चाहिए, ताकि होने वाला बच्चे को इस गंभीर बीमारी का नुकसान न उठाना पड़े। इसी प्रकार हीमोफीलिया बीमारी से भी बचाव संभव है।

यूं भी कर सकते हैं बचाव
पवन कुमार ने बताया कि यदि शादी से पहले लड़का और लड़की अपने स्वास्थ्य जांच नहीं करा पाते हैं तो गर्भावस्था के दौरान 10 से 12 सप्ताह की गर्भ की जांच भी कराई जा सकती है। यदि जांच में बच्चा थैलेसीमिया मेजर पाया जाता है तो उसका गर्भावस्था के दौरान ही उपचार संभव है और वह स्वस्थ जीवन जी सकता है।

यह है थैलेसीमिया बीमारी
असल में थैलेसीमिया बच्चों में आनुवांशिक तौर पर होने वाला खून का रोग है। इस बीमारी में खून में हीमोग्लोबिन बनना कम हो जाता है जिससे पीड़ित को हर माह खून चढ़ाना पड़ता है। बार बार खून चढ़ाने से शरीर में आयरन जमा हो जाता है, जिसे कम करने के लिए दवाइयां खानी पड़ती है। ऐसे में इसकी मरीज की औसत आयु 25 से 26 साल ही होती है।

यह है हीमोफीलिया बीमारी
इस बीमारी में खून का थक्का जमाने वाले फेक्टर 8 और फेक्टर 9 या फिर दोनों की कमी हो जाती है। इससे शरीर के भीतर ही या बाहरी हिस्सों में खून का रिसाव होने लगता है। रिसाव के चलते हाथ पैर के जोड़ खराब होने लगते हैं। रिसाव रोकने के लिए ऊपर से फैक्टर लगाए जाते हैं। इससे ज्यादातर पुरुष प्रभावित होते हैं। 5 हजार की आबादी पर एक व्यक्ति इससे पीड़ित होता है।

जिले में थैलेसीमिया के करीब 100 मरीज
ब्लड बैंक प्रभारी डॉ वीरेंद्र ठाकुर ने बताया कि भरतपुर जिले में वर्तमान में करीब 100 थैलेसीमिया मरीज हैं। साथ ही करीब 15 मरीज हीमोफीलिया के हैं।



Conclusion:लोगों को रक्तदान के लिए किया जागरूक
सोमवार को जनाना अस्पताल के सभागार में थैलेसीमिया व हीमोफीलिया जागरूकता एवं स्वैच्छिक रक्तदान प्रोत्साहन कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस दौरान आरबीएम जिला अस्पताल के पीएमओ डॉ नवदीप सैनी और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ कप्तान सिंह ने लोगों को बीमारी के प्रति जागरूक रहने के साथ ही अधिक से अधिक स्वैच्छिक रक्तदान करने की अपील की। कार्यशाला में चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मियों के साथ ही मरीज और उनके परिजन भी मौजूद थे।

बाईट- डॉ वीरेंद्र डागुर, प्रभारी, ब्लड बैंक, आरबीएम जिला अस्पताल भरतपुर ( ग्रे जैकेट)

बाईट2- पवन कुमार, फील्ड ऑफिसर, ब्लड सेल चिकित्सा, विभाग भरतपुर ( रेड - ब्लू जैकेट)
Last Updated : Jan 21, 2020, 3:37 PM IST
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