भरतपुर. विश्व पटल पर भरतपुर को अनूठी पहचान दिलाने वाले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पर अब वर्ल्ड हैरिटेज साइट का तमगा छिनने का खतरा (Ghana World Heritage Site title in trouble) मंडरा रहा है. कई साल से जल संकट से जूझ रहे उद्यान के हालातों के चलते इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने उद्यान प्रशासन को पत्र लिखा है. पत्र में लिखा है कि क्यों ना घना को हैरिटेज साइट से हटा दिया जाए. पत्र के बाद से ही उद्यान प्रशासन चिंता में पड़ गया है. हालांकि उद्यान प्रशासन ने आईयूसीएन को पत्र भेजकर पर्याप्त पानी उपलब्ध होने का आश्वासन दिया है. लेकिन अब आईयूसीएन की टीम वर्ष 2023 के फरवरी माह में खुद उद्यान पहुंचकर हकीकत का जायजा लेगी.
घना के डीएफओ नाहर सिंह ने बताया कि बीते दिनों आईयूसीएन की तरफ से पत्र आया था. पत्र में घना में पानी की समस्या पर सवाल (water crisis in Keoladeo National Park) खड़े किए गए हैं. साथ ही टिप्पणी की गई है कि क्यों ना उद्यान को वर्ल्ड हैरिटेज साइट से हटा दिया जाए. डीएफओ नाहर सिंह ने बताया कि पत्र का लिखित जवाब भेज दिया गया है. घना में पानी की कोई समस्या नहीं है. दो साल से भरपूर पानी मिल रहा है, पक्षी भी अच्छी संख्या में यहां पहुंच रहे हैं.
540 करोड़ की योजनाः डीएफओ नाहर सिंह ने बताया कि घना को लेकर राज्य सरकार चिंतित है. उद्यान को भरपूर पानी उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार ने अलग से 540 करोड़ का बजट स्वीकृत किया है. इससे धौलपुर की चंबल से केवलादेव उद्यान तक एक बड़ी पाइप लाइन डाली जाएगी और उद्यान को भरपूर पानी मिल सकेगा.
निरीक्षण के बाद फैसलाः डीएफओ नाहर सिंह ने बताया कि आईयूसीएन की टीम संभवतः फरवरी 2023 में उद्यान का निरीक्षण करेगी. यहां की पानी संबंधी एवं अन्य पहलुओं का जायजा लेगी. उसके बाद उद्यान को वर्ल्ड हैरिटेज साइट में रखने या हटाने का अपना निर्णय सुना सकती है.
इसलिए बढ़ा जल संकटः पहले उद्यान को पंचाना बांध से भरपूर मिलता था. उसमें भरपूर फूड भी साथ आता, जिसे पक्षी बहुत पसंद करते थे. लेकिन जब से पांचाना बांध की दीवारें ऊंची की गई है और पानी को लेकर राजनीति शुरू हुई है तब से घना को पांचना का पानी यदा कदा ही मिल पाता है. जिसकी भरपाई गोवर्धन ड्रेन और चंबल पेयजल योजना से करने का प्रयास किया जाता है.
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20 साल तक नहीं मिला जरूरत का पानीः घना में हर वर्ष करीब 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है. गोवर्धन ड्रेन और चंबल से इसकी पूर्ति करने का प्रयास किया जाता है. गत वर्ष तो करौली के पांचना बांध से भी 226 एमसीएफटी पानी मिल गया था. इस बार लौटते हुए मानसून की मेहरबानी से उद्यान को अच्छी मात्रा में पानी मिल गया. अन्यथा बीते करीब 20 वर्षों में कभी भी घना को जरूरत का पूरा पानी नहीं मिला.
एक नजर में जानिए घना को
- 28.73 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
- वर्ष 1981 में संरक्षित पक्षी अभ्यारण्य घोषित किया गया
- वर्ष 1985 में वर्ड हैरिटेज साइट/ विश्व धरोहर घोषित किया गया
- उद्यान का निर्माण 250 वर्ष पूर्व कराया गया था
जानिए कितना महत्वपूर्ण है घनाः पर्यावरणविद डॉ सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि पूरे राजस्थान में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान सबसे अधिक जैव विविधता को संजोए हुए हैं. राजस्थान में पक्षियों की कुल 510 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से अकेले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में करीब 380 पक्षियों की प्रजातियां चिह्नित की जा चुकी हैं. इसी तरह राजस्थान में रेंगने वाले (सरीसृप) जीवों की करीब 40 प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें से करीब 25 से 29 प्रजातियां घना में उपलब्ध हैं. राजस्थान में तितलियों की करीब 125 प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें से करीब 80 प्रजाति घना में मिलती हैं. राजस्थान में मेंढक की 14 प्रजातियां, जिनमें से 9 प्रजाति घना में, राजस्थान में कछुओं की 10 प्रजातियों में से 8 प्रजाति घना में हैं.
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ये भी जानें
- घना में स्तनधारी जीवों की प्रजातियां 34
- वनस्पतियों की प्रजाति 372
- मछली की 57 प्रजातियां मौजूद हैं
- दुनिया में इसलिए मिली थी पहचान
उद्यान में एक समय में सैकड़ों की संख्या में साइबेरियन सारस आते थे. साथ ही करीब 380 प्रजाति के हजारों पक्षी यहां सर्दियों में प्रवास करते थे. लेकिन धीरे धीरे पानी की समस्या बढ़ती गई और पक्षियों की संख्या भी घटती गई. हालात ये हो गए कि वर्ष 2002 के बाद साइबेरियन सारस ने आना बंद कर दिया. कई अन्य प्रजातियों के पक्षियों ने भी मुंह मोड़ लिया। अभी सारस भी महज 7-8 की संख्या में नजर आता है.
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घना से 50 करोड़ से अधिक का व्यवसायः होटल व्यवसाई लक्ष्मण सिंह ने बताया कि भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की वजह से पर्यटन व्यवसाय को अच्छी आय होती है. उद्यान की वजह से यहां के होटल व्यवसाय, रिक्शा चालक, नेचर गाइड और तमाम अन्य पर्यटन से जुड़े लोगों को आमदनी होती है. उद्यान की वजह से पूरे भरतपुर के पर्यटन व्यवसायियों को सालाना करीब 50 करोड़ से अधिक की से होती है. यदि उद्यान को वर्ल्ड हैरिटेज साइट से हटा दिया गया तो इसका सीधा असर पर्यटन व्यवसाय पर पड़ेगा.