भरतपुर. प्रदेश में साइबर अपराधी तेजी से लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. आए दिन ऑनलाइन ठगी, एटीएम कार्ड हैक कर या हनी ट्रैप में फंसाकर साइबर अपराधी लोगोे से पैसे ऐंठ ले रहे हैं. हालांकि पुलिस अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई भी कर रही है. अपराधी गिरफ्तार भी होते हैं लेकिन इनको सख्त सजा नहीं मिल पाती जिससे वे छूट जाते हैं. पुलिस विभाग के आंकड़ों की मानें तो बीते 4 साल में प्रदेशभर में साइबर अपराध के 6620 मामले दर्ज हुए लेकिन हैरत की बात यह है कि 4 साल में सिर्फ 10 मामलों में ही आरोपियों को सजा मिल पाई है.
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण जुर्म प्रमाणित नहीं होना और सही दिशा में इन्वेस्टिगेशन नहीं होने के साथ ही कई कानूनी पक्षों में कमी होना बताया जा रहा है. पुलिस विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2019 से 2022 तक पूरे प्रदेश में ऑनलाइन ठगी के कुल 6620 मामले दर्ज हुए हैं. इनमें से पुलिस ने 1901 मामलों में चालान पेश किया है. जबकि 904 मामले तो ऐसे हैं जिनमें अभी तक किसी अपराधी की गिरफ्तारी ही नहीं हो सकी है.
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4 साल में सिर्फ 10 को सजा
साइबर अपराधियों के खिलाफ पुलिस की ओर से कार्रवाई तो की जाती है लेकिन कमजोर जांच-पड़ताल, सबूतों का अभाव और कानूनी पक्षों की कमी के चलते अपराधियों को सख्त सजा नहीं मिल पाती. यही वजह है कि बीते 4 साल में साइबर अपराध के 6620 मामले दर्ज हुए लेकिन सजा सिर्फ 10 अपराधियों को ही मिल सकी. इनमें भरतपुर में 1 साइबर अपराधी को, दौसा में 2 को, हनुमानगढ़, जैसलमेर, झालावाड़, श्रीगंगानगर, अजमेर, कोटा शहर और जयपुर ग्रामीण में 1-1 अपराधी को ही सजा हो सकी है.
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इसलिए बच निकलते हैं साइबर अपराधी
जोधपुर हाईकोर्ट के अधिवक्ता देवकीनंदन व्यास ने बताया कि अधिकतर साइबर अपराधियों को सजा नहीं होने के पीछे कई कारण हैं जिनमें अधिकतर प्रकरणों मेंं इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसियां अपराध सिद्ध नहीं कर पातीं हैं. जुर्म प्रमाणित नहीं होने पर अपराधी छूट जाता है. इसी तरह कई बार शिकायतकर्ता कमजोर पड़ जाता है या कानूनी लड़ाई लड़ने से बचता है, शिकायतकर्ता के पैसे वापस आ जाते हैं तो वह हाथ पीछे खींच लेता है. साथ ही कमजोर कानून व्यवस्था के चलते भी कई बार अपराधी को सख्त सजा नहीं मिल पाती.