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शिकारियों पर शिकंजा : कोरोना काल में सक्रिय हुए शिकारी...भरतपुर वन विभाग ने 18 महीने में 22 दबोचे

लॉकडाउन में जब आमजन घरों में बंद हुए तो ऐसे में जानवरों पर जान पर आफत आ गई. इस दौरान भरतपुर में शिकारी और अधिक सक्रिय हो गए और केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में शिकार करने लगे. लेकिन वन विभाग ने शिकारियों को दबोच लेने के लिए 2019 से ही कमर कस रखी थी. कोरोना काल में शिकार और शिकारियों पर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

Bharatpur Forest Department, Bharatpur news
भरतपुर में 15 शिकारियों को पकड़ा
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Published : Jan 11, 2021, 8:32 PM IST

भरतपुर. कोरोना संक्रमण काल में जिले के शिकारी बड़ी संख्या में सक्रिय हो गए. विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान समेत जिले के वन क्षेत्रों में जगह-जगह शिकार की वारदात सामने आई लेकिन जितनी तेजी से शिकारी शिकार (hunting of animal in Bharatpur) करने के लिए सक्रिय हुए, उतनी ही तेजी से वन विभाग ने इन शिकारियों पर शिकंजा कसना भी शुरू कर दिया. यही वजह है कि करीब पौने दो साल में वन विभाग ने जिले भर में से 22 शिकारियों को दबोचा है.

भरतपुर में शिकारियों पर कार्रवाई

कोरोना काल में पकड़े 15 शिकारी

कोरोना काल में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में शिकारी काफी तेजी से सक्रिय हुए. इसके पीछे खास वजह यह रही कि शिकारियों को यहां शिकार आसानी से पकड़ में आ जाता है लेकिन उद्यान में लगे ट्रैप कैमरों की वजह से शिकारियों के खिलाफ घना प्रशासन ने कई कार्रवाई को अंजाम दिया. डीएफओ मोहित गुप्ता ने बताया कि मार्च 2019 से अगस्त 2020 के दौरान 20 शिकारी पकड़े लेकिन सिर्फ कोरोना काल की बात करें तो विभाग ने 15 शिकारी पकड़े.

जिंदा और मृत वन्यजीव बरामद

पौने 2 साल की कार्रवाई के दौरान सबसे बड़ी कार्रवाई वन विभाग ने 18 दिसंबर 2020 को की, जिसमें वन विभाग ने दो शिकारियों को पकड़ा और उनसे जिंदा और मृत वन्यजीव भी बरामद किए. वन विभाग की टीम ने शिकारियों के कब्जे से दो जिंदा मॉनिटर लिजार्ड (गोह), दो मृत जैकाल, तीन मृत जंगली बिल्ली समेत करीब दो दर्जन लोहे के फंदे और हथियार बरामद किए.

इस कारण से करते हैं शिकार

डीएफओ मोहित गुप्ता ने बताया कि अधिकतर शिकारी मांस के लिए शिकार करते हैं लेकिन जानकारों की मानें और बीते दिनों चिकसाना क्षेत्र से पकड़े गए शिकारी और उन से बरामद किए वन्य जीवों से इस बात का अंदेशा भी होता है कि वन्यजीवों का शिकार तंत्र साधना के लिए करने की आशंका भी है.

इनको बनाते हैं शिकार

विभाग से मिली जानकारी के अनुसार शिकारी केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और आसपास के क्षेत्र में सबसे ज्यादा मछली, कछुआ, तीतर, मोर, जैकाल, जंगली बिल्ली, मॉनिटर लिजार्ड (गोह) को अपना शिकार बनाते हैं. तीतर, मोर और मछली का शिकार मांस के लिए जबकि जंगली बिल्ली, मॉनिटर लिजार्ड आदि का शिकार दवाई और तंत्र विद्या जैसी क्रियाकलापों के लिए करने की आशंका है. हालांकि, वन विभाग ने तंत्र विद्या जैसे कार्यों के लिए इस प्रकार की पुष्टि नहीं की है.

Bharatpur Forest Department, Bharatpur news
पौने दो साल में 22 शिकारी पकड़े गए

शिकारियों पर ऐसे कसी नकेल

डीएफओ मोहित गुप्ता ने बताया कि शिकारियों पर नकेल कसने के लिए एक स्मार्ट नेटवर्क विकसित किया गया. इसके तहत सबसे पहले तो केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के फॉरेस्टर लेवल तक के अधिकारियों को ट्रैप कैमरों की अनौपचारिक प्रशिक्षण दिया गया. साथ ही उन्हें यह अधिकार भी दिया गया कि वह ट्रैप कैमरों कि खुद ही मॉनिटरिंग कर सकें.

इससे घना में होने वाली अनाधिकृत एक्टिविटीज पर तेजी से लगाम लगना शुरू हो गया. साथ ही उद्यान के सभी एंट्री प्वाइंट की मॉनिटरिंग बढ़ा दी गई. जिससे बाहर से आने जाने वाले अनाधिकृत लोगों पर पूरी नजर रखी जाने लगी.

यह भी पढ़ें. Special : गुलाबी शहर के किनारे एक हरा जंगल...इंसानी बस्ती के बीच नखलिस्तान है झालाना लेपर्ड रिजर्व, ETV bharat के साथ चलिए सफारी पर

मुखबिर बने सहयोगी

रेंजर महेश गुप्ता ने बताया कि घना के बाहर भी एक इंटेलिजेंस सिस्टम डिवेलप किया गया और अपने मुखबिर तैयार किए गए, जो कि 1 क्षेत्र में शिकार करने वाले लोगों पर नजर रखकर विभाग के अधिकारियों को लगातार सूचनाएं देने लगे. साथ ही ट्रैक कैमरा में नजर आने वाले अनाधिकृत लोगों की फोटो स्थानीय पुलिस प्रशासन से मिलकर के मैच की जाने लगी और शिकारियों को आसानी से गिरफ्त में लिया जाने लगा.

गौरतलब है कि बीते दिनों के बाद एक राष्ट्रीय उद्यान और जिले के 1 क्षेत्रों से समय-समय पर शिकार की घटनाएं सामने आई थी, जिसके बाद वन विभाग ने समय-समय पर कार्रवाई कर कई शिकारियों को भी अपनी गिरफ्त में लिया है.

भरतपुर. कोरोना संक्रमण काल में जिले के शिकारी बड़ी संख्या में सक्रिय हो गए. विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान समेत जिले के वन क्षेत्रों में जगह-जगह शिकार की वारदात सामने आई लेकिन जितनी तेजी से शिकारी शिकार (hunting of animal in Bharatpur) करने के लिए सक्रिय हुए, उतनी ही तेजी से वन विभाग ने इन शिकारियों पर शिकंजा कसना भी शुरू कर दिया. यही वजह है कि करीब पौने दो साल में वन विभाग ने जिले भर में से 22 शिकारियों को दबोचा है.

भरतपुर में शिकारियों पर कार्रवाई

कोरोना काल में पकड़े 15 शिकारी

कोरोना काल में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में शिकारी काफी तेजी से सक्रिय हुए. इसके पीछे खास वजह यह रही कि शिकारियों को यहां शिकार आसानी से पकड़ में आ जाता है लेकिन उद्यान में लगे ट्रैप कैमरों की वजह से शिकारियों के खिलाफ घना प्रशासन ने कई कार्रवाई को अंजाम दिया. डीएफओ मोहित गुप्ता ने बताया कि मार्च 2019 से अगस्त 2020 के दौरान 20 शिकारी पकड़े लेकिन सिर्फ कोरोना काल की बात करें तो विभाग ने 15 शिकारी पकड़े.

जिंदा और मृत वन्यजीव बरामद

पौने 2 साल की कार्रवाई के दौरान सबसे बड़ी कार्रवाई वन विभाग ने 18 दिसंबर 2020 को की, जिसमें वन विभाग ने दो शिकारियों को पकड़ा और उनसे जिंदा और मृत वन्यजीव भी बरामद किए. वन विभाग की टीम ने शिकारियों के कब्जे से दो जिंदा मॉनिटर लिजार्ड (गोह), दो मृत जैकाल, तीन मृत जंगली बिल्ली समेत करीब दो दर्जन लोहे के फंदे और हथियार बरामद किए.

इस कारण से करते हैं शिकार

डीएफओ मोहित गुप्ता ने बताया कि अधिकतर शिकारी मांस के लिए शिकार करते हैं लेकिन जानकारों की मानें और बीते दिनों चिकसाना क्षेत्र से पकड़े गए शिकारी और उन से बरामद किए वन्य जीवों से इस बात का अंदेशा भी होता है कि वन्यजीवों का शिकार तंत्र साधना के लिए करने की आशंका भी है.

इनको बनाते हैं शिकार

विभाग से मिली जानकारी के अनुसार शिकारी केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और आसपास के क्षेत्र में सबसे ज्यादा मछली, कछुआ, तीतर, मोर, जैकाल, जंगली बिल्ली, मॉनिटर लिजार्ड (गोह) को अपना शिकार बनाते हैं. तीतर, मोर और मछली का शिकार मांस के लिए जबकि जंगली बिल्ली, मॉनिटर लिजार्ड आदि का शिकार दवाई और तंत्र विद्या जैसी क्रियाकलापों के लिए करने की आशंका है. हालांकि, वन विभाग ने तंत्र विद्या जैसे कार्यों के लिए इस प्रकार की पुष्टि नहीं की है.

Bharatpur Forest Department, Bharatpur news
पौने दो साल में 22 शिकारी पकड़े गए

शिकारियों पर ऐसे कसी नकेल

डीएफओ मोहित गुप्ता ने बताया कि शिकारियों पर नकेल कसने के लिए एक स्मार्ट नेटवर्क विकसित किया गया. इसके तहत सबसे पहले तो केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के फॉरेस्टर लेवल तक के अधिकारियों को ट्रैप कैमरों की अनौपचारिक प्रशिक्षण दिया गया. साथ ही उन्हें यह अधिकार भी दिया गया कि वह ट्रैप कैमरों कि खुद ही मॉनिटरिंग कर सकें.

इससे घना में होने वाली अनाधिकृत एक्टिविटीज पर तेजी से लगाम लगना शुरू हो गया. साथ ही उद्यान के सभी एंट्री प्वाइंट की मॉनिटरिंग बढ़ा दी गई. जिससे बाहर से आने जाने वाले अनाधिकृत लोगों पर पूरी नजर रखी जाने लगी.

यह भी पढ़ें. Special : गुलाबी शहर के किनारे एक हरा जंगल...इंसानी बस्ती के बीच नखलिस्तान है झालाना लेपर्ड रिजर्व, ETV bharat के साथ चलिए सफारी पर

मुखबिर बने सहयोगी

रेंजर महेश गुप्ता ने बताया कि घना के बाहर भी एक इंटेलिजेंस सिस्टम डिवेलप किया गया और अपने मुखबिर तैयार किए गए, जो कि 1 क्षेत्र में शिकार करने वाले लोगों पर नजर रखकर विभाग के अधिकारियों को लगातार सूचनाएं देने लगे. साथ ही ट्रैक कैमरा में नजर आने वाले अनाधिकृत लोगों की फोटो स्थानीय पुलिस प्रशासन से मिलकर के मैच की जाने लगी और शिकारियों को आसानी से गिरफ्त में लिया जाने लगा.

गौरतलब है कि बीते दिनों के बाद एक राष्ट्रीय उद्यान और जिले के 1 क्षेत्रों से समय-समय पर शिकार की घटनाएं सामने आई थी, जिसके बाद वन विभाग ने समय-समय पर कार्रवाई कर कई शिकारियों को भी अपनी गिरफ्त में लिया है.

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