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MSBU में पीएचडी का हालः 5 साल से 30 शोधार्थियों को गाइड तक अलॉट नहीं हुआ, तो कुछ ने 2 माह बाद ही जमा करा दी थीसिस

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Published : Jul 1, 2023, 8:49 PM IST

महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय के करीब पीएचडी शोधार्थियों को गाइड तक अलॉट नहीं हुआ है, वहीं कुछ ऐसे भी जिन्हें गाइड भी मिल गया और उनकी थीसिस महज दो माह में ही जमा हो गई.

30 students waiting for guide in PHD in MSBU, a few already submitted thesis
MSBU में पीएचडी का हालः 5 साल से 30 शोधार्थियों को गाइड तक अलॉट नहीं हुआ, तो कुछ ने 2 माह बाद ही जमा करा दी थीसिस

भरतपुर. महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय (MSBU) के पीएचडी के 111 शोधार्थियों को बीते 5 साल से डिग्री का इंतजार है. विवि प्रशासन के कुप्रबंधन का ही नतीजा है कि 5 साल गुजरने के बाद भी करीब 30 से अधिक शोधार्थियों को गाइड तक अलॉट नहीं हुआ है. हालात ये हैं कि 1.50-1.50 लाख रुपए फीस जमा कराने के बावजूद शोधार्थियों की पीएचडी की डिग्री नहीं मिल पा रही है. वहीं कई रसूखदार शोधार्थी ऐसे भी हैं जिनको मार्च, अप्रैल 2023 में गाइड अलॉट हुआ और नियमों को दरकिनार कर महज दो-तीन माह में थीसिस भी सबमिट करा दी. विश्वविद्यालय प्रशासन कोरोना का बहाना बनाकर अपनी इस लापरवाही को छुपाने में जुटा है.

असल में महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय ने 14 विषयों में वर्ष 2017-18 में 63 और 2018-19 में 48 विद्यार्थियों को पीएचडी में प्रवेश दिया. वर्ष 2017- 18 के सभी विद्यार्थियों को तो गाइड अलॉट हो गए, लेकिन 2018-19 के 30 से अधिक शोधार्थियों को तो 5 साल बाद भी गाइड अलॉट नहीं हो सका है. ऐसे में बिना गाइड के थीसिस का काम शुरू नहीं हो सका है. जबकि प्रत्येक शोधार्थी अब तक 1.50-1.50 लाख रुपए फीस जमा करा चुका है.

पढ़ें: एकेडमिक काउंसिल की बैठक में पीएचडी के नए नियम लागू, MLSU के Logo में होगा बदलाव

देनी होगी एक साल की अतिरिक्त फीसः नियमानुसार यदि समय पर कोर्स वर्क हो जाता है और गाइड अलॉट हो जाता है, तो न्यूनतम तीन साल में थीसिस जमा करा सकता है और उसे पीएचडी की डिग्री मिल जाती है. साथ ही पीएचडी में अधिकतम 6 साल का वक्त लगता है. लेकिन विश्वविद्यालय के दोनों बैच के अधिकतर शोधार्थी की ना तो अभी तक थीसिस जमा हुई है और करीब 30 को तो गाइड भी अलॉट नहीं हुआ है. ऐसे में अब शोधार्थियों को एक-एक साल की 18-18 हजार अतिरिक्त फीस जमा करानी होगी.

पढ़ें: PHD Entrance Exam in Bikaner: 4 साल बाद हो सकती है MGSU में पीएचडी के लिए प्रवेश परीक्षा!

रसूखदारों ने लिख दी दो माह में थीसिसः एक तरफ जहां विश्वविद्यालय के शोधार्थियों को 5 साल में गाइड तक अलॉट नहीं हो पाए हैं, वहीं कुछ रसूखदार विद्यार्थी ऐसे भी हैं जिनको मार्च और अप्रैल में गाइड अलॉट हुए और उन्होंने महज दो-तीन माह में ही अपनी थीसिस लिखकर विश्वविद्यालय में सबमिट भी करा दी. ताज्जुब की बात तो यह है कि जिस थीसिस को शोध कर लिखने में कई-कई साल लग जाते हैं, वो थीसिस इन रसूखदार शोधार्थियों ने चंद माह में लिख डाली और विश्वविद्यालय ने उसे स्वीकार भी कर लिया. इनमें इतिहास, दर्शनशास्त्र, भूगोल और शिक्षा विभाग के शोधार्थी शामिल हैं.

पढ़ें: JNU PhD Entrance Exam: बाड़मेर की बेटी ने PhD एंट्रेंस एग्जाम में पूरे देश में किया टॉप

जिम्मेदारों का तर्कः विवि के उपकुलसचिव डॉ अरुण कुमार पाण्डेय का कहना है कि कोरोना संक्रमण काल के चलते शोधार्थियों के गाइड अलॉट होने में देरी हुई थी. जिन शोधार्थियों को अभी तक गाइड अलॉट नहीं हुए हैं, उनको जल्द गाइड अलॉट कर दिए जाएंगे. जिन शोधार्थियों ने गाइड अलॉट होने के कुछ माह बाद ही थीसिस सबमिट करा दी है, उनकी जांच कराएंगे.

भरतपुर. महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय (MSBU) के पीएचडी के 111 शोधार्थियों को बीते 5 साल से डिग्री का इंतजार है. विवि प्रशासन के कुप्रबंधन का ही नतीजा है कि 5 साल गुजरने के बाद भी करीब 30 से अधिक शोधार्थियों को गाइड तक अलॉट नहीं हुआ है. हालात ये हैं कि 1.50-1.50 लाख रुपए फीस जमा कराने के बावजूद शोधार्थियों की पीएचडी की डिग्री नहीं मिल पा रही है. वहीं कई रसूखदार शोधार्थी ऐसे भी हैं जिनको मार्च, अप्रैल 2023 में गाइड अलॉट हुआ और नियमों को दरकिनार कर महज दो-तीन माह में थीसिस भी सबमिट करा दी. विश्वविद्यालय प्रशासन कोरोना का बहाना बनाकर अपनी इस लापरवाही को छुपाने में जुटा है.

असल में महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय ने 14 विषयों में वर्ष 2017-18 में 63 और 2018-19 में 48 विद्यार्थियों को पीएचडी में प्रवेश दिया. वर्ष 2017- 18 के सभी विद्यार्थियों को तो गाइड अलॉट हो गए, लेकिन 2018-19 के 30 से अधिक शोधार्थियों को तो 5 साल बाद भी गाइड अलॉट नहीं हो सका है. ऐसे में बिना गाइड के थीसिस का काम शुरू नहीं हो सका है. जबकि प्रत्येक शोधार्थी अब तक 1.50-1.50 लाख रुपए फीस जमा करा चुका है.

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देनी होगी एक साल की अतिरिक्त फीसः नियमानुसार यदि समय पर कोर्स वर्क हो जाता है और गाइड अलॉट हो जाता है, तो न्यूनतम तीन साल में थीसिस जमा करा सकता है और उसे पीएचडी की डिग्री मिल जाती है. साथ ही पीएचडी में अधिकतम 6 साल का वक्त लगता है. लेकिन विश्वविद्यालय के दोनों बैच के अधिकतर शोधार्थी की ना तो अभी तक थीसिस जमा हुई है और करीब 30 को तो गाइड भी अलॉट नहीं हुआ है. ऐसे में अब शोधार्थियों को एक-एक साल की 18-18 हजार अतिरिक्त फीस जमा करानी होगी.

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रसूखदारों ने लिख दी दो माह में थीसिसः एक तरफ जहां विश्वविद्यालय के शोधार्थियों को 5 साल में गाइड तक अलॉट नहीं हो पाए हैं, वहीं कुछ रसूखदार विद्यार्थी ऐसे भी हैं जिनको मार्च और अप्रैल में गाइड अलॉट हुए और उन्होंने महज दो-तीन माह में ही अपनी थीसिस लिखकर विश्वविद्यालय में सबमिट भी करा दी. ताज्जुब की बात तो यह है कि जिस थीसिस को शोध कर लिखने में कई-कई साल लग जाते हैं, वो थीसिस इन रसूखदार शोधार्थियों ने चंद माह में लिख डाली और विश्वविद्यालय ने उसे स्वीकार भी कर लिया. इनमें इतिहास, दर्शनशास्त्र, भूगोल और शिक्षा विभाग के शोधार्थी शामिल हैं.

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जिम्मेदारों का तर्कः विवि के उपकुलसचिव डॉ अरुण कुमार पाण्डेय का कहना है कि कोरोना संक्रमण काल के चलते शोधार्थियों के गाइड अलॉट होने में देरी हुई थी. जिन शोधार्थियों को अभी तक गाइड अलॉट नहीं हुए हैं, उनको जल्द गाइड अलॉट कर दिए जाएंगे. जिन शोधार्थियों ने गाइड अलॉट होने के कुछ माह बाद ही थीसिस सबमिट करा दी है, उनकी जांच कराएंगे.

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