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बाड़मेर में दीपावली की तैयारियां शुरू, मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे कारीगर

बाड़मेर में दीपावली को लेकर कुम्हार करीगरों ने मिट्टी के दीपक बनाने का काम शुरू कर दिया है. कारीगरों का कहना है कि इस काम में ज्यादा फायदा नहीं हो पाता. लोग मिट्टी के दियों के बजाय चाइनीज लाइट्स लेना ज्यादा पसंद करते हैं.

Diwali in Barmer, बाड़मेर न्यूज
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Published : Oct 13, 2019, 9:23 PM IST

बाड़मेर. रोशनी के पर्व दीपावली को लेकर लोगों ने अपने-अपने घरों में तैयारियां शुरू कर दी हैं. वहीं इसके दीपावली पर जलाने के लिए कुम्हार लोगों ने मिट्टी के दीये बनाने का काम शुरू कर दिया है. शहर के बलदेव नगर सहित अन्य स्थानों पर निवास करने वाले कुम्हार इन दिनों चार्ट पर मिट्टी के दिए बनाने में व्यस्त हैं.

दीवाली के चलते मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे कारीगर

कुम्हारों की मानें तो मिट्टी के भाव बढ़ने और बाजारों में चाइनीज लाइट्स की उपलब्धता के चलते मिट्टी के दीयों की बिक्री पर असर पड़ा है. धीरे-धीरे मिट्टी के दीयों की बिक्री में कमी आई है. लोगों को चाइनीज लाइट्स उनके द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीयों की अपेक्षा सस्ते लगते हैं.

पढ़ें- जयपुर में ट्रैफिक पुलिस की शराबी वाहन चालकों के खिलाफ सख्ती, 2 दिन में 265 पर कार्रवाई

मिट्टी के दीए बनाने वाले कुम्हार लालाराम ने बताया कि पहले बाड़मेर में 10 परिवार मिट्टी के दीए बनाने का काम करते थे. लेकिन अब बाजार में मिट्टी के दीयों की बिक्री कम होने के चलते 8 परिवारों ने काम बंद कर दिया है. अब केवल दो परिवार ही मिट्टी के दीए बना रहे हैं.

इस काम में कुम्हारों को लागत के अनुसार आमदनी नहीं हो पाती है. जिससे घर परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो जाता है. नई पीढ़ी के बच्चे अब चाक चलाना पसंद नहीं करते हैं. आने वाले दिनों में ये कारीगरी लुप्त हो सकती है. अगर सरकार द्वारा कारीगरों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिलता है, तो वह दिन दूर नहीं जब मिट्टी बर्तन की कला लुप्त हो जाएगी.

बाड़मेर. रोशनी के पर्व दीपावली को लेकर लोगों ने अपने-अपने घरों में तैयारियां शुरू कर दी हैं. वहीं इसके दीपावली पर जलाने के लिए कुम्हार लोगों ने मिट्टी के दीये बनाने का काम शुरू कर दिया है. शहर के बलदेव नगर सहित अन्य स्थानों पर निवास करने वाले कुम्हार इन दिनों चार्ट पर मिट्टी के दिए बनाने में व्यस्त हैं.

दीवाली के चलते मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे कारीगर

कुम्हारों की मानें तो मिट्टी के भाव बढ़ने और बाजारों में चाइनीज लाइट्स की उपलब्धता के चलते मिट्टी के दीयों की बिक्री पर असर पड़ा है. धीरे-धीरे मिट्टी के दीयों की बिक्री में कमी आई है. लोगों को चाइनीज लाइट्स उनके द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीयों की अपेक्षा सस्ते लगते हैं.

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मिट्टी के दीए बनाने वाले कुम्हार लालाराम ने बताया कि पहले बाड़मेर में 10 परिवार मिट्टी के दीए बनाने का काम करते थे. लेकिन अब बाजार में मिट्टी के दीयों की बिक्री कम होने के चलते 8 परिवारों ने काम बंद कर दिया है. अब केवल दो परिवार ही मिट्टी के दीए बना रहे हैं.

इस काम में कुम्हारों को लागत के अनुसार आमदनी नहीं हो पाती है. जिससे घर परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो जाता है. नई पीढ़ी के बच्चे अब चाक चलाना पसंद नहीं करते हैं. आने वाले दिनों में ये कारीगरी लुप्त हो सकती है. अगर सरकार द्वारा कारीगरों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिलता है, तो वह दिन दूर नहीं जब मिट्टी बर्तन की कला लुप्त हो जाएगी.

Intro:बाड़मेर

मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे कुम्हार कारीगर, चाइनीस लाइट के चलते बाजारों में कम हो रही है दीपक की मांग

रोशनी के पर्व दीपावली को लेकर काउंटडाउन शुरू हो गया है तो वहीं इस रोशनी के पर्व में चार चांद लगाने के लिए कुम्हार जाति के लोग मिट्टी के दीए बनाने में जुट गए हैं हालांकि चाइनीस लाइटों के सामने पारंपरिक दीयों की चमक फीकी होती जा रही है जिसके चलते कुम्हार परिवारों के लोगों को आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ रहा है


Body:रोशनी का पर्व दीपावली के जैसे जैसे नजदीक आ रहा है इसको लेकर हिंदू समुदाय के लोग जहां घरों एवं मंदिरों की साफ सफाई में जुटे हैं वहीं रोशनी की जगमगाहट में चार चांद लगाने के लिए इन दिनों कुम्हार अपने पूरे परिवार के साथ मिट्टी के दीए बनाने में जुटे हुए हैं दीपावली की सुगबुगाहट के साथ ही इन दिनों कुमार जी जान से जुटे हुए हैं वे जुटे हुए हैं दीपों के त्योहार दीपावली पर शहर गांव और ढाणी को रोशन करने के लिए दिए बनाने में बाड़मेर शहर के बलदेव नगर सहित अन्य स्थानों पर निवास करने वाले कुम्हार इन दिनों चार्ट पर मिट्टी के दीए बनाने में व्यस्त हैं हालांकि उनके चेहरों पर बरसों पहले जैसी खुशी तो नहीं है फिर भी उम्मीद है कि उनकी मेहनत से बने इको फ्रेंडली दीपों को की अच्छी बिक्री होगी कुम्हारों की माने तो मिट्टी के भाव बढ़ने और बाजारों में चाइनीस लाइट्स की उपलब्धता के चलते मिट्टी के दीयों की बिक्री पर असर पड़ा है धीरे-धीरे मिट्टी के दीयों की बिक्री में कमी आई है इन सबके बावजूद भी कुम्हार अपने पूरे परिवार के साथ चाक पर जुटे नजर आ रहे हैं ताकि दीपको के त्यौहार पर बाड़मेर वासियों को मिट्टी के दिए उपलब्ध करवाए जा सके


Conclusion:मिट्टी के दीए बनाने वाले कुम्हारों की माने तो पहले बाड़मेर में 10 परिवार मिट्टी के दीए बनाने का काम करता था लेकिन अब बाजार में मिट्टी के दीयों की बिक्री कम होने के चलते 8 परिवारों ने काम बंद कर दिया है अब केवल दो परिवार ही मिट्टी के दीए बना रहे है उन्हे लागत के अनुसार आमदनी नहीं हो पाती है जिसे घर परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल हो जाता है नई युवा पीढ़ी अब इस चाक पर चलना पसंद नहीं करते हैं आने वाले दिनों में ये कारीगरी लुप्त हो सकती है अगर सरकार द्वारा कारीगरों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिलता है तो वह दिन दूर नहीं जब मिट्टी बर्तन की कला लुप्त हो जाएगी

बाईट - लालाराम, कारीगर

बाईट - पीराराम ,कारीगर
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