बाड़मेर. रूप सिंह राठौड़ अब तक करीब एक दर्जन से ज्यादा देशों में घुड़सवारी प्रतियोगिताओं में बाजी मार चुके हैं. वे बताते हैं कि घुड़सवारी का शौक उनकी कई पीढ़ियों से लगातार चला आ रहा है. इसलिए उनके खून में भी घुड़सवारी का शौक है. पहले जमाने में जब गाड़ियां या बड़े वाहन नहीं होते थे तो यही घोड़े युद्ध में राजा, महाराजाओं के लिए सवारी का काम करते थे. अब जमाना बदल गया है, लेकिन कुछ हमारे जैसे चुनिंदा लोग आज भी घुड़सवारी करते हैं.
उन्होंने कहा कि मैं जब तक दिन में तीन बार घुड़सवारी नहीं कर लेता तब तक मुझे रात को नींद नहीं आती है. मैं अपने बच्चों को Parle G बिस्किट खिला सकता हूं, लेकिन घोड़ों को बादाम, घी, दूध खिलाना जरूरी समझता हूं, क्योंकि सबकुछ घोड़े की खुराक पर निर्भर करता है. जब भी रेस होती है, उससे पहले कई दिनों तक घोड़ों को पहले अच्छी डाइट के साथ ही घुड़सवारी सुबह शाम करनी पड़ती है, ताकि जब रेस हो तो घोड़ा अपना पूरा दमखम प्रतियोगिता में दिखाए.
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रूप सिंह ने आगे बताया कि मेरे पास जो घोड़ा है उसका नाम बाज है. यह सिंधी नस्ल का घोड़ा है, शायद अब यह नस्ल भारत में बहुत कम है. इस घोड़े की कीमत एक करोड़ से भी ज्यादा है. अपने इंडिया में तो इतनी रेस नहीं होती है, लेकिन विदेशों में तो घुड़सवारी पर करोड़ों रुपए की जीत होती है. राठौड़ बताते हैं कि इसे रखने के लिए मैंने जिला मुख्यालय पर अलग से फार्म हाउस बना रखा है और इसको पालने के लिए भी हसन खान, जिप्सी तामलियार को राइटर रख रखा है. हजारों रुपए महीने के खर्चा आता है. बस मेरा यह जुनून है, जब तक मेरी सांस चलेगी तब तक मैं इसी तरीके से घुड़सवारी करता रहूंगा.
सिंधी नस्ल के घोड़े सबसे तेज...
जैसलमेर मरू महोत्सव मेले की सबसे तेज रेवाल घुड़दौड़ में बाड़मेर के रूप सिंह खारा के 'बाज' ने घुड़सवारी में देश के लाखों और करोड़ों रुपए की घोड़ों को पीछे छोड़ दिया. जिसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यह सिंधी नस्ल का घोड़ा है. सिंधी नस्ल के घोड़े घुड़सवारी में सबसे तेज भागते हैं. रूप सिंह राठौड़ बताते हैं कि घुड़सवारी को लेकर सरकार चिंतित नहीं है, जिसके चलते ही घुड़सवारी की कला लुप्त होती जा रही है.