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बारिश के लिए लोक-रीति : बाड़मेर में किसानों ने किया इंद्र देव को प्रसन्न करने का जतन...वर्षा के लिए सैंकड़ों साल पुरानी परंपरा का सहारा

मारवाड़ के रेगिस्तान में अकाल की आहट सुनाई दे रही है. पूरा राजस्थान बारिश से तर हो गया. लेकिन बाड़मेर में एक बूंद पानी नहीं गिरा. ग्रामवासी समझते हैं कि यह इंद्र देवता का कोप है. लिहाजा अब इंद्र को प्रसन्न करने के जतन किये जा रहे हैं.

बारिश के लिए लोक-रीति
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Published : Aug 9, 2021, 7:20 PM IST

बाड़मेर. राजस्थान के कई संभागों में इंद्र देव ने जमकर घन बरसाये. नदी नाले सब उफान पर रहे. कहीं-कहीं बाढ़ का मंजर भी दिखाई दिया. लेकिन पश्चिमी राजस्थान का मारवाड़ इलाका सूखा का सूखा रह गया. अब यहां परंपरागत ढंग से इंद्र देव को मनाने की कवायदें की जा रही हैं.

थार के रेगिस्तान में मारवाड़ इलाके का बाड़मेर जिला बारिश के लिए तरस गया है. आलम ये है कि किसानों को अब लग रहा है कि अगर बारिश नहीं हुई तो अकाल दस्तक दे देगा. सावन की तीसरा सोमवार भी सूखा ही गुजर गया. इसीलिए इंद्र देवता को मनाने के लिए पुरानी परंपराओं का सहारा लिया जा रहा है.

बाड़मेर के किसानों ने बारिश के लिए निभाई परंपरा

पढ़ें- हाड़ौती में बाढ़ के हालात, लेकिन मुख्यमंत्री डेढ़ साल से क्वारेंटाइन...बिरला-चौहान से लें सीख : भाजपा

बाड़मेर निवासी देवराज के अनुसार जब बारिश नहीं होती तो हम पुरानी परंपरा के अनुसार नाड़ी में सात धान इक्कठे करके चारों दिशाओं में फैला देते हैं. अनाजों के पकवान बनाकर इंद्र देवता को भोग लगाते हैं. अगर इंद्र देवता नाराज हों तो इस विधि से हम उन्हें मनाते हैं. किसानों को उम्मीद है कि यह परंपरा निभाने से उनके सूखे इलाकों में भी भगवान इंद्र मेहरबानी करेंगे और बारिश बरसायेंगे.

किसानों के अनुसार यह परंपरा निभाने के लिए सभी ग्रामीण चंदा इकट्ठा करते हैं. इस भोग का चढ़ावा सबसे पहले इंद्र देवता को चढ़ता है. इंद्र को भोग लगाने के बाद ये किसान उस पकवान को प्रसाद के रूप में आपस में बांट लेते हैं. सावन सूखा निकलने से चिंतित किसान किसी भी तरह कुदरत को मना लेना चाहते हैं. इस इलाके में यूं तो बारिश कम ही होती है लेकिन इस बार बादलों ने पश्चिमी इलाके की पूरी तरह उपेक्षा कर दी है. खासतौर से मारवाड़ की.

बाड़मेर. राजस्थान के कई संभागों में इंद्र देव ने जमकर घन बरसाये. नदी नाले सब उफान पर रहे. कहीं-कहीं बाढ़ का मंजर भी दिखाई दिया. लेकिन पश्चिमी राजस्थान का मारवाड़ इलाका सूखा का सूखा रह गया. अब यहां परंपरागत ढंग से इंद्र देव को मनाने की कवायदें की जा रही हैं.

थार के रेगिस्तान में मारवाड़ इलाके का बाड़मेर जिला बारिश के लिए तरस गया है. आलम ये है कि किसानों को अब लग रहा है कि अगर बारिश नहीं हुई तो अकाल दस्तक दे देगा. सावन की तीसरा सोमवार भी सूखा ही गुजर गया. इसीलिए इंद्र देवता को मनाने के लिए पुरानी परंपराओं का सहारा लिया जा रहा है.

बाड़मेर के किसानों ने बारिश के लिए निभाई परंपरा

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बाड़मेर निवासी देवराज के अनुसार जब बारिश नहीं होती तो हम पुरानी परंपरा के अनुसार नाड़ी में सात धान इक्कठे करके चारों दिशाओं में फैला देते हैं. अनाजों के पकवान बनाकर इंद्र देवता को भोग लगाते हैं. अगर इंद्र देवता नाराज हों तो इस विधि से हम उन्हें मनाते हैं. किसानों को उम्मीद है कि यह परंपरा निभाने से उनके सूखे इलाकों में भी भगवान इंद्र मेहरबानी करेंगे और बारिश बरसायेंगे.

किसानों के अनुसार यह परंपरा निभाने के लिए सभी ग्रामीण चंदा इकट्ठा करते हैं. इस भोग का चढ़ावा सबसे पहले इंद्र देवता को चढ़ता है. इंद्र को भोग लगाने के बाद ये किसान उस पकवान को प्रसाद के रूप में आपस में बांट लेते हैं. सावन सूखा निकलने से चिंतित किसान किसी भी तरह कुदरत को मना लेना चाहते हैं. इस इलाके में यूं तो बारिश कम ही होती है लेकिन इस बार बादलों ने पश्चिमी इलाके की पूरी तरह उपेक्षा कर दी है. खासतौर से मारवाड़ की.

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