बाड़मेर. दुश्मनों को धूल चटाने में माहिर भारतीय जांबाज सिपाहियों की देश में कमी नहीं है. मां भारती के ये लाल दूध का कर्ज भी अदा करने का साहस रखते हैं.मां भारती के ये लाल दूध का कर्ज भी अदा करने का साहस रखते हैं. हम बात कर रहे हैं भारतीय सेना की. जिसने राजस्थान को एक ऐसा तोहफा दिया कि वह एक मिशाल बन गया.
दरअसल ये बात वर्ष 1965 की है. जब भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध हुआ था. इस दौरान रेगिस्तान में सेना फंस गई थी. उसे वहां से निकलने का रास्ता तक पता नहीं था. सैनिक अपने साथ खाने पीने का जो समान ले गए थे वह भी खत्म हो चुका था. ऐसे में दुश्मन देश की सेना ने मोर्चा लेना जवानों के लिए कड़ी चुनौती थी.
इस मौके पर राजस्थान के तामलोर गांव के ग्रामीण सेना के काम आए. गांव वालों ने जवानों को खाने पीने के सामान मुहैया कराए. सरपंच इंदु सिंह कहते हैं कि ग्रामीणों में देशभक्ति का गजब का जज्बा था. जिसे देख सेना का हौसला सातवें आसमान पर था. ग्रामीणों की सहायता पर सेना के अधिकारियों ने कहा कि वे उनके लिए कुछ करना चाहते हैं. तब ग्रामीणों ने वहां पेयजल की समस्या का जिक्र किया. जिसके बाद सेना के अधिकारियों ने इलाके में एक तालाब बनाने की योजना बनाई. लेकिन जमीन पथरीली थी. जिसके चलते खुदाई करना संभव नहीं हो सका. इस पर सेना ने वहां पर सुरंग करके ब्लास्ट कर और तालाब बनाया.
यह काम भारतीय सेना ने अपने खर्चे पर नहीं किया था. बल्कि इसमें उन विस्फोटकों का प्रयोग किया गया था, जो युद्ध के दौरान पाकिस्तान से आर्मी कैंप से छीनकर लाया गया था. इस तालाब से पिछले 54 वर्षों से मीठा पानी निकल रहा है. जिसका लाभ 10 गांव के लोगों को मिलता है. साथ ही इससे यहां के मवेशियों की प्यास बुझती है. पिछले दो साल से क्षेत्र में सामान्य से कम बारिश हुई है. जिसके चलते यह तालाब सूख गया है. बारिश के बाद तालाब में पानी भर जाता है. एक बार पानी भरने के बाद साल भर तालाब नहीं सूखता. तालाब के मीठे पानी का उपयोग इलाके के 10 गांव के साथ ही सीमा सुरक्षा बल जवान भी करते हैं.
बता दें कि पुलवामा में बीएसएफ के काफिले पर आतंकी हमले के बाद सीमा पर तनाव की स्थिति है. भारत पाक सीमा से सटे तामलोर गांव के लोगों के लोगों का जज्बा कायम है. वे कहते हैं कि देश के खिलाफ हर एक गतिविधि का जवाब देने के लिए भारतीय सेना के साथ हैं.