शाहबाद (बारां). जिले के शाहबाद किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में ज्यादातर सहरिया जनजाति के लोग निवास करते हैं, लेकिन रोजगार के अभाव में ये लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं. ग्रामीण अपने परिवार के साथ जयपुर, कोटा में मजदूरी कर रहे हैं. कई लोग दूसरे राज्यों का भी रूख कर रहे हैं. वे गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा के कारखानों में मेहनत मजदूरी कर रहे हैं.
3 साल से मनरेगा के तहत काम बंद
ग्रामीणों का कहना है, कि रोजगार नहीं होने से भूखे मरने की स्थिति बनती जा रही है. सरकार से मिलने वाली राशन सामग्री से गुजर बसर नहीं होता है. कई बार तो दो-दो महीने तक राशन सामग्री का वितरण नहीं हो पाता है. मनरेगा के तहत भी लोगों को काम नहीं मिल रहा है. पिछले 3 साल से काम बंद पड़े हैं. ऐसे में रोजी-रोटी का संकट है.
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बच्चों को नहीं मिल रही अच्छी शिक्षा
ग्रामीणों का कहना है, कि बच्चों को लेकर भी परिवार के लोग काम धंधे के जुगाड़ में पलायन कर जाते हैं. जिससे बच्चों की शिक्षा का स्तर भी बिगड़ा हुआ है. परिवार के लोग घर में एक बुजुर्ग को छोड़ देते हैं, जो घर की रखवाली करता है. कई परिवार तो ऐसे हैं, जो कई सालों तक अपने गांव वापस नहीं आ पाते हैं.
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कर्ज से परेशान हैं ग्रामीण
खेती-बाड़ी ठीक नहीं होने से भी लोगों पर कर्ज बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते वे पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. मझारी गांव की सहरिया बस्ती में जब ईटीवी भारत पहुंचा तो बस्ती सुनसान दिखाई दी. गांव में ज्यादातर घरों में ताले लटके हुए दिखाई दिए. कुछ लोग बस्ती में मिले तो उन्होंने अपनी समस्या बताई.
जनप्रतिनिधि का भी नहीं मिल रहा साथ!
शाहबाद किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में ज्यादातर सहरिया समुदाय के लोग निवास करते हैं और विधायक भी सहरिया समुदाय से ही हैं, लेकिन लोगों का आरोप है, कि सहरिया परिवार के लोगों को सरकार की योजनाओं का ठीक तरीके से लाभ नहीं मिल रहा है, जिसके चलते लोगों में आक्रोश है.
चुनाव के समय ही आते हैं विधायक-सांसद
ग्रामीणों के मुताबिक गांव में कोई जनप्रतिनिधि या अधिकारी हमारी सुध लेने नहीं आते हैं. जब चुनाव का समय आता है, तो विधायक,सांसद, पंच-सरपंच गांव में आते हैं, लेकिन चुनाव के बाद कोई भी गांव में आकर उनकी समस्या नहीं सुनता है.