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स्पेशल स्टोरी: बांसवाड़ा में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का रियलिटी चेक - प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना

ईटीवी भारत की टीम बुधवार को शहर की श्यामपुरा बस्ती में पहुंची. इस बस्ती में ज्यादातर लोग या तो आदिवासी हैं या फिर गरीब. यहां प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का रियलिटी चेक किया गया तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. यहां ज्यादातर परिवार इस योजना का लाभ उठा चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद कई घरों में महिलाएं कच्चे घरों में चूल्हा फूंकती नजर आईं. पढ़ें विस्तृत खबर....

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उज्ज्वला योजना के बाद भी नहीं बदली आम जिन्दगी
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Published : Feb 19, 2020, 6:13 PM IST

बांसवाड़ा। केंद्र सरकार द्वारा महिलाओं को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना बढ़ती महंगाई की भेंट चढ़ती दिख रही है. रसोई गैस के दाम कभी घट जाते हैं तो कभी अचानक बढ़ जाते हैं. ऐसे में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती है.

उज्ज्वला योजना के बाद भी नहीं बदली आम जिन्दगी

सब्सिडी आने में दो सप्ताह तक का समय लग जाता है, ऐसे में गरीब लोगों के लिए यह आर्थिक रूप से और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है. साधारण शब्दों में कहा जाए तो एक तरह से गरीब परिवार इस योजना को इमरजेंसी सर्विस के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. 70% से अधिक लोग तो चार-पांच माह तक रिफलिंग के लिए ही नहीं जाते. वहीं रसोई गैस के स्थान पर अभी भी काफी महिलाएं पारम्परिक चूल्हे का ही इस्तेमाल करना ज्यादा बेहतर मानती हैं.

ईटीवी भारत की टीम बुधवार को शहर की श्यामपुरा बस्ती में पहुंची. इस बस्ती में ज्यादातर लोग या तो आदिवासी हैं या फिर गरीब. यहां प्रधानमंत्री उज्ज्वला गैस योजना का रियलिटी चेक किया गया तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. यहां ज्यादातर परिवार इस योजना का लाभ उठा चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद कई घरों में महिलाएं कच्चे घरों में चूल्हा फूंकती नजर आईं.

किसी के घर पर सिलेंडर नहीं था, तो किसी के घर पर यह सिर्फ शो-पीस की तरह दिखाई दे रहा था. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि रसोई गैस का इस्तेमाल किस तरह किया जा रहा है. यहां पर अधिकांश घरों में गैस चूल्हे चमचमाते हुए नजर आए. इससे साफ जाहिर था कि इनका उपयोग बहुत कम या ना के बराबर किया जा रहा है.

कुछ घरों में तो गैस सिलेंडर महीनों से खाली पड़े नजर आए. यहां रहने वाले काफी लोग आजीविका के लिए खेती-बाड़ी पर ही निर्भर हैं. ऐसे में उनके लिए गैस सिलेंडर अफोर्ड कर पाना संभव नहीं होता. हालांकि इस योजना के तहत सब्सिडी मिलती है, लेकिन इसे आने में दो सप्ताह तक का समय लग जाता है. अब एक बार तो इन लोगों को एजेंसी पर पूरी राशि जमा करवानी ही पड़ती है, जो इन लोगों के बस में नहीं है.

यह भी पढे़ंः परिवहन विभाग घूसकांड: खुद को बचाने के लिए सिक्योरिटी गार्ड के फोन से होती थी डील, एक डायरी में छुपे कई राज

श्यामपुरा बस्ती में रहने वाली जीवनी मईड़ा ने बताया कि हम तो खेती-बाड़ी पर निर्भर हैं. आए दिन सिलेंडर के भाव बढ़ जाते हैं तो क्या करें? परिवार में 7 सदस्य हैं और इस हिसाब से एक सिलेंडर 20-25 दिन ही चल पाता है.

वहीं जब रमेश चंद्र से बातचीत की तो उनका कहना था कि 700 रुपए का सिलेंडर का कहां से लाएं? इसे बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है कि रमेश चंद्र ने सिलेंडर की रिफिलिंग कब करवाई होगी. अर्थात जब सिलेंडर के दाम 700 रुपए थे तब उसने सिलेंडर भरवाया होगा. उन्होंने कहा कि पूरा परिवार खेती-बाड़ी पर निर्भर है और हर महीने सिलेंडर लाना हमारे बूते में नहीं है.

एक तिहाई उपभोक्ता शहर के....

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत बांसवाड़ा जिले में 27 अगस्त, 2019 तक कुल 1,94,676 परिवारों को कनेक्शन जारी किए जा चुके हैं. जिले में कुल 22 गैस वितरक हैं, जिनमें से चार बांसवाड़ा शहर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. बांसवाड़ा शहर में कुल 65,173 परिवार योजना का लाभ उठा रहे हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 1,29,503 परिवार इसके दायरे में हैं.

बांसवाड़ा। केंद्र सरकार द्वारा महिलाओं को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना बढ़ती महंगाई की भेंट चढ़ती दिख रही है. रसोई गैस के दाम कभी घट जाते हैं तो कभी अचानक बढ़ जाते हैं. ऐसे में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती है.

उज्ज्वला योजना के बाद भी नहीं बदली आम जिन्दगी

सब्सिडी आने में दो सप्ताह तक का समय लग जाता है, ऐसे में गरीब लोगों के लिए यह आर्थिक रूप से और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है. साधारण शब्दों में कहा जाए तो एक तरह से गरीब परिवार इस योजना को इमरजेंसी सर्विस के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. 70% से अधिक लोग तो चार-पांच माह तक रिफलिंग के लिए ही नहीं जाते. वहीं रसोई गैस के स्थान पर अभी भी काफी महिलाएं पारम्परिक चूल्हे का ही इस्तेमाल करना ज्यादा बेहतर मानती हैं.

ईटीवी भारत की टीम बुधवार को शहर की श्यामपुरा बस्ती में पहुंची. इस बस्ती में ज्यादातर लोग या तो आदिवासी हैं या फिर गरीब. यहां प्रधानमंत्री उज्ज्वला गैस योजना का रियलिटी चेक किया गया तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. यहां ज्यादातर परिवार इस योजना का लाभ उठा चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद कई घरों में महिलाएं कच्चे घरों में चूल्हा फूंकती नजर आईं.

किसी के घर पर सिलेंडर नहीं था, तो किसी के घर पर यह सिर्फ शो-पीस की तरह दिखाई दे रहा था. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि रसोई गैस का इस्तेमाल किस तरह किया जा रहा है. यहां पर अधिकांश घरों में गैस चूल्हे चमचमाते हुए नजर आए. इससे साफ जाहिर था कि इनका उपयोग बहुत कम या ना के बराबर किया जा रहा है.

कुछ घरों में तो गैस सिलेंडर महीनों से खाली पड़े नजर आए. यहां रहने वाले काफी लोग आजीविका के लिए खेती-बाड़ी पर ही निर्भर हैं. ऐसे में उनके लिए गैस सिलेंडर अफोर्ड कर पाना संभव नहीं होता. हालांकि इस योजना के तहत सब्सिडी मिलती है, लेकिन इसे आने में दो सप्ताह तक का समय लग जाता है. अब एक बार तो इन लोगों को एजेंसी पर पूरी राशि जमा करवानी ही पड़ती है, जो इन लोगों के बस में नहीं है.

यह भी पढे़ंः परिवहन विभाग घूसकांड: खुद को बचाने के लिए सिक्योरिटी गार्ड के फोन से होती थी डील, एक डायरी में छुपे कई राज

श्यामपुरा बस्ती में रहने वाली जीवनी मईड़ा ने बताया कि हम तो खेती-बाड़ी पर निर्भर हैं. आए दिन सिलेंडर के भाव बढ़ जाते हैं तो क्या करें? परिवार में 7 सदस्य हैं और इस हिसाब से एक सिलेंडर 20-25 दिन ही चल पाता है.

वहीं जब रमेश चंद्र से बातचीत की तो उनका कहना था कि 700 रुपए का सिलेंडर का कहां से लाएं? इसे बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है कि रमेश चंद्र ने सिलेंडर की रिफिलिंग कब करवाई होगी. अर्थात जब सिलेंडर के दाम 700 रुपए थे तब उसने सिलेंडर भरवाया होगा. उन्होंने कहा कि पूरा परिवार खेती-बाड़ी पर निर्भर है और हर महीने सिलेंडर लाना हमारे बूते में नहीं है.

एक तिहाई उपभोक्ता शहर के....

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत बांसवाड़ा जिले में 27 अगस्त, 2019 तक कुल 1,94,676 परिवारों को कनेक्शन जारी किए जा चुके हैं. जिले में कुल 22 गैस वितरक हैं, जिनमें से चार बांसवाड़ा शहर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. बांसवाड़ा शहर में कुल 65,173 परिवार योजना का लाभ उठा रहे हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 1,29,503 परिवार इसके दायरे में हैं.

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