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स्पेशल: इस अस्पताल की ऐसी मजबूरी, मरीजों को नहीं मिल पाती सांसों की डोर

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Published : Jan 21, 2020, 2:39 PM IST

Updated : Jan 21, 2020, 4:21 PM IST

कहने को तो बांसवाड़ा में जिला चिकित्सालय है, लेकिन मानव संसाधन के लिहाज से इसकी स्थिति बदतर कही जा सकती है. दुर्घटना हो या फिर जानलेवा हार्ट अटैक का कोई मामला, विशेषज्ञों के अभाव में मरीज को करीब पौने 200 किलोमीटर दूर उदयपुर भेजना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है. जिससे कई बार रास्ते में ही मरीज दम तोड़ देते हैं.

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बांसवाड़ा चिकित्सालय में चिकित्सकों की कमी

बांसवाड़ा. शहर में जिला चिकित्सालय स्थित है, जिसमें आवश्यक उपकरण भी उपलब्ध हैं. लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले डॉक्टर और प्रशिक्षित स्टॉफ की लंबे अरसे से कमी चल रही है. जिससे लोगों को इलाज के लिए उदयपुर भेजना पड़ता है. वहीं लंबा रास्ता होने से कई मरीज तो मौत को भी गले लगा लेते हैं. ऐसे में जिले के लोगों के लिए लाखों के यह उपकरण बेमानी साबित हो रहे हैं.

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बाइक एक्सीडेंट में घायल होते हैं सबसे ज्यादा लोग...

20 लाख लोगों पर मात्र 152 डॉक्टर...

आबादी के लिहाज से देखें तो ग्रामीण क्षेत्र में 20 लाख लोगों पर मात्र 152 डॉक्टर हैं. उनमें से भी 94 पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं. इसके चलते सारा भार महात्मा गांधी चिकित्सालय बांसवाड़ा पर आ जाता है, जिसकी पहले से भी हालत खराब है. जिला चिकित्सालय में कहने को डॉक्टरों के 91 पद हैं, परंतु 40 से अधिक पद रिक्त चल रहे हैं. जिसका खामियाजा जिले की गरीब जनता को भुगतना पड़ रहा है. जिनके लिए रेफरल का कार्ड बनाना मजबूरी बन चुका है.

रोजाना आते हैं 10 से 15 एक्सीडेंट केस...

बांसवाड़ा जिले में सबसे अधिक बाइक एक्सीडेंट में लोग घायल होते हैं. प्रतिदिन 10 से 15 केस एक्सीडेंट के आते हैं, लेकिन यहां ऑर्थोपेडिक में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है. ईसीजी चेक करने के बाद मरीज को उदयपुर या फिर निजी चिकित्सालय भेजना पड़ जाता है. बात करें बच्चों के इलाज की तो यहां पर एक महीने से अधिक उम्र के बच्चों के लिए कोई गहन चिकित्सा इकाई नहीं है और सामान्य बच्चों की तरह उनके उपचार के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

बांसवाड़ा चिकित्सालय में चिकित्सकों की कमी...

नवजात बच्चों का संख्या अधिक...

एसएनसीयू में पहले से ही नवजात बच्चों का संख्या अधिक है. हालत यह है कि अट्ठारह बेड के एसएनसीयू में 30 से 35 बच्चों को रखना पड़ रहा है. ऐसी स्थिति में 1 महीने से अधिक के बच्चों को मेडिकल कॉलेज रेफर करना पड़ रहा है. शिशु गहन चिकित्सा इकाई की स्थापना के साथ स्पेशलिस्ट डॉक्टर की व्यवस्था होने पर ऐसे बच्चों को दूरदराज के हॉस्पिटल में भेजने की समस्या से मुक्ति मिल सकती है.

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एसएनसीयू में नवजात बच्चों का संख्या अधिक

हार्ट अटैक की समस्या कॉमन...

वहीं हार्ट अटैक की समस्या कॉमन हो चुकी है. प्रतिदिन यहां तीन से चार मामले इस प्रकार के पहुंचते हैं, लेकिन हॉस्पिटल प्रशासन के पास ऐसे मरीजों को भी ईसीजी और ब्लड प्रेशर चेकअप के बाद रोगी को रेफर करना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है. इंसेंटिव कार्डियक केयर यूनिट की स्थापना के साथ दो से तीन सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर उपलब्ध कराए जाने की स्थिति में जिला चिकित्सालय में ही एंजियोग्राफी और एनजीओ प्लास्टिक की सुविधा मिल सकती है.

रेफरल चिकित्सालय...

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि चिकित्सा व्यवस्था के नाम पर जिला चिकित्सालय में विशेषज्ञ डॉक्टरों का लंबे समय से अभाव बना हुआ है. इसके चलते हॉस्पिटल को रेफरल चिकित्सालय कहा जाने लगा है. पूर्व नर्सिंग अधीक्षक शंकर लाल यादव के अनुसार कार्डियक केयर का मामला हो या फिर हड्डी रोग का कोई मामला, हमारे पास संसाधन उपलब्ध है. लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले चिकित्सकों का सदैव से ही अभाव रहा है. पॉपुलेशन के अनुसार यहां डॉक्टर और स्टाफ लगाया जाना जरूरी है.

यह भी पढ़ें : Special: कभी धूप, कभी छांव के बीच सचिन का 'छक्का', लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहने का Record

फिजिशियन डॉक्टर देवेश गुप्ता का कहना है कि मरीजों का लोड लगातार बढ़ रहा है. लेकिन उसके मुकाबले मानव संसाधन नहीं बढ़ रहा है और उसका स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ रहा है. हर विभाग में स्पेशलिस्ट डॉक्टर का पद होना जरूरी है. समाजसेवी राहुल सराफ का मानना है कि न्यूरो फिजिशियन और न्यूरो सर्जन के साथ ऑर्थोपेडिक सर्जन लगा दिया जाए तो लोगों को अनावश्यक रूप से अन्यत्र भेजने से निजात मिल सकती है.

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उपचार के इंतजार में मरीज

जिला चिकित्सालय के प्रभारी डॉक्टर नंदलाल चरपोटा ने भी माना कि उनके पास संसाधन तो हैं, लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है. अगर इनके पद स्वीकृत कर डॉक्टर भेज दिया जाए तो आदिवासी बहुल्य इस जिले के लोगों को काफी हद तक राहत दी जा सकती है.

बांसवाड़ा. शहर में जिला चिकित्सालय स्थित है, जिसमें आवश्यक उपकरण भी उपलब्ध हैं. लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले डॉक्टर और प्रशिक्षित स्टॉफ की लंबे अरसे से कमी चल रही है. जिससे लोगों को इलाज के लिए उदयपुर भेजना पड़ता है. वहीं लंबा रास्ता होने से कई मरीज तो मौत को भी गले लगा लेते हैं. ऐसे में जिले के लोगों के लिए लाखों के यह उपकरण बेमानी साबित हो रहे हैं.

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बाइक एक्सीडेंट में घायल होते हैं सबसे ज्यादा लोग...

20 लाख लोगों पर मात्र 152 डॉक्टर...

आबादी के लिहाज से देखें तो ग्रामीण क्षेत्र में 20 लाख लोगों पर मात्र 152 डॉक्टर हैं. उनमें से भी 94 पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं. इसके चलते सारा भार महात्मा गांधी चिकित्सालय बांसवाड़ा पर आ जाता है, जिसकी पहले से भी हालत खराब है. जिला चिकित्सालय में कहने को डॉक्टरों के 91 पद हैं, परंतु 40 से अधिक पद रिक्त चल रहे हैं. जिसका खामियाजा जिले की गरीब जनता को भुगतना पड़ रहा है. जिनके लिए रेफरल का कार्ड बनाना मजबूरी बन चुका है.

रोजाना आते हैं 10 से 15 एक्सीडेंट केस...

बांसवाड़ा जिले में सबसे अधिक बाइक एक्सीडेंट में लोग घायल होते हैं. प्रतिदिन 10 से 15 केस एक्सीडेंट के आते हैं, लेकिन यहां ऑर्थोपेडिक में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है. ईसीजी चेक करने के बाद मरीज को उदयपुर या फिर निजी चिकित्सालय भेजना पड़ जाता है. बात करें बच्चों के इलाज की तो यहां पर एक महीने से अधिक उम्र के बच्चों के लिए कोई गहन चिकित्सा इकाई नहीं है और सामान्य बच्चों की तरह उनके उपचार के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

बांसवाड़ा चिकित्सालय में चिकित्सकों की कमी...

नवजात बच्चों का संख्या अधिक...

एसएनसीयू में पहले से ही नवजात बच्चों का संख्या अधिक है. हालत यह है कि अट्ठारह बेड के एसएनसीयू में 30 से 35 बच्चों को रखना पड़ रहा है. ऐसी स्थिति में 1 महीने से अधिक के बच्चों को मेडिकल कॉलेज रेफर करना पड़ रहा है. शिशु गहन चिकित्सा इकाई की स्थापना के साथ स्पेशलिस्ट डॉक्टर की व्यवस्था होने पर ऐसे बच्चों को दूरदराज के हॉस्पिटल में भेजने की समस्या से मुक्ति मिल सकती है.

बांसवाड़ा न्यूज, banswara latest news,  जिला चिकित्सालय,  आवश्यक उपकरण उपलब्ध, necessary equipment available, डॉक्टरों की कमी, District hospital, shortage of doctors, special story
एसएनसीयू में नवजात बच्चों का संख्या अधिक

हार्ट अटैक की समस्या कॉमन...

वहीं हार्ट अटैक की समस्या कॉमन हो चुकी है. प्रतिदिन यहां तीन से चार मामले इस प्रकार के पहुंचते हैं, लेकिन हॉस्पिटल प्रशासन के पास ऐसे मरीजों को भी ईसीजी और ब्लड प्रेशर चेकअप के बाद रोगी को रेफर करना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है. इंसेंटिव कार्डियक केयर यूनिट की स्थापना के साथ दो से तीन सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर उपलब्ध कराए जाने की स्थिति में जिला चिकित्सालय में ही एंजियोग्राफी और एनजीओ प्लास्टिक की सुविधा मिल सकती है.

रेफरल चिकित्सालय...

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि चिकित्सा व्यवस्था के नाम पर जिला चिकित्सालय में विशेषज्ञ डॉक्टरों का लंबे समय से अभाव बना हुआ है. इसके चलते हॉस्पिटल को रेफरल चिकित्सालय कहा जाने लगा है. पूर्व नर्सिंग अधीक्षक शंकर लाल यादव के अनुसार कार्डियक केयर का मामला हो या फिर हड्डी रोग का कोई मामला, हमारे पास संसाधन उपलब्ध है. लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले चिकित्सकों का सदैव से ही अभाव रहा है. पॉपुलेशन के अनुसार यहां डॉक्टर और स्टाफ लगाया जाना जरूरी है.

यह भी पढ़ें : Special: कभी धूप, कभी छांव के बीच सचिन का 'छक्का', लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहने का Record

फिजिशियन डॉक्टर देवेश गुप्ता का कहना है कि मरीजों का लोड लगातार बढ़ रहा है. लेकिन उसके मुकाबले मानव संसाधन नहीं बढ़ रहा है और उसका स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ रहा है. हर विभाग में स्पेशलिस्ट डॉक्टर का पद होना जरूरी है. समाजसेवी राहुल सराफ का मानना है कि न्यूरो फिजिशियन और न्यूरो सर्जन के साथ ऑर्थोपेडिक सर्जन लगा दिया जाए तो लोगों को अनावश्यक रूप से अन्यत्र भेजने से निजात मिल सकती है.

बांसवाड़ा न्यूज, banswara latest news,  जिला चिकित्सालय,  आवश्यक उपकरण उपलब्ध, necessary equipment available, डॉक्टरों की कमी, District hospital, shortage of doctors, special story
उपचार के इंतजार में मरीज

जिला चिकित्सालय के प्रभारी डॉक्टर नंदलाल चरपोटा ने भी माना कि उनके पास संसाधन तो हैं, लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है. अगर इनके पद स्वीकृत कर डॉक्टर भेज दिया जाए तो आदिवासी बहुल्य इस जिले के लोगों को काफी हद तक राहत दी जा सकती है.

Intro:बांसवाड़ा। कहने को तो बांसवाड़ा में जिला चिकित्सालय है लेकिन मानव संसाधन के लिहाज से स्थिति बदतर कही जा सकती है। दुर्घटना हो या फिर जानलेवा हार्ट अटैक का कोई मामला। विशेषज्ञों के अभाव में मरीज को करीब पौने 200 किलोमीटर दूर उदयपुर भेजना ही एकमात्र विकल्प है। कई बार लंबी दूरी के कारण रास्ते में ही मरीज दम तोड़ देते हैं। विसंगति यह है कि आवश्यक उपकरण यहां उपलब्ध है लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले डॉक्टर और प्रशिक्षित स्टाफ की लंबे अरसे से कमी चल रही है। ऐसे में जिले के लोगों के लिए लाखों के उपकरण भी बेमानी साबित हो रहे हैं।


Body:आबादी के लिहाज से देखें तो ग्रामीण क्षेत्र में 20 लाख लोगों पर मात्र 152 डॉक्टर है उनमें से भी 94 पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं। इसके चलते सारा भार महात्मा गांधी चिकित्सालय बांसवाड़ा पर आ जाता है जिसकी पहले से भी हालत पतली है। जिला चिकित्सालय मे कहने को डॉक्टरों के 91 पद है परंतु 40 से अधिक पद रिक्त चल रहे हैं। इसका खामियाजा जिले की गरीब जनता को भुगतना पड़ रहा है जिन्हें नाक कान गला और हड्डी का मामला हो या फिर हृदयाघात मरीजों को तुरंत रेफरल का कार्ड बनाना मजबूरी बन चुका है। बांसवाड़ा जिले में सबसे अधिक बाइक एक्सीडेंट मे लोग घायल होते हैं। प्रतिदिन 10 से 15 केस एक्सीडेंट के आते हैं लेकिन यहां ऑर्थोपेडिक में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है। ईसीजी चेक करने के बाद मरीज को उदयपुर या फिर निजी चिकित्सालय भेजना पड़ जाता है। वही बात करें बच्चों के इलाज की तो यहां पर एक महीने से अधिक उम्र के बच्चों के लिए कोई गहन चिकित्सा इकाई नहीं है और सामान्य बच्चों की तरह उनके उपचार के अलावा कोई विकल्प नहीं है। एसएनसीयू मैं पहले से ही नवजात बच्चों का लोड अधिक है। हालत यह है कि अट्ठारह बेड के एसएनसीयू में 30 से 35 बच्चों को रखना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में 1 महीने से अधिक के बच्चों को मेडिकल कॉलेज रेफर करना पड़ रहा है। शिशु गहन चिकित्सा इकाई की स्थापना के साथ स्पेशलिस्ट डॉक्टर की व्यवस्था होने पर ऐसे बच्चों को दूरदराज के हॉस्पिटल में भेजने की समस्या से मुक्ति मिल सकती है। वही हार्ट अटैक की समस्या कॉमन हो चुकी है।


Conclusion:प्रतिदिन यहां तीन से चार मामले इस प्रकार के पहुंचते हैं। लेकिन हॉस्पिटल प्रशासन के पास ऐसे मरीजों को भी ईसीजी और ब्लड प्रेशर चेकअप के बाद रोगी को रेफर करना ही एकमात्र विकल्प है। इंसेंटिव कार्डियक केयर यूनिट की स्थापना के साथ दो से तीन सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर उपलब्ध कराए जाने की स्थिति में जिला चिकित्सालय में ही एंजियोग्राफी और एनजीओ प्लास्टिक की सुविधा मिल सकती है। कुल मिलाकर चिकित्सा व्यवस्था के नाम पर जिला चिकित्सालय में विशेषज्ञ डॉक्टरों का लंबे समय से अभाव बना हुआ है इसके चलते हॉस्पिटल को रेफरल चिकित्सालय कहा जाने लगा है। पूर्व नर्सिंग अधीक्षक शंकर लाल यादव के अनुसार कार्डियक केयर का मामला हो या फिर हड्डी रोग का कोई मामला हमारे पास संसाधन उपलब्ध है लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले चिकित्सकों का सदैव से ही अभाव रहा है। सरकार उपलब्ध संसाधनों और उन्हें ऑपरेट करने वाले स्टाफ का सर्वे करवाकर व्यवस्था में परिवर्तन करें तो आदिवासी बाहुल्य इस जिले के लोगों को काफी हद तक राहत दी जा सकती है। पॉपुलेशन के अनुसार डॉक्टर और स्टाफ लगाया जाना जरूरी है। फिजीशियन डॉक्टर देवेश गुप्ता का कहना है कि मरीजों का लोड लगातार बढ़ रहा है लेकिन उसके मुकाबले मानव संसाधन नहीं बढ़ रहा है और उसका स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ रहा है। हर विभाग में स्पेशलिस्ट डॉक्टर का पद होना जरूरी है। समाजसेवी राहुल सराफ का मानना है कि न्यूरो फिजिशियन और न्यूरो सर्जन के साथ ऑर्थोपेडिक सर्जन लगा दिया जाए तो लोगों को अनावश्यक रूप से अन्यत्र भेजने से निजात मिल सकती है। प्रतिदिन ऐसे मामलों में 10 से 15 लोगों को बाहर भेजना पड़ता है। जिला चिकित्सालय के प्रभारी डॉक्टर नंदलाल चरपोटा ने भी माना कि हमारे पास संसाधन तो है लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है। 1 महीने से अधिक के बच्चों को सामान्य बच्चों की तरह उपचार करना पड़ता है उनके लिए गहन चिकित्सा इकाई तो हार्ट अटैक के मामलों में इंसेंटिव कार्डियक केयर यूनिट की स्थापना मरीजों के लिए राहत भरा कदम हो सकता है। हमारे यहां मूल समस्या सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के पद नहीं होना है। इनके पद स्वीकृत कर डॉक्टर भेज दिया जाए तो आदिवासी बहुल इस जिले के लोगों को काफी हद तक राहत दी जा सकती है।

बाइट..... शंकर लाल यादव पूर्व नर्सिंग अधीक्षक
....... डॉक्टर देवेश गुप्ता एमडी फिजीशियन
..…... राहुल सराफ समाजसेवी
......... डॉक्टर नंदलाल चरपोटा पीएमओ महात्मा गांधी चिकित्सालय बांसवाड़ा
Last Updated : Jan 21, 2020, 4:21 PM IST
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