बांसवाड़ा. शहर में जिला चिकित्सालय स्थित है, जिसमें आवश्यक उपकरण भी उपलब्ध हैं. लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले डॉक्टर और प्रशिक्षित स्टॉफ की लंबे अरसे से कमी चल रही है. जिससे लोगों को इलाज के लिए उदयपुर भेजना पड़ता है. वहीं लंबा रास्ता होने से कई मरीज तो मौत को भी गले लगा लेते हैं. ऐसे में जिले के लोगों के लिए लाखों के यह उपकरण बेमानी साबित हो रहे हैं.
20 लाख लोगों पर मात्र 152 डॉक्टर...
आबादी के लिहाज से देखें तो ग्रामीण क्षेत्र में 20 लाख लोगों पर मात्र 152 डॉक्टर हैं. उनमें से भी 94 पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं. इसके चलते सारा भार महात्मा गांधी चिकित्सालय बांसवाड़ा पर आ जाता है, जिसकी पहले से भी हालत खराब है. जिला चिकित्सालय में कहने को डॉक्टरों के 91 पद हैं, परंतु 40 से अधिक पद रिक्त चल रहे हैं. जिसका खामियाजा जिले की गरीब जनता को भुगतना पड़ रहा है. जिनके लिए रेफरल का कार्ड बनाना मजबूरी बन चुका है.
रोजाना आते हैं 10 से 15 एक्सीडेंट केस...
बांसवाड़ा जिले में सबसे अधिक बाइक एक्सीडेंट में लोग घायल होते हैं. प्रतिदिन 10 से 15 केस एक्सीडेंट के आते हैं, लेकिन यहां ऑर्थोपेडिक में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है. ईसीजी चेक करने के बाद मरीज को उदयपुर या फिर निजी चिकित्सालय भेजना पड़ जाता है. बात करें बच्चों के इलाज की तो यहां पर एक महीने से अधिक उम्र के बच्चों के लिए कोई गहन चिकित्सा इकाई नहीं है और सामान्य बच्चों की तरह उनके उपचार के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
नवजात बच्चों का संख्या अधिक...
एसएनसीयू में पहले से ही नवजात बच्चों का संख्या अधिक है. हालत यह है कि अट्ठारह बेड के एसएनसीयू में 30 से 35 बच्चों को रखना पड़ रहा है. ऐसी स्थिति में 1 महीने से अधिक के बच्चों को मेडिकल कॉलेज रेफर करना पड़ रहा है. शिशु गहन चिकित्सा इकाई की स्थापना के साथ स्पेशलिस्ट डॉक्टर की व्यवस्था होने पर ऐसे बच्चों को दूरदराज के हॉस्पिटल में भेजने की समस्या से मुक्ति मिल सकती है.
हार्ट अटैक की समस्या कॉमन...
वहीं हार्ट अटैक की समस्या कॉमन हो चुकी है. प्रतिदिन यहां तीन से चार मामले इस प्रकार के पहुंचते हैं, लेकिन हॉस्पिटल प्रशासन के पास ऐसे मरीजों को भी ईसीजी और ब्लड प्रेशर चेकअप के बाद रोगी को रेफर करना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है. इंसेंटिव कार्डियक केयर यूनिट की स्थापना के साथ दो से तीन सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर उपलब्ध कराए जाने की स्थिति में जिला चिकित्सालय में ही एंजियोग्राफी और एनजीओ प्लास्टिक की सुविधा मिल सकती है.
रेफरल चिकित्सालय...
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि चिकित्सा व्यवस्था के नाम पर जिला चिकित्सालय में विशेषज्ञ डॉक्टरों का लंबे समय से अभाव बना हुआ है. इसके चलते हॉस्पिटल को रेफरल चिकित्सालय कहा जाने लगा है. पूर्व नर्सिंग अधीक्षक शंकर लाल यादव के अनुसार कार्डियक केयर का मामला हो या फिर हड्डी रोग का कोई मामला, हमारे पास संसाधन उपलब्ध है. लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले चिकित्सकों का सदैव से ही अभाव रहा है. पॉपुलेशन के अनुसार यहां डॉक्टर और स्टाफ लगाया जाना जरूरी है.
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फिजिशियन डॉक्टर देवेश गुप्ता का कहना है कि मरीजों का लोड लगातार बढ़ रहा है. लेकिन उसके मुकाबले मानव संसाधन नहीं बढ़ रहा है और उसका स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ रहा है. हर विभाग में स्पेशलिस्ट डॉक्टर का पद होना जरूरी है. समाजसेवी राहुल सराफ का मानना है कि न्यूरो फिजिशियन और न्यूरो सर्जन के साथ ऑर्थोपेडिक सर्जन लगा दिया जाए तो लोगों को अनावश्यक रूप से अन्यत्र भेजने से निजात मिल सकती है.
जिला चिकित्सालय के प्रभारी डॉक्टर नंदलाल चरपोटा ने भी माना कि उनके पास संसाधन तो हैं, लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है. अगर इनके पद स्वीकृत कर डॉक्टर भेज दिया जाए तो आदिवासी बहुल्य इस जिले के लोगों को काफी हद तक राहत दी जा सकती है.