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स्पेशलः कोरोना ले डूबा कुम्हारों की किस्मत, Peak सीजन में बंध गए हाथ

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Published : Jun 5, 2020, 4:06 PM IST

लॉकडाउन की वजह से क्या आम क्या खास क्या गरीब क्या अमीर. सबके सामने एक ही समस्या की काम धंधे बंद हो जाने की वजह से पेट कैसे भरेगा. रोजगार तो अब बचा नहीं रोजी-रोटी कैसे मिलेगी. कुछ ऐसा ही बुरा हाल कुम्हारों का है. क्योंकि कुम्हारों को गर्मी के सीजन से काफी उम्मीदें होती है. लेकिन इस बार गर्मी के सीजन में लगे लॉकडाउन की वजह से कुम्हारों का पूरा धंधा चौपट हो गया.

banswara potters, बांसवाड़ा के कुम्हार
कुम्हार हाथ पर हाथ धर कर बैठने को मजबूर

बांसवाड़ा. कोरोना महामारी न जाने कितने ही लोगों को सड़कों पर ले आई. कुछ लोग जो बाहर रह कर काम-धंधा कर रहे थे वो अपना काम छोड़ कर वापस गांव आ गए, लेकिन जो लोग पहले से ही गांव में रहकर रोजी-रोटी कमा रहे थे. उनका तो जैसे जीना दुश्वार हो गया. जिले में कई लोग ऐसे हैं जो अपना पुश्तैनी काम सालों से करते आ रहे हैं. इनमें कुम्हार समाज के लोग भी शामिल हैं. जिनका काम-धंधा कोरोना ले डूबा. घर पर ही हाथ पर हाथ धरे बैठने को मजबूर हो गए.

क्योंकि एक तरफ गर्मी के सीजन के लिए बड़ी उम्मीदों से बनाए गए मटके सीमाएं सील होने के कारण घर पर ही पड़े रह गए तो वहीं स्थानीय स्तर पर भी बिक्री एक चौथाई भी नहीं रही, हालत यह हो गई कि लॉकडाउन के दौरान इन लोगों के लिए परिवार का पेट पालना भी मुश्किल हो गया.

कुम्हार हाथ पर हाथ धर कर बैठने को मजबूर

उम्मीदों से बनाया हर मटका

इस खबर में हम आपको बताएंगे रतलाम रोड स्थित बोर तालाब गांव के कुम्हार समाज के लोगों की हालत इस लॉकडाउन के दौरान क्या रही. इस गांव में प्रजापत समाज के करीब 5 दर्जन परिवार रह रहे हैं. जिनकी आजीविका का मुख्य आधार अपना पुश्तैनी धंधा है. यह लोग सीजन के हिसाब से मिट्टी के बरतरन या अन्य कोई चीज बनाते हैं. यह लोग सीजन के अनुसार चीजों को बदलते रहते हैं.

पढ़ेंः कांग्रेस के 6 से ज्यादा नेता क्वॉरेंटाइन, BJP नेता भंवरलाल शर्मा को देने गए थे श्रद्धांजलि

लेकिन इनका मुख्य कारोबार मटका और मिट्टी का तवा बनाना है. दीपावली पर यहां बड़े पैमाने पर देसी के साथ-साथ मांग के अनुसार फैशनेबल दीपक बनाते हैं. गर्मी में मटकों की मांग ज्यादा रहती है. ऐसे में हर परिवार बड़ी उम्मीदों के साथ 2 माह पहले ही मटके बनाने में जुट गया. लेकिन जैसे ही सूरज ने तल्खी दिखाई, कोरोना ने दस्तक दे दी और इन लोगों के अरमान धरे रह गए.

banswara potters, बांसवाड़ा के कुम्हार
घरों में लगा मटकों के ढेर

मध्यप्रदेश-राजस्थान की सीमा सील

बोर तालाब गांव में बनने वाले मटकों की डिमांड निकटवर्ती मध्यप्रदेश में अधिक है. यहां के अधिकांश लोग रतलाम उज्जैन, खाचरोद, नागदा, नीमच, मंदसौर सहित करीब एक दर्जन शहरों में मटकों की सप्लाई करते हैं. अचानक लॉकडाउन के बाद मध्यप्रदेश-राजस्थान की सीमा सील कर दी गई. उसके बाद से मटकों की भी सप्लाई बंद हो गई. जबकि यह लोग मांग के अनुरूप ही मटकों का निर्माण करते हैं. सप्लाई थमने से न केवल थोक व्यापारी बल्कि मटके बनाने वाले लोग भी हाथ पर हाथ धर कर बैठने को मजबूर हो गए. हालत यह है कि हर घर के बाहर मटकों के ढेर लगे हैं. स्थानीय स्तर पर इनकी मांग अपेक्षाकृत कम है. ऐसे में कुम्हार समाज के ये लोग घर पर बैठने को विवश हो गए.

banswara potters, बांसवाड़ा के कुम्हार
रोजगार तो अब बचा नहीं, गुजारा कैसे होगा

पीक सीजन में धंधा ठप

थोक व्यापारी दिलीप प्रजापत के अनुसार यहां के मटको की मांग मध्यप्रदेश में अधिक है. करीब एक दर्जन शहरों में मटकों की सप्लाई दी जाती है. लॉकडाउन के दौरान सीमा सील होने के कारण माल की सप्लाई नहीं कर पाए. गांव के कुम्हार देवीलाल के अनुसार हमारा मटके का पूरा धंधा बैठ गया. यहां तक की खर्चा पानी भी बमुश्किल निकल पा रहा है. वहीं दूसरे कुम्हार भरत लाल का कहना था कि मध्यप्रदेश में यहां के मटकों की अच्छी रेट मिल जाती है.

पढ़ेंः खान आवंटन मामला: अशोक सिंघवी की जमानत अर्जी पर 4 जून को होगी सुनवाई

इस कारण हमारा पूरा ध्यान मध्यप्रदेश में सप्लाई पर रहता है. लेकिन इस बार पीक सीजन में धंधा ठप्प हो गया. मटके बनाने के काम को भी रोकना पड़ गया. होलसेल ट्रेडर शांतिलाल ने बताया कि पीक सीजन के कारण हमने माल सप्लाई के लिए भी काफी था लेकिन लॉकडाउन के कारण माल राजस्थान से बाहर ही नहीं गए. बहुत सारा माल इधर-उधर रखने में ही डैमेज हो गया. लोकल लेवल पर भी कोई ज्यादा बिक्री नहीं है. कुल मिलाकर यह सीजन हमारे लिए नुकसानदायक रहा.

बांसवाड़ा. कोरोना महामारी न जाने कितने ही लोगों को सड़कों पर ले आई. कुछ लोग जो बाहर रह कर काम-धंधा कर रहे थे वो अपना काम छोड़ कर वापस गांव आ गए, लेकिन जो लोग पहले से ही गांव में रहकर रोजी-रोटी कमा रहे थे. उनका तो जैसे जीना दुश्वार हो गया. जिले में कई लोग ऐसे हैं जो अपना पुश्तैनी काम सालों से करते आ रहे हैं. इनमें कुम्हार समाज के लोग भी शामिल हैं. जिनका काम-धंधा कोरोना ले डूबा. घर पर ही हाथ पर हाथ धरे बैठने को मजबूर हो गए.

क्योंकि एक तरफ गर्मी के सीजन के लिए बड़ी उम्मीदों से बनाए गए मटके सीमाएं सील होने के कारण घर पर ही पड़े रह गए तो वहीं स्थानीय स्तर पर भी बिक्री एक चौथाई भी नहीं रही, हालत यह हो गई कि लॉकडाउन के दौरान इन लोगों के लिए परिवार का पेट पालना भी मुश्किल हो गया.

कुम्हार हाथ पर हाथ धर कर बैठने को मजबूर

उम्मीदों से बनाया हर मटका

इस खबर में हम आपको बताएंगे रतलाम रोड स्थित बोर तालाब गांव के कुम्हार समाज के लोगों की हालत इस लॉकडाउन के दौरान क्या रही. इस गांव में प्रजापत समाज के करीब 5 दर्जन परिवार रह रहे हैं. जिनकी आजीविका का मुख्य आधार अपना पुश्तैनी धंधा है. यह लोग सीजन के हिसाब से मिट्टी के बरतरन या अन्य कोई चीज बनाते हैं. यह लोग सीजन के अनुसार चीजों को बदलते रहते हैं.

पढ़ेंः कांग्रेस के 6 से ज्यादा नेता क्वॉरेंटाइन, BJP नेता भंवरलाल शर्मा को देने गए थे श्रद्धांजलि

लेकिन इनका मुख्य कारोबार मटका और मिट्टी का तवा बनाना है. दीपावली पर यहां बड़े पैमाने पर देसी के साथ-साथ मांग के अनुसार फैशनेबल दीपक बनाते हैं. गर्मी में मटकों की मांग ज्यादा रहती है. ऐसे में हर परिवार बड़ी उम्मीदों के साथ 2 माह पहले ही मटके बनाने में जुट गया. लेकिन जैसे ही सूरज ने तल्खी दिखाई, कोरोना ने दस्तक दे दी और इन लोगों के अरमान धरे रह गए.

banswara potters, बांसवाड़ा के कुम्हार
घरों में लगा मटकों के ढेर

मध्यप्रदेश-राजस्थान की सीमा सील

बोर तालाब गांव में बनने वाले मटकों की डिमांड निकटवर्ती मध्यप्रदेश में अधिक है. यहां के अधिकांश लोग रतलाम उज्जैन, खाचरोद, नागदा, नीमच, मंदसौर सहित करीब एक दर्जन शहरों में मटकों की सप्लाई करते हैं. अचानक लॉकडाउन के बाद मध्यप्रदेश-राजस्थान की सीमा सील कर दी गई. उसके बाद से मटकों की भी सप्लाई बंद हो गई. जबकि यह लोग मांग के अनुरूप ही मटकों का निर्माण करते हैं. सप्लाई थमने से न केवल थोक व्यापारी बल्कि मटके बनाने वाले लोग भी हाथ पर हाथ धर कर बैठने को मजबूर हो गए. हालत यह है कि हर घर के बाहर मटकों के ढेर लगे हैं. स्थानीय स्तर पर इनकी मांग अपेक्षाकृत कम है. ऐसे में कुम्हार समाज के ये लोग घर पर बैठने को विवश हो गए.

banswara potters, बांसवाड़ा के कुम्हार
रोजगार तो अब बचा नहीं, गुजारा कैसे होगा

पीक सीजन में धंधा ठप

थोक व्यापारी दिलीप प्रजापत के अनुसार यहां के मटको की मांग मध्यप्रदेश में अधिक है. करीब एक दर्जन शहरों में मटकों की सप्लाई दी जाती है. लॉकडाउन के दौरान सीमा सील होने के कारण माल की सप्लाई नहीं कर पाए. गांव के कुम्हार देवीलाल के अनुसार हमारा मटके का पूरा धंधा बैठ गया. यहां तक की खर्चा पानी भी बमुश्किल निकल पा रहा है. वहीं दूसरे कुम्हार भरत लाल का कहना था कि मध्यप्रदेश में यहां के मटकों की अच्छी रेट मिल जाती है.

पढ़ेंः खान आवंटन मामला: अशोक सिंघवी की जमानत अर्जी पर 4 जून को होगी सुनवाई

इस कारण हमारा पूरा ध्यान मध्यप्रदेश में सप्लाई पर रहता है. लेकिन इस बार पीक सीजन में धंधा ठप्प हो गया. मटके बनाने के काम को भी रोकना पड़ गया. होलसेल ट्रेडर शांतिलाल ने बताया कि पीक सीजन के कारण हमने माल सप्लाई के लिए भी काफी था लेकिन लॉकडाउन के कारण माल राजस्थान से बाहर ही नहीं गए. बहुत सारा माल इधर-उधर रखने में ही डैमेज हो गया. लोकल लेवल पर भी कोई ज्यादा बिक्री नहीं है. कुल मिलाकर यह सीजन हमारे लिए नुकसानदायक रहा.

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