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बांसवाड़ा: पैदल ही घर जाने को निकल पड़े प्रवासी मजदूर, हर दिन चल रहे 50 किमी

हाथों में झोला और सर पर बोरी लिए ये मजदूर पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं. इतना ही नहीं इनके साथ इनके छोटे-छोटे बच्चे भी हैं. जो कई दिनों से ठीक से खाना तक नहीं खा पाए हैं.

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घर जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े मजदूर
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Published : May 3, 2020, 8:24 PM IST

बांसवाड़ा. कोरोना महामारी के बीच सरकार लॉकडाउन की अवधि लगातार बढ़ाती जा रही है. अन्य राज्यों में फंसे श्रमिकों की व्यथा सुनी और उन्हें भी अपने-अपने घर पहुंचाने का काम चल रहा है. लेकिन सरकार प्रदेश के अन्य जिलों में फंसे लोगों को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है. इसका नतीजा यह निकला कि भीषण गर्मी के बीच चिलचिलाती धूप में बड़ी संख्या में श्रमिकों को पैदल ही अपने घर की दूरी नाते देखा जा सकता है. जबकि पारा 42 डिग्री तक जा पहुंचा है. लू के थपेड़ों के बीच सिर पर भारी भरकम वजन के साथ गोद में बच्चे इन लोगों का संकट और भी बढ़ा रहे हैं. छोटी सादड़ी से बड़ी संख्या में मजदूर पैदल ही अपने घरों के लिए निकल रहे हैं.

घर जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े मजदूर

गेहूं काटने के लिए गए यह लोग अधिकांश बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ क्षेत्र के रहने वाले हैं. इनके सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह रही कि लॉकडाउन के बाद जहां-जहां यह लोग काम कर रहे थे, वहीं इन्हें रोक दिया गया. छोटी सादड़ी से छोटी सरवा कुशलगढ़ की दूरी करीब 200 किलोमीटर से अधिक है. 1 मई के बाद अधिकारियों द्वारा उन्हें वाहनों के जरिए अपने अपने गंतव्य तक पहुंचाने का आश्वासन दिया गया. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

यह भी पढ़ें- Red Zone के एरिया जहां ज्यादा कोरोना केस हैं, वो रहेंगे पूरी तरह सील: एसीएस रोहित सिंह

42 डिग्री तापमान में कर रहे पैदल सफर

सबसे बड़ा खतरा इन लोगों को रास्ते में सीमा पर होने वाले क्वॉरेंटाइन का दिख रहा था. ऐसे में बिना किसी वाहन का इंतजार किए बड़ी संख्या में मजदूर प्रतिदिन पैदल ही निकल रहे हैं. हैरानी वाली बात यह है कि 42 डिग्री के तापमान में जहां लोग घरों से बाहर निकलने से परहेज करते हैं.

ईटीवी भारत की टीम ने इनमें से कुछ लोगों से बातचीत की तो सामना आया कि सुबह से ही इनकी दौड़ शुरू हो जाती है. जो सूरज ढलने तक जारी रहती है और प्रतिदिन 50 किलोमीटर से अधिक दूरी नाप रहे हैं. रस्ते में जहां कहीं भी जगह मिलती है. उपलब्ध सामान से खाना बनाकर वहीं रात निकाल लेते हैं और फिर सुबह होते ही सफर शुरू हो जाता है.

हर दिन चलते हैं 50 किमी

अनीता ने बताया कि सूरज निकलने से पहले खाना बनाकर चल पड़ते हैं. छोटे बच्चों को इतना नहीं चलाया जा सकता लेकिन हमारे सामने और कोई विकल्प भी नहीं है. लाल शंकर ने बताया कि प्रतिदिन 50 किलोमीटर तक पैदल चल रहे हैं और अगले तीन-चार दिन में घर पहुंचने की उम्मीद है.

नारायण लाल के अनुसार हम थाने पर भी गए. लेकिन वहां पर भी एक दूसरे जिलों में रहने वाले लोगों के लिए फिलहाल कोई सुविधा नहीं होने के बारे में बताया गया. इस कारण पैदल निकलना बेहतर समझा. रास्ते में चेकिंग की व्यवस्था के बारे में पूछा, तो खेमराज ने बताया कि फिलहाल तो रास्ते में हमारे सामने ऐसी कोई समस्या नहीं आई और कहीं पर भी चेकिंग का सामना नहीं करना पड़ा.

बांसवाड़ा. कोरोना महामारी के बीच सरकार लॉकडाउन की अवधि लगातार बढ़ाती जा रही है. अन्य राज्यों में फंसे श्रमिकों की व्यथा सुनी और उन्हें भी अपने-अपने घर पहुंचाने का काम चल रहा है. लेकिन सरकार प्रदेश के अन्य जिलों में फंसे लोगों को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है. इसका नतीजा यह निकला कि भीषण गर्मी के बीच चिलचिलाती धूप में बड़ी संख्या में श्रमिकों को पैदल ही अपने घर की दूरी नाते देखा जा सकता है. जबकि पारा 42 डिग्री तक जा पहुंचा है. लू के थपेड़ों के बीच सिर पर भारी भरकम वजन के साथ गोद में बच्चे इन लोगों का संकट और भी बढ़ा रहे हैं. छोटी सादड़ी से बड़ी संख्या में मजदूर पैदल ही अपने घरों के लिए निकल रहे हैं.

घर जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े मजदूर

गेहूं काटने के लिए गए यह लोग अधिकांश बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ क्षेत्र के रहने वाले हैं. इनके सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह रही कि लॉकडाउन के बाद जहां-जहां यह लोग काम कर रहे थे, वहीं इन्हें रोक दिया गया. छोटी सादड़ी से छोटी सरवा कुशलगढ़ की दूरी करीब 200 किलोमीटर से अधिक है. 1 मई के बाद अधिकारियों द्वारा उन्हें वाहनों के जरिए अपने अपने गंतव्य तक पहुंचाने का आश्वासन दिया गया. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

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42 डिग्री तापमान में कर रहे पैदल सफर

सबसे बड़ा खतरा इन लोगों को रास्ते में सीमा पर होने वाले क्वॉरेंटाइन का दिख रहा था. ऐसे में बिना किसी वाहन का इंतजार किए बड़ी संख्या में मजदूर प्रतिदिन पैदल ही निकल रहे हैं. हैरानी वाली बात यह है कि 42 डिग्री के तापमान में जहां लोग घरों से बाहर निकलने से परहेज करते हैं.

ईटीवी भारत की टीम ने इनमें से कुछ लोगों से बातचीत की तो सामना आया कि सुबह से ही इनकी दौड़ शुरू हो जाती है. जो सूरज ढलने तक जारी रहती है और प्रतिदिन 50 किलोमीटर से अधिक दूरी नाप रहे हैं. रस्ते में जहां कहीं भी जगह मिलती है. उपलब्ध सामान से खाना बनाकर वहीं रात निकाल लेते हैं और फिर सुबह होते ही सफर शुरू हो जाता है.

हर दिन चलते हैं 50 किमी

अनीता ने बताया कि सूरज निकलने से पहले खाना बनाकर चल पड़ते हैं. छोटे बच्चों को इतना नहीं चलाया जा सकता लेकिन हमारे सामने और कोई विकल्प भी नहीं है. लाल शंकर ने बताया कि प्रतिदिन 50 किलोमीटर तक पैदल चल रहे हैं और अगले तीन-चार दिन में घर पहुंचने की उम्मीद है.

नारायण लाल के अनुसार हम थाने पर भी गए. लेकिन वहां पर भी एक दूसरे जिलों में रहने वाले लोगों के लिए फिलहाल कोई सुविधा नहीं होने के बारे में बताया गया. इस कारण पैदल निकलना बेहतर समझा. रास्ते में चेकिंग की व्यवस्था के बारे में पूछा, तो खेमराज ने बताया कि फिलहाल तो रास्ते में हमारे सामने ऐसी कोई समस्या नहीं आई और कहीं पर भी चेकिंग का सामना नहीं करना पड़ा.

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