बांसवाड़ा. जिसमें बड़े पैमाने पर मक्का की बुवाई की जा रही है. कृषि विभाग के आंकड़ों पर जाए तो इस सीजन में व्याप्त मात्रा में मक्का और सोयाबीन के बीज का स्टॉक उपलब्ध है. बुवाई का कोटा पूरा होने के बावजूद लगभग 50 फीसदी स्टॉक अब भी गोदामों में उपलब्ध है.
खरीफ के सीजन में किसान ना तो उन्नत किस्म के बीजों का उपयोग करते हैं और ना ही उर्वरक का प्रयोग. बांसवाड़ा और घाटोल क्षेत्र में कमांड एरिया होने के कारण मक्का के स्थान पर धीरे-धीरे का काश्तकार सोयाबीन की ओर उन्मुख होते जा रहे हैं, जो कि खुद का तैयार किया हुआ बीज और उर्वरक के स्थान पर गोबर के खाद को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं. इसका नतीजा यह है कि सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए बीज और डीएपी की एक बड़ी खेप विभाग के गोदामों से बाहर नहीं निकल पाई.
दो सीजन में मक्का की बुवाई
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में रबी और खरीफ दोनों ही सीजन में मक्का की खेती की जा रही है. वर्ष 2019 के सीजन के आंकड़े बताते हैं कि जिले में मक्का की खेती 1 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में की गई है. वहीं सोयाबीन की खेती करीब 70 हजार हेक्टेयर में की जाती है. यहां किसान रबी के दौरान भी बड़े पैमाने पर मक्का की फसल उगा रहे हैं.
खाद बीज में किसानों का इंटरेस्ट नहीं
कुछ किसानों और कृषि विभाग के अधिकारियों से की गई बातचीत में सामने आया कि क्षेत्र के किसानों में उन्नत किस्म के बीज और बुवाई के दौरान डीएपी के उपयोग के प्रति ज्यादा इंटरेस्ट नहीं है. आंकड़े बताते हैं कि मक्का का 21300 और सोयाबीन का 16800 क्विंटल बीज किसानों द्वारा खरीदा गया है. जबकि स्टॉक में अभी भी बड़ी मात्रा में बीज पड़ा हुआ है. बुआई के दौरान डीएपी की अधिक डिमांड रहती है. जिले में 4000 मीट्रिक टन के मुकाबले 3033 मीट्रिक टन उर्वरक सप्लाई हुआ, लेकिन इसमें से भी बड़ी मात्रा में डीएपी गोदामों में पड़ा है.
यहां से मिल सकता है खाद बीज
खाद बीज की किसानों तक सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए जिले भर में करीब साडे 300 लाइसेंसी दुकानें हैं. इनमें से 200 लाइसेंस लार्ज एग्रीकल्चर मल्टीपल सोसायटी अर्थात लैंप्स के पास है. हर ग्राम पंचायत मुख्यालय पर होलसेलर के जरिए सीधे खाद बीज सप्लाई किया जाता है. जहां से काश्तकार पीओएस मशीन पर अपना अंगूठा लगाकर जरूरत के अनुरूप खाद और बीज खरीद सकता है. डीएपी का 50 किलो का कट्टा 350 से 14 सो रुपए तक बेचा जा रहा है. वहीं सोयाबीन का बीज 50 रुपए से लेकर 55 रुपए तक प्रति किलो उपलब्ध कराया जा रहा है. बीज में कंपनी के ब्रांड के आधार पर भी कि कीमतें अलग अलग है.
क्या कहते हैं किसान?
तेजा का कहना है कि उन्होंने सोयाबीन की बुवाई की है. लेकिन उर्वरक का उपयोग नहीं किया है. बीज भी उन्होंने अपने घर का इस्तेमाल किया है. वहीं किसान घनश्याम का कहना है कि उन्होंने करीब 21 सौ रुपए में 40 किलो का सोयाबीन का कट्टा खरीदा है. उपलब्धता को लेकर इस बार कोई परेशानी नहीं है. ठीकरिया लैंप्स के सचिव धनंजय सिंह के अनुसार कमांड एरिया में सोयाबीन की डिमांड बढ़ रही है. लेकिन महंगा होने के कारण क्षेत्र के किसान हाइब्रिड बीज के बजाय खुद के घर का बीज इस्तेमाल करना पसंद करते हैं. इस कारण उनके गोदाम में अभी भी बीज और डीएपी का स्टॉक पड़ा है.
वहीं बांसवाड़ा क्रय विक्रय सहकारी समिति के लेखाकार प्रदीप सिंह के अनुसार खाद की कोई कमी नहीं है. लेकिन सोयाबीन और मक्का में लोग बहुत कम इसका इस्तेमाल करते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में हर समिति के पास स्टॉक मौजूद है. खाद बीज के कारोबारी धवल मेहता के अनुसार खरीफ के दौरान पानी की ज्यादा श्योरिटी नहीं रहती इस कारण लोग सोयाबीन को ज्यादा तवज्जो देते हैं.
रबी के दौरान माही बांध की नहरों से भरपूर पानी मिलता है. इस कारण रबी में मक्का का ज्यादा क्रेज रहता है. खरीफ में लोग घर का बीज इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करते हैं. वहीं डिप्टी डायरेक्टर कृषि विस्तार बीएल पाटीदार के अनुसार इस बार पर्याप्त मात्रा में हमारे पास खाद और बीज उपलब्ध है. लेकिन खरीफ में सोयाबीन की ब्वॉय के प्रति लोगों का इंटरेस्ट ज्यादा रहता है. ऐसे में बीज और डीएपी की डिमांड अपेक्षाकृत कम रहती है. इसके स्थान पर लोग रवी के दौरान मक्का की ज्यादा बुवाई करते हैं.