बांसवाड़ा. भीषण धूप और गर्मी में तपकर पत्थर जैसे बन चुके खेत, इन्हीं खेतों में चारा और पानी की आस में दूर-दूर तक भटकते मवेशी, सिर पर घड़े रखकर पानी की तलाश में निकली महिलाएं, सूखे हुए जलस्रोत और तमाम घरों पर लटके हुए ताले इस क्षेत्र की स्थिति बयां करने के लिए काफी हैं. महज डेढ़ किमी दूर ही माही का अथाह पानी और उसके पास ही पानी को तरसते ग्रामीण. यह तस्वीर है बांसवाड़ा के माही बांध के बैक वाटर इलाके की. जहां एक मटका पानी के लिए महिलाएं 2 किलोमीटर दूर तक जाती हैं और सिर पर पानी ढोकर लाती हैं.
बांसवाड़ा राजस्थान का एक प्रमुख जिला है. जो दक्षिणी भाग से गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से लगता है. इस जिले को राजस्थान का चेरापूंजी भी कहा जाता है. मध्य प्रदेश से होकर आने वाली माही नदी यहां का प्रमुख आकर्षण है. यह नदी बासंवाड़ा जिले की जीवन वाहिनी है. माही डैम के कारण बने टापुओं की वजह से इसे 'सिटी ऑफ हण्ड्रेड आईलैण्ड्स' के नाम से जाना जाता है. लेकिन गर्मियों का मौसम आते ही यहां पीने का पानी मिलना भी मुश्किल हो जाता है.
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माही बांध के बैक वाटर एरिया में भयावह होते पेयजल संकट के हालात की हकीकत जानने के लिए ETV भारत की टीम जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर केसरपुरा ग्राम पंचायत पहुंची. जहां के जंगलों और पहाड़ी इलाके में पंचायत के लोग अलग-अलग बस्तियों में रहते हैं. ग्राम पंचायत के वार्ड क्रमांक 8 की बस्ती में करीब 50 से अधिक परिवार रहते हैं. इन परिवारों के लिए इन दिनों हलक तर करना भी बड़ी समस्या बन गई है.
हैंडपंपों से निकल रही सिर्फ हवा
यहां की बस्तियों में लगे हुए लगभग आधा दर्जन हैंडपंप अब सिर्फ नाम के रह गए हैं. गर्मी का मौसम आने के साथ ही भूमि जलस्तर में गिरावट आ जाती है. ऐसे में ये हैंड पंप भी जवाब दे गए हैं. हालत तो यह है कि सारे हैंडपंप पानी के जगह अब हवा फांक रहे हैं. हैंड पंप अब सिर्फ दो-तीन घंटे ही पानी देते हैं. ऐसे में पानी लेने के लिए लोग घंटों तक अपने बर्तन लेकर कतार में खड़े रहते हैं. अपने नंबर आने का इंतजार करते इन ग्रामीणों को कई बार तो खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ता है.
2 बाल्टी पानी मिलना भी दूभर
ग्रामीणों का कहना है कि कई बार तो 2 बाल्टी पानी मिल पाना भी मुश्किल हो जाता है. जिससे परिवार के लोगों की प्यास बुझाना मुश्किल है. ऐसे में महिलाओं और पुरुषों को लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर दूर जाकर कुएं से पानी लाना पड़ता है. लेकिन इस कुएं तक पहुंचने के लिए उन्हें पथरीले और जंगली इलाके से होकर गुजरना पड़ता है. ऐसे में किसी वाहन से भी वहां तक नहीं जाया जा सकता है. इस कारण वहां से पानी सिर पर लाना ही एकमात्र विकल्प है.
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गांव की महिलाओं ने बताया कि 2 साल पहले पहाड़ी इलाके में एक टंकी भी बनाई गई थी, लेकिन 5 से 7 दिन में इस टंकी से पानी केवल आधे या एक घण्टे के लिए सप्लाई होता है. जिससे बमुश्किल तीन से चार बाल्टी भी नहीं भर पाती है.
बिन पानी मवेशी तोड़ रहे दम
ग्रामीणों के मुताबिक उनके सामने बड़ी समस्या यह भी है कि खेती-बाड़ी के साथ वे पशुपालन का काम करते हैं. लेकिन जब उनके पीने के लिए ही पानी मिलना मुश्किल है तो इन बेजुबानों की प्यास कैसे बुझाई जाए? बिन पानी मवेशी भी दम तोड़ रहे हैं. भीषण पेयजल संकट के इस दौर में इन मवेशियों की प्यास बुझाना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. पानी की समस्या को लेकर जलदाय विभाग की ओर से भी कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है. एक ओर तो विभाग के अधिकारी पेयजल समस्या का समाधान करने का दावा करते हैं. वहीं दूसरी ओर समस्याएं खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है.