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Neelkanth Shiv Temple : पांडवों ने की थी स्थापना, नीलम पत्थर का बना है शिवलिंग...औरंगजेब भी नहीं तोड़ पाया - Rajasthan Hindi news

अलवर शहर से 10 किमी. दूर भगवान भोलेनाथ का एक शिवलिंग स्थापित है. ये शिवलिंग नीलम पत्थर (Sapphire Stone Shivling) से बना है. मान्यता है कि इसे पांडवों ने स्थापित किया था. शिव-शंभू के दर्शन के लिए दूर-दराज से भक्त यहां आते हैं. क्यों है ये मंदिर इतना खास और क्या है इसका इतिहास, पढ़िए इस रिपोर्ट में...

NeelKanth Shiv Temple in Alwar
नीलकंठ महादेव मंदिर
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Published : Apr 3, 2023, 5:33 PM IST

अलवर का नीलकंठ महादेव मंदिर

अलवर. भगवान शिव और उनके चमत्कारों के कई किस्से आपने सुने होंगे. आज हम आपको बताएंगे अलवर के ऐसे ही एक शिवलिंग के बारे में, जो बेशकीमती नीलम पत्थर से बना हुआ है. मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर की स्थापना की थी. इस मंदिर के आसपास 300 से ज्यादा छोटे-बड़े मंदिर, कुएं व बावड़ी स्थित हैं. मुगलों ने कई बार इस मंदिर पर हमले का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए. नीलकंठ महादेव मंदिर देश-विदेश में भी खासा प्रसिद्ध है.

मंदिर में दुर्लभ प्रतिमाएं : अलवर के टहला से पश्चिम की ओर 10 किमी. दूर ग्राम पंचायत राजोरगढ़ में शिव भक्तों की आस्था का केन्द्र नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है. मंदिर में दिन भर धार्मिक अनुष्ठान का सिलसिला जारी रहता है. मंदिर के पुजारी के अनुसार मंदिर में विराजमान शिवलिंग पूर्ण रूप से नीलम पत्थर से निर्मित है. इसकी ऊंचाई 4.5 फीट है. मंदिर गर्भगृह सहित नीलकंठ महादेव मंदिर गुंबद पूर्ण रूप से पत्थरों से बना हुआ है, जिसमें चूना का उपयोग बिल्कुल भी नहीं किया गया है. मंदिर के गर्भगृह एवं गुंबदों पर दुलर्भ देवी-देवताओं की मूर्ति उभरी हुई है. मंदिर में भी दुर्लभ प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं.

पढ़ें. कोटा में 100 साल पुराना शिव का यह मंदिर सालभर में केवल एक बार ही खुलता है, यह है कारण

मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन : मंदिर के पुजारी ने बताया कि मुगल शासकों ने कई बार इस मंदिर पर हमला किया, लेकिन शिवलिंग को नुकसान पहुंचाने में नाकाम रहे. अरावली की वादियों के बीच एक छोटे से गांव में यह शिव मंदिर स्थित है. फिलहाल, यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है. पुरातत्व विभाग ने मंदिर के आसपास के क्षेत्र में खोज करके कई बेशकीमती मूर्तियां बरामद की हैं. लगातार पुरातत्व विभाग के कर्मचारी रिसर्च के काम में लगे हुए हैं.

अनूठी कला के लिए प्रसिद्ध मंदिर : उन्होंने बताया कि मंदिर में प्रथम पूज्य भगवान गणेश की नृत्य अवस्था में प्रतिमा है, जो राजस्थान में किसी भी मंदिर में जल्दी देखने को नहीं मिलती है. मंदिर में ऐसी कई दुर्लभ देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित है. पांडव काल में बना ये ऐतिहासिक नीलकंठ महादेव मंदिर अपनी अनूठी कला के लिए जाना जाता है. अरावली की पहाड़ियों पर दुर्गम रास्ता होने के बाद भी यहां दिल्ली, फरीदाबाद, जयपुर, उत्तर प्रदेश सहित दूर-दराज के जिलों से भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

तीन रंग में दिखाई देता है शिवलिंग : उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक नीलकंठ महादेव मंदिर की पूजा नाथ सम्प्रदाय के लोगों की ओर से की जाती है. मान्यता है कि मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी. तभी से मंदिर के गर्भगृह में अखंड ज्योत जल रही है. शिवलिंग का प्राकृतिक रूप से दिन में तीन प्रकार के रंग में दिखाई देता है. इतिहासकारों के अनुसार नीलकंठ महादेव मंदिर की स्थापना सन 1010 में पूर्व राजा अजयपाल ने की थी.

पढ़ें. अद्भुत है करौली का ये शिव मंदिर...यहां विराजते हैं वक्र गर्दन वाले महादेव...दिन में तीन बार रूप बदलती है प्रतिमा

मंदिर की खासियत : पुजारी ने बताया कि नीलकंठ महादेव मंदिर का शिवलिंग नीलम पत्थर का बना है. मंदिर में पांडवों के समय से अखंड ज्योत जल रही है. यह नगर पारानगर के नाम से विख्यात था. प्राचीन संस्कृतियों की मूर्ति, पाषाणों से निर्मित पारानगर एवं नीलकंठ महादेव मंदिर इसका एक जीवंत उदाहरण है. मंदिर के गुंबद और शिलाओं पर मूर्ति कलाकृतियां आज भी देखने को मिलती हैं. पारानगर के खंडहर और अवशेष आज भी यहां मौजूद हैं. इस मंदिर को सन 1970 के आसपास से पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले रखा है. मंदिर की देखरेख के लिए यहां सदैव पुरातत्व विभाग के कर्मचारी एवं पुलिस जाप्ता तैनात रहता है.

औरंगजेब की सेना ने किया था हमला : यहां 300 मंदिरों के खंडहर मौजूद हैं. ये अकेला शिव मंदिर ही एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो औरंगजेब और उसकी सेना के हमले से बच गया था. स्थानीय लोगों ने बताया कि मधुमक्खियों के हमले के कारण मुगल सेना को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. अब शिव या नीलकंठ के नाम पर इस स्थान को प्राचीन और मध्यकाल में राज्यपुर और पारानगर के नाम से जाना जाता था.

अलवर का नीलकंठ महादेव मंदिर

अलवर. भगवान शिव और उनके चमत्कारों के कई किस्से आपने सुने होंगे. आज हम आपको बताएंगे अलवर के ऐसे ही एक शिवलिंग के बारे में, जो बेशकीमती नीलम पत्थर से बना हुआ है. मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर की स्थापना की थी. इस मंदिर के आसपास 300 से ज्यादा छोटे-बड़े मंदिर, कुएं व बावड़ी स्थित हैं. मुगलों ने कई बार इस मंदिर पर हमले का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए. नीलकंठ महादेव मंदिर देश-विदेश में भी खासा प्रसिद्ध है.

मंदिर में दुर्लभ प्रतिमाएं : अलवर के टहला से पश्चिम की ओर 10 किमी. दूर ग्राम पंचायत राजोरगढ़ में शिव भक्तों की आस्था का केन्द्र नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है. मंदिर में दिन भर धार्मिक अनुष्ठान का सिलसिला जारी रहता है. मंदिर के पुजारी के अनुसार मंदिर में विराजमान शिवलिंग पूर्ण रूप से नीलम पत्थर से निर्मित है. इसकी ऊंचाई 4.5 फीट है. मंदिर गर्भगृह सहित नीलकंठ महादेव मंदिर गुंबद पूर्ण रूप से पत्थरों से बना हुआ है, जिसमें चूना का उपयोग बिल्कुल भी नहीं किया गया है. मंदिर के गर्भगृह एवं गुंबदों पर दुलर्भ देवी-देवताओं की मूर्ति उभरी हुई है. मंदिर में भी दुर्लभ प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं.

पढ़ें. कोटा में 100 साल पुराना शिव का यह मंदिर सालभर में केवल एक बार ही खुलता है, यह है कारण

मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन : मंदिर के पुजारी ने बताया कि मुगल शासकों ने कई बार इस मंदिर पर हमला किया, लेकिन शिवलिंग को नुकसान पहुंचाने में नाकाम रहे. अरावली की वादियों के बीच एक छोटे से गांव में यह शिव मंदिर स्थित है. फिलहाल, यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है. पुरातत्व विभाग ने मंदिर के आसपास के क्षेत्र में खोज करके कई बेशकीमती मूर्तियां बरामद की हैं. लगातार पुरातत्व विभाग के कर्मचारी रिसर्च के काम में लगे हुए हैं.

अनूठी कला के लिए प्रसिद्ध मंदिर : उन्होंने बताया कि मंदिर में प्रथम पूज्य भगवान गणेश की नृत्य अवस्था में प्रतिमा है, जो राजस्थान में किसी भी मंदिर में जल्दी देखने को नहीं मिलती है. मंदिर में ऐसी कई दुर्लभ देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित है. पांडव काल में बना ये ऐतिहासिक नीलकंठ महादेव मंदिर अपनी अनूठी कला के लिए जाना जाता है. अरावली की पहाड़ियों पर दुर्गम रास्ता होने के बाद भी यहां दिल्ली, फरीदाबाद, जयपुर, उत्तर प्रदेश सहित दूर-दराज के जिलों से भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

तीन रंग में दिखाई देता है शिवलिंग : उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक नीलकंठ महादेव मंदिर की पूजा नाथ सम्प्रदाय के लोगों की ओर से की जाती है. मान्यता है कि मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी. तभी से मंदिर के गर्भगृह में अखंड ज्योत जल रही है. शिवलिंग का प्राकृतिक रूप से दिन में तीन प्रकार के रंग में दिखाई देता है. इतिहासकारों के अनुसार नीलकंठ महादेव मंदिर की स्थापना सन 1010 में पूर्व राजा अजयपाल ने की थी.

पढ़ें. अद्भुत है करौली का ये शिव मंदिर...यहां विराजते हैं वक्र गर्दन वाले महादेव...दिन में तीन बार रूप बदलती है प्रतिमा

मंदिर की खासियत : पुजारी ने बताया कि नीलकंठ महादेव मंदिर का शिवलिंग नीलम पत्थर का बना है. मंदिर में पांडवों के समय से अखंड ज्योत जल रही है. यह नगर पारानगर के नाम से विख्यात था. प्राचीन संस्कृतियों की मूर्ति, पाषाणों से निर्मित पारानगर एवं नीलकंठ महादेव मंदिर इसका एक जीवंत उदाहरण है. मंदिर के गुंबद और शिलाओं पर मूर्ति कलाकृतियां आज भी देखने को मिलती हैं. पारानगर के खंडहर और अवशेष आज भी यहां मौजूद हैं. इस मंदिर को सन 1970 के आसपास से पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले रखा है. मंदिर की देखरेख के लिए यहां सदैव पुरातत्व विभाग के कर्मचारी एवं पुलिस जाप्ता तैनात रहता है.

औरंगजेब की सेना ने किया था हमला : यहां 300 मंदिरों के खंडहर मौजूद हैं. ये अकेला शिव मंदिर ही एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो औरंगजेब और उसकी सेना के हमले से बच गया था. स्थानीय लोगों ने बताया कि मधुमक्खियों के हमले के कारण मुगल सेना को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. अब शिव या नीलकंठ के नाम पर इस स्थान को प्राचीन और मध्यकाल में राज्यपुर और पारानगर के नाम से जाना जाता था.

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