रामगढ़ (अलवर). मध्यप्रदेश के नीमच के पश्चात अब अलवर में भी काले गेहूं की खेती जैविक आधार पर किया जा रहा है. यह गुणवत्तापूर्ण क्वालिटी के गेहूं का उत्पादन मालाखेड़ा के समीप मुंडिया गांव में किया गया है. इसकी बुवाई के लिए बीज करनाल से मंगाया गया था और एक बीघा में करीब 27 किलो बीज का छिड़काव किया गया था.
बेमौसम की बारिश के दौरान भी यह गेहूं की फसल खेतों में लहरा रही थी, जिसके चलते एक बीघा में करीब 25 से 30 मन प्रति बीघा के उत्पादन की बात किसान की ओर से बताई गई है. फसल को निकलवाने के दौरान आसपास के किसान भी काले गेहूं की उपज को देखने के लिए पहुंचे, जो पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना रहा.
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बता दें कि मालाखेड़ा के समीप मुंडिया गांव निवासी कमल सिंह ने काले गेहूं की खेती पहली बार की है, जिसमें एक किसान और भी शामिल है. यह पूर्ण रुप से जैविक खेती की गई है, इसमें किसी प्रकार की रासायनिक खाद्य या रासायनिक दवाई का उपयोग नहीं किया गया है. बता दें कि साधारण गेहूं और काले गेहूं की उम्र में रात-दिन का अंतर है. जैविक आधार पर इसकी खेती कर काफी किसान लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
वहीं, काले गेहूं की खेती पर कृषि वैज्ञानिक और डॉ. मेनारिया का कहना है कि साधारण गेहूं में एंथोसाइएनिन की मात्रा 5 से 15 पीपीएम होती है, जबकि काले गेहूं में इसकी मात्रा 40 से 140 पीपीएम होती है. उन्होंने बताया कि इसकी खेती बहुत बड़ी उपलब्धि है. इसमें एक औषधीय गुण भी पाया जाता है. इसके साथ ही एंथोसाइएनिन एक नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट एंटीबायोटिक है, जो हार्ट अटैक, कैंसर, शुगर, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों में भी काफी कारगर सिद्ध होता है.
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इसके साथ ही किसान ने बताया कि काला गेहूं रोग प्रतिरोधी और कीट प्रतिरोधी प्रजाति का है. इसका भाव बाजार में अन्य साधन के गेहूं से महंगा होता है, जो लगभग 100 से 200 रुपए प्रति किलो के बिकता है. किसान कमल सिंह ने बताया कि पहली बार यह जैविक खेती की गई है, जिसमें कोई रासायनिक दवा का उपयोग नहीं किया गया. उसके यहां 27 मन प्रति बीघा के हिसाब से पैदावार हुई है. बारिश से इस फसल में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है. यह गेहूं कई बीमारियों में लाभदायक और रामबाण है और खाने में स्वादिष्ट भी है.