अलवर. जिले में धड़ल्ले से खनन हो रहा है, जिससे अरावली श्रृंखला दिनोंदिन छलनी हो रही है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी जिले में 300 से अधिक पत्थर की खान व 50 से अधिक क्रेशर जिले में चल रहे हैं. कहने को तो नियमों के तहत ये खनन हो रहा है, लेकिन यहां खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ी रही हैं.
बता दें कि अलवर NCR में आता है. अलवर से गुड़गांव, दिल्ली, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और फरीदाबाद की दूरी अन्य जगहों की तुलना में कम है. ऐसे में इन शहरों से अलवर के पत्थर की डिमांड ज्यादा है. इसलिए प्रतिदिन हजारों ट्रक पत्थर, रोड़ी, बजरी, खरंजा सहित विभिन्न सामान से लदकर एनसीआर के विभिन्न शहरों में जाता है. डिमांड अधिक होने से अलवर में अवैध खनन भी सबसे ज्यादा होता है. बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अलवर में 31 पहाड़ गायब होने की बात कही थी.
दरसअल, सर्वे ऑफ इंडिया की तरफ से एक रिपोर्ट जारी की गई. यह सर्वे अरावली श्रृंखला को लेकर किया गया था, जिसमें अवैध खनन के अवशेष जुटाए गए. इसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को फटकार लगाते हुए 31 पहाड़ गायब होने की बात कही थी.
वहीं, कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए सख्ती से कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे. अवैध खनन को लेकर आए दिन एनजीटी, सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार द्वारा प्रदेश सरकार को फटकार लगाई जाती है. जबकि जिम्मेदार सरकारी विभाग के अधिकारियों को कार्रवाई करने के निर्देश देते हैं, लेकिन अभी तक खनन जारी है.
354 पत्थर की खान और 68 क्रेशर चल रहें...
नियम के हिसाब से खनन विभाग ने 354 खनन के लिए पट्टे जारी किए हैं. इसके अलावा जिले में 68 क्रेशर चल रही हैं, लेकिन इनमें खुलेआम सरकार के नियमों की धज्जियां उड़ रही है. जिस क्षेत्र में खनन के लिए पट्टा जारी किया जाता है. उस क्षेत्र के आसपास क्षेत्र में अवैध खनन किया जाता है. टैक्स की चोरी करने के साथ ही पत्थर की चोरी भी होती है.
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इस तरह से क्रेशर में आसपास क्षेत्र के पहाड़ों से पत्थर लाकर उनकी पिसाई होती है. ट्रैक्टर-ट्रॉली चालक आसपास क्षेत्र में अवैध खनन करते हैं और इन क्रेशर तक पत्थर पहुंचाने का काम करते हैं. ऐसे में सबके साथ मिलकर सहयोग से यह पूरा खेल चल रहा है. वहीं जिम्मेदार विभाग के अधिकारी अपनी आंख बंद करके बैठे हुए हैं व कानूनी तौर पर खनन की बात कहते हैं.
अलवर में बेखौफ हैं खनन माफिया...
इसके अलावा अलवर में आए दिन अवैध खनन की शिकायतें मिलती है. बीते दिनों सरिस्का क्षेत्र में अवैध खनन करने से रोकने पर अवैध खनन माफियाओं ने एक बॉर्डर होमगार्ड पर ट्रैक्टर चढ़ा दिया था. जिसमें बॉर्डर होमगार्ड की मौत हो गई थी. यह पहला मामला नहीं है. जब अवैध खनन माफियाओं ने सुरक्षा कर्मियों पर हमला किया हो. इससे पहले भी खनन विभाग के जांच दल पर अवैध खनन माफियाओं ने हमला किया था. इसकी रिपोर्ट खनन विभाग के अधिकारियों ने पुलिस थाने में दर्ज कराई थी. ऐसे में साफ है कि अवैध खनन के लिए बदनाम अलवर खनन माफियाओं के लिए बड़ा गढ़ बन चुका है.
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दूसरी तरफ खनन माफिया अलवर क्षेत्र में खान का आवंटन नहीं होने देते हैं. ऑनलाइन उसकी बोली बढ़ाकर सरकार और आम लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं. इतना ही नहीं यह पूरा खेल सरकारी अधिकारियों की आंख के सामने चल रहा है. जिला प्रशासन, पुलिस और खनन विभाग बड़े-बड़े दावे करता है, लेकिन शहर की आबादी क्षेत्र से लगते हुए क्षेत्र में खुलेआम अवैध खनन हो रहा है और क्रेशर चल रहे हैं. ऐसे में साफ है कि प्रशासन के साथ मिले-जुले जोड़-तोड़ के बीच यह पूरा खेल जारी है.
नहीं है मॉनिटरिंग की व्यवस्था...
अलवर क्षेत्र में सभी खनन कार्य मंत्री, अधिकारी बड़े दबंग लोग और उनके रिश्तेदार करते हैं. ऐसे में इनकी पहुंच सीधी मंत्री और सरकार के आला अधिकारियों तक होती है. इसलिए जिले में मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं है. इसका फायदा उठाकर खुलेआम यह खेल जारी है.
कानूनी तौर पर पट्टा लेकर होता है अवैध खनन...
कानूनी तौर पर खनन की लीज लेकर आसपास क्षेत्र में अवैध खनन किया जाता है. दरअसल, लीज 50 साल की होती है. इस दौरान पत्थर निकालने पर ऑनलाइन खनन विभाग की साइट से रवेन्यू जनरेट करना होता है. उसके लिए टैक्स देना पड़ता है. ऐसे में खनन माफिया लीज के आसपास क्षेत्र में अवैध खनन करते हैं.
अलवर की सड़कों पर दिन-रात दौड़ती है मौत...
अलवर के सभी सड़क मार्गों पर दिन-रात ट्रैक्टर ट्रॉली और डंपर खुलेआम दौड़ते हैं. इसके अलावा गांव के कच्चे रास्ते पर दिन भर अवैध खनन करके ट्रैक्टर-ट्रॉली और डंपर जाते हैं. जिससे कई बार हादसे का खतरा मंडराता रहता है.