अजमेर. 'वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीड परायी जाणे रे' यह भजन महात्मा गांधी के जीवनकाल के दौरान लोकप्रिय हुआ. जिसका भावार्थ दूसरों की पीड़ा को समझने और महसूस करने से है. 2004 में इंग्लैंड के सेंट पीटर्सबर्ग से एक वैटनरी नर्स अजमेर घूमने (Rachel Wright of St Petersburg) आई, जो यहां की सड़कों पर आवारा कुत्तों को पड़ने की प्रक्रिया को देख बहुत दुखी हुई.
इसके बाद उसके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया और उसने ताउम्र जख्मी मूक पशुओं की सेवा का प्रण लिया. खैर, उस प्रण को आज 17 साल पूरे हो चुके हैं और टोल्फा (Tree Of Life For Animals) की फाउंडर रिचेल राइट (Tolfa founder Rachel Wright) इस समयावधि में करीब 2 लाख, 17 हजार, 282 जख्मी पशुओं का इलाज कर चुकी हैं. वहीं, आज अजमेर में जख्मी पशुओं की मसीहा के नाम से मशहूर रिचेल राइट (Messiah of Wounded Animals) बताती हैं कि वो पहली बार 1999 में भारत आईं थीं और इसके बाद 2004 में अजमेर और पुष्कर घूमने आईं.
यहां घूमते के दौरान उन्होंने गली मोहल्लों में कुत्तों को पकड़ने की प्रक्रिया को देखा तो उसका दिल कांप गया. अनजाने में कुत्तों के साथ हो रही क्रूरता ने उन्हें बुरी तरह से झकझोरने का काम किया. इसके बाद उन्होंने ठाना कि वो कुत्तों समेत अन्य बेजुबान पशुओं के इलाज को जरूरी कदम उठाएंगी. लेकिन तब यह उनके लिए आसान नहीं था, क्योंकि ऐसा करने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत थी. ऐसे में उन्होंने नगर परिषद की अनुमति से 2004 में परबतपुरा बायपास के पास दमकल विभाग के कार्यालय में कुछ जख्मी पशुओं का उपचार शुरू किया.
इंश्योरेंस के पैसे से खरीदी जमीन : इसके बाद रिचेल ने टोल्फा नाम से संस्था बनाई. इस बीच उनके पिता का इंग्लैंड में निधन हो गया. पिता के निधन के बाद उनके इंश्योरेंस के पैसों से रिचेल ने यहां पशुओं के उपचार के लिए शहर से बाहर करखेड़ी में जमीन खरीदा, जहां उन्होंने अस्पताल का निर्माण (Hospital built in Ajmer Karkhedi) कराया. रिचेल ने बताया कि वो इस दौरान अजमेर म्युनिसिपालिटी से कुत्तों की नसबंदी के लिए कंट्रेक्ट भी लेती रही. इस बीच कई लोग उनके कार्यों से प्रभावित होकर उनकी मदद को सामने आए. वहीं, साल 2009 में उन्होंने अजमेर के ही राजेश पीयूल से शादी कर ली. उनके पति राजेश संस्था में रेस्क्यू टीम और स्टाफ प्रबंधन का काम देखते हैं.
दानदाताओं पर निर्भर है संस्था : संस्था के अस्पताल में आउटडोर ड्यूटी देने वाले चिकित्सक दिनेश यादव ने बताया कि शहर और देहात क्षेत्रों की गलियों में घायल और बीमार पशुओं को रेस्क्यू टीम एंबुलेंस के जरिए अस्पताल लाती है. जहां उनका इलाज किया जाता है. अस्पताल में कुत्तों के अलावा ऊंट, बिल्ली, गाय, बेल, सांड जैसे जानवरों का भी अस्पताल में इलाज होता है. आवश्यकता पड़ने पर जानवरों के ऑपरेशन, नसबंदी और टीकाकरण की भी अस्पताल में व्यवस्था की जाती है. वहीं, संस्था के ट्रस्टी अमर सिंह राठौड़ ने बताया कि यह संस्था पूरी तरह से दानदाताओं पर निर्भर है. वर्तमान में संस्था में पशु चिकित्सक समेत कुल 55 लोगों का स्टॉप सेवारत है.
रेस्क्यू टीम के सदस्य सुरेश सिंह ने बताया कि घायल और बीमार जानवरों का रेस्क्यू काफी मुश्किल होता है. कई बार तो कुत्ते काट भी लेते हैं. बावजूद इसके जानवरों की पीड़ा को देखते हुए उन्हें इलाज के लिए एंबुलेंस से अस्पताल लाया जाता है, जहां उनका उपचार होता है.
संस्था की उपलब्धियां
- 2005 से लेकर अब तक 2 लाख, 17 हजार, 282 बीमार व घायल पशुओं का इलाज किया गया
- 17 साल में संस्था ने 38 हजार 793 कुत्तों का टीकाकरण किया