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SPECIAL: गर्दिश में मशहूर नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी, कोरोना ने छीनी रोजी-रोटी

अजमेर जिले के मशहूर नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी के लिए कोरोना वायरस यह साल अंतहीन इंतजार लेकर आया है. नाथू लाल को हर समय इंतजार रहता है कि किसी त्यौहार, समारोह या अन्य पावन मौके पर उन्हें कोई ना कोई बुलाएगा. हर दिन उन्हें ऐसा लगता है कि कहीं वो अपना नगाड़ा बजाएंगे और कुछ पैसे कमा सकेंगे जिससे दो वक्त की रोजी का इंतजाम हो सके.

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मशहूर नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी
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Published : Dec 7, 2020, 10:55 PM IST

अजमेर. तीर्थ नगरी के नाम से मशहूर अजमेर में जिले में रहने वाले यहां पैदा हुए ऐसे कई कलाकार हैं जिन्होंने प्रदेश और देश ही नहीं बल्की पूरी दुनिया में अपने नाम का डंका बचाया है. कोरोना काल से पहले तक इन कलाकारों के रोजगार में कोई कमी नहीं थी लेकिन कोरोना ने इनके रोजगार को ऐसा आघात पहुचाया है कि कई कलाकार अब अपना परिवार भी नहीं चला पा रहे हैं. इन्हीं लोगों में एक नाम है पुष्कर में रहने वाले नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी. इंग्लैंड की महारानी के महल में नगाड़ा वादन कर चुके नाथू लाल सोलंकी देश और दुनिया के विख्यात कलाकारों के साथ जुगलबन्दी कर चुके हैं.

नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी से बातचीत पार्ट-01

अपने नगाड़े की धून से दूसरों को मोह लेने वाले नाथू लाल अब अपने लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं कर पा रहे हैं. पुष्कर के पवित्र सरोवर के गणगौर घाट से शाम को पुष्कर राज की आरती से पहले अध्यात्मिक माहौल में नगाड़ों की मधुर धुन हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है. 35 वर्षों से गणगौर घाट से नाथू लाल सोलंकी ने नगाड़ा वादन का सफर शुरू किया था अपने गुरु रामकृष्ण से उन्होंने नगाड़ा वादक सीखा और उसके बाद नियमित अभ्यास करते रहे.

दो रुपए में दिन भर बजाते थे नगाड़ा-

नगाड़ा वादक नाथूलाल बताते हैं कि गणगौर घाट पर प्रत्येक दिन नगाड़ा वादन करने के लिए डब्लू महाराज उन्हें दो रुपए प्रतिदिन दिया करते थे. इस दौरान उनके नगाड़ा वादन की ख्याति सात समंदर पार तक पहुंच गई. नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी बताते हैं कि इंग्लैंड की महारानी और राष्ट्रपति भवन में भी वह नगाड़ा वादन कर चुके हैं. कई बड़े सरकारी आयोजनों में वह नगाड़ा वादन करते आए हैं. राजस्थान के मुख्यमंत्री से वह सम्मानित हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि यह पहला अवसर है जब कोरोना काल के दौरान उन्होंने अपनी कला के प्रदर्शन के लिए विदेश यात्रा नहीं की.

नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी से बातचीत पार्ट-02

जब खाने के लिए भी मोहताज हुए नाथू लाल-

हमने नाथू लाल सोलंकी से उनके बारे में जनना चाहा तो उनका गला रुध आया. सोलंकी कहते हैं कि कोरोना काल उनके लिए बहुत ही मुश्किल समय है. इस बीच ऐसा भी समय आया जब पेट भरने के लिए घर में आटा भी नहीं था. दुकानदारों ने उधार देना बंद कर दिया था. कुछ पहचान के लोगों ने और संस्थाओं ने कुछ मदद की लेकिन वह मदद नाकाफी थी.

अपनी कला को देश और दुनिया में बांट रहे हैं...

सोलंकी कहते हैं कि वह भाग्यशाली हैं कि आपका जन्म तीर्थ नगरी पुष्कर में हुआ और यहीं पर उन्होंने नगाड़ा वादन का सफर शुरू किया. नाथू लाल सोलंकी बताते हैं कि लंदन के विश्व विख्यात सबसे बड़े बैंड रेडियो हेड के साथ काम किया और उससे जुड़े हुए भी हैं. इसके अलावा सुप्रसिद्ध ड्रमर शिवमणि, सुशीला रमन, प्रेम जोशुआ, कैलाश खेर के साथ भी जुगलबंदी की है. कई बड़े कलाकारों के साथ जुगलबंदी करने का मौका मिला है. नाथू लाल सोलंकी ने अपनी कला को अपने तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि वह अपनी कला को देश और दुनिया में बांट रहे हैं.

...मैं तो मेरी लाइन पर ही चल रहा हूं

वहीं देश और दुनिया में नाथू लाल सोलंकी के कई शिष्य भी हैं. नाथू लाल सोलंकी बताते हैं कि कोरोना काल में वह ऑनलाइन नगाड़ा वादन सिखाने में सक्षम नहीं रहे. उन्होंने बताया कि परिवारिक जिम्मेदारियों के कारण बचपन से ही उन्हें शिक्षा प्राप्त नहीं हो सकी. इस कारण ऑनलाइन नगाड़ा वादन सिखाने की प्रक्रिया उन्हें नहीं आती है. उन्होंने कहा कि मैं तो मेरी लाइन पर ही चल रहा हूं मेरी पद्धति और संस्कृति को निभा रहा हूं. लेकिन मैं अगली पीढ़ी को जरूर कह रहा हूं कि वह शिक्षा प्राप्त करें और कला को अविष्कार की जननी बनाकर काम करें.

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मशहूर नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी नगाड़ा बजाते हुए
ऑनलाइन कला के प्रदर्शन के सवाल पर नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी ने कहा कि जिस तरह से फसल खेत में बीज बोने से ही होती है उसी प्रकार कला भी गुरुमुखी ही सीखी जा सकती है ऑनलाइन संभव नहीं है. ऑनलाइन की औपचारिकताओं में वह बात नहीं आएगी जैसे किसान खेत में बीज डालकर फसल पैदा करता है और उससे रोटियां बनती है. तीर्थ नगरी पुष्कर में अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेला भी आयोजित होता है इसके अलावा कई बड़े कार्यक्रम सरकारी तौर पर भी आयोजित किए जाते हैं.

यह सभी आयोजनों में नाथू लाल सोलंकी का नगाड़ा वादन बिना अधूरे प्रतीत होते हैं. कोरोना की वजह से सरकारी आयोजन भी फिलहाल बंद हैं. इस बार अंतर्राष्ट्रीय पुष्कर मेला भी आयोजित नहीं किया गया है. ऐसे में नाथू लाल सोलंकी को आजीविका के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी ने बताया कि कोरोना काल में सभी प्रकार के आयोजन बंद थे. ऐसे में शादी समारोह को लेकर आजीविका कमाने की एक उम्मीद जगी थी मगर 8 बजे बाद कर्फ्यू लगा देने से उस उम्मीद पर भी पानी फिर गया. इस कारण कई बड़ी शादियों में उन्होंने बुकिंग ली थी वह सब कैंसिल हो चुकी है.

ये भी पढ़ें: 'भाजपा ना तो अगले 3 साल में सरकार गिरा पाएगी और ना उसके अगले पांच साल सरकार बना पाएगी'

ये भी पढ़ें: पत्नी का गला रेतकर शव के पास गेम खेलता रहा पति, ससुर को फोन कर बताया- आपकी बेटी की हत्या कर दी है

उन्होंने बताया कि पहले से भी ज्यादा आर्थिक तौर पर स्थिति खराब हो चुकी है. लॉकडाउन के दौरान किसी तरह की सरकारी मदद उन्हें नहीं मिली. कुछ पहचान वालों ने मामूली सी मदद की लेकिन वह मदद ना काफी थी. इन विषम परिस्थितियों में आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे नाथू लाल सोलंकी ने अपने नगाड़ा वादन का सफर नहीं छोड़ा है. आज भी नाथू लाल सोलंकी गणगौर घाट पर नियमित रूप से प्रत्येक दिन नगाड़ा वादन करते हैं. साथ ही कला के प्रदर्शन के साथ तीर्थराज पुष्कर से प्रार्थना भी करते हैं कि कोरोना इस देश और दुनिया से रुखसत हो जाएं. फिर से पहले जैसे सामान्य हालात हो और कलाकारों को कला के माध्यम से रोजगार का अवसर मिल सके.

अजमेर. तीर्थ नगरी के नाम से मशहूर अजमेर में जिले में रहने वाले यहां पैदा हुए ऐसे कई कलाकार हैं जिन्होंने प्रदेश और देश ही नहीं बल्की पूरी दुनिया में अपने नाम का डंका बचाया है. कोरोना काल से पहले तक इन कलाकारों के रोजगार में कोई कमी नहीं थी लेकिन कोरोना ने इनके रोजगार को ऐसा आघात पहुचाया है कि कई कलाकार अब अपना परिवार भी नहीं चला पा रहे हैं. इन्हीं लोगों में एक नाम है पुष्कर में रहने वाले नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी. इंग्लैंड की महारानी के महल में नगाड़ा वादन कर चुके नाथू लाल सोलंकी देश और दुनिया के विख्यात कलाकारों के साथ जुगलबन्दी कर चुके हैं.

नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी से बातचीत पार्ट-01

अपने नगाड़े की धून से दूसरों को मोह लेने वाले नाथू लाल अब अपने लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं कर पा रहे हैं. पुष्कर के पवित्र सरोवर के गणगौर घाट से शाम को पुष्कर राज की आरती से पहले अध्यात्मिक माहौल में नगाड़ों की मधुर धुन हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है. 35 वर्षों से गणगौर घाट से नाथू लाल सोलंकी ने नगाड़ा वादन का सफर शुरू किया था अपने गुरु रामकृष्ण से उन्होंने नगाड़ा वादक सीखा और उसके बाद नियमित अभ्यास करते रहे.

दो रुपए में दिन भर बजाते थे नगाड़ा-

नगाड़ा वादक नाथूलाल बताते हैं कि गणगौर घाट पर प्रत्येक दिन नगाड़ा वादन करने के लिए डब्लू महाराज उन्हें दो रुपए प्रतिदिन दिया करते थे. इस दौरान उनके नगाड़ा वादन की ख्याति सात समंदर पार तक पहुंच गई. नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी बताते हैं कि इंग्लैंड की महारानी और राष्ट्रपति भवन में भी वह नगाड़ा वादन कर चुके हैं. कई बड़े सरकारी आयोजनों में वह नगाड़ा वादन करते आए हैं. राजस्थान के मुख्यमंत्री से वह सम्मानित हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि यह पहला अवसर है जब कोरोना काल के दौरान उन्होंने अपनी कला के प्रदर्शन के लिए विदेश यात्रा नहीं की.

नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी से बातचीत पार्ट-02

जब खाने के लिए भी मोहताज हुए नाथू लाल-

हमने नाथू लाल सोलंकी से उनके बारे में जनना चाहा तो उनका गला रुध आया. सोलंकी कहते हैं कि कोरोना काल उनके लिए बहुत ही मुश्किल समय है. इस बीच ऐसा भी समय आया जब पेट भरने के लिए घर में आटा भी नहीं था. दुकानदारों ने उधार देना बंद कर दिया था. कुछ पहचान के लोगों ने और संस्थाओं ने कुछ मदद की लेकिन वह मदद नाकाफी थी.

अपनी कला को देश और दुनिया में बांट रहे हैं...

सोलंकी कहते हैं कि वह भाग्यशाली हैं कि आपका जन्म तीर्थ नगरी पुष्कर में हुआ और यहीं पर उन्होंने नगाड़ा वादन का सफर शुरू किया. नाथू लाल सोलंकी बताते हैं कि लंदन के विश्व विख्यात सबसे बड़े बैंड रेडियो हेड के साथ काम किया और उससे जुड़े हुए भी हैं. इसके अलावा सुप्रसिद्ध ड्रमर शिवमणि, सुशीला रमन, प्रेम जोशुआ, कैलाश खेर के साथ भी जुगलबंदी की है. कई बड़े कलाकारों के साथ जुगलबंदी करने का मौका मिला है. नाथू लाल सोलंकी ने अपनी कला को अपने तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि वह अपनी कला को देश और दुनिया में बांट रहे हैं.

...मैं तो मेरी लाइन पर ही चल रहा हूं

वहीं देश और दुनिया में नाथू लाल सोलंकी के कई शिष्य भी हैं. नाथू लाल सोलंकी बताते हैं कि कोरोना काल में वह ऑनलाइन नगाड़ा वादन सिखाने में सक्षम नहीं रहे. उन्होंने बताया कि परिवारिक जिम्मेदारियों के कारण बचपन से ही उन्हें शिक्षा प्राप्त नहीं हो सकी. इस कारण ऑनलाइन नगाड़ा वादन सिखाने की प्रक्रिया उन्हें नहीं आती है. उन्होंने कहा कि मैं तो मेरी लाइन पर ही चल रहा हूं मेरी पद्धति और संस्कृति को निभा रहा हूं. लेकिन मैं अगली पीढ़ी को जरूर कह रहा हूं कि वह शिक्षा प्राप्त करें और कला को अविष्कार की जननी बनाकर काम करें.

Nagada maestro, Nathu Lal Solanki rajasthan, Rajasthan Pushkar fair, Nushu Lal Solanki in Pushkar Fair, story of Nathu Lal Solanki, Corona virus in Rajasthan, Famous Nagada maestro
मशहूर नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी नगाड़ा बजाते हुए
ऑनलाइन कला के प्रदर्शन के सवाल पर नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी ने कहा कि जिस तरह से फसल खेत में बीज बोने से ही होती है उसी प्रकार कला भी गुरुमुखी ही सीखी जा सकती है ऑनलाइन संभव नहीं है. ऑनलाइन की औपचारिकताओं में वह बात नहीं आएगी जैसे किसान खेत में बीज डालकर फसल पैदा करता है और उससे रोटियां बनती है. तीर्थ नगरी पुष्कर में अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेला भी आयोजित होता है इसके अलावा कई बड़े कार्यक्रम सरकारी तौर पर भी आयोजित किए जाते हैं.

यह सभी आयोजनों में नाथू लाल सोलंकी का नगाड़ा वादन बिना अधूरे प्रतीत होते हैं. कोरोना की वजह से सरकारी आयोजन भी फिलहाल बंद हैं. इस बार अंतर्राष्ट्रीय पुष्कर मेला भी आयोजित नहीं किया गया है. ऐसे में नाथू लाल सोलंकी को आजीविका के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी ने बताया कि कोरोना काल में सभी प्रकार के आयोजन बंद थे. ऐसे में शादी समारोह को लेकर आजीविका कमाने की एक उम्मीद जगी थी मगर 8 बजे बाद कर्फ्यू लगा देने से उस उम्मीद पर भी पानी फिर गया. इस कारण कई बड़ी शादियों में उन्होंने बुकिंग ली थी वह सब कैंसिल हो चुकी है.

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उन्होंने बताया कि पहले से भी ज्यादा आर्थिक तौर पर स्थिति खराब हो चुकी है. लॉकडाउन के दौरान किसी तरह की सरकारी मदद उन्हें नहीं मिली. कुछ पहचान वालों ने मामूली सी मदद की लेकिन वह मदद ना काफी थी. इन विषम परिस्थितियों में आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे नाथू लाल सोलंकी ने अपने नगाड़ा वादन का सफर नहीं छोड़ा है. आज भी नाथू लाल सोलंकी गणगौर घाट पर नियमित रूप से प्रत्येक दिन नगाड़ा वादन करते हैं. साथ ही कला के प्रदर्शन के साथ तीर्थराज पुष्कर से प्रार्थना भी करते हैं कि कोरोना इस देश और दुनिया से रुखसत हो जाएं. फिर से पहले जैसे सामान्य हालात हो और कलाकारों को कला के माध्यम से रोजगार का अवसर मिल सके.

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