अजमेर. श्रावण के बीच पुरुषोत्तम मास (अदिकमास) कई वर्षों बाद आया है, यानी भगवान भोलेनाथ के साथ भगवान विष्णु की आराधना भी की जा रही है. हरि हर के इस मिलन के मौके पर ईटीवी भारत आपको लेकर चल रहा है धरती के सबसे पवित्र स्थान पर, जहां मान्यता है कि सर्व प्रथम सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु का पदार्पण धरती पर हुआ था.
पांच नदियों का संगम : हरिवंश पुराण और पद्म पुराण के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई थी. कानबाय से सवा किलोमीटर नजदीक ही भगवान शिव का भी तपस्थल यहां मौजूद है. इस स्थान को ककड़ेश्वर, मकड़ेश्वर और भभूतेश्वर के नाम से जाना जाता है. इनमें से मकडे़श्वर महादेव के शिवलिंग को स्वंय जगतपिता ब्रह्मा ने स्थापित किया था. पुष्कर में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का स्थान है. पद्म पुराण के अनुसार हजारों वर्ष पहले पुष्कर के कानबाय क्षेत्र में ही पंच धारों (नदी) का मिलन था. इन नदियों में नंदा, कनका, सुप्रभा, सुधा और प्राची शामिल थीं. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने यहां 10 वर्ष तक कठोर तपस्या की थी. इस स्थान पर श्रीर सागर नामक एक कुंड भी है, जहां च्यवन ऋषि ने स्नान करके वृद्ध होने के श्राप से मुक्ति पाई थी.
कानबाय में प्राचीनतम श्री हरि की प्रतिमा : पुजारी श्याम सुंदर वैष्णव बताते हैं कि पुष्कर अरण्य क्षेत्र में सर्व प्रथम भगवान श्री विष्णु का पदार्पण कानबाय में हुआ था. इस स्थान पर भगवान विष्णु की शेषनाग पर शयन करते हुए प्रतिमा है. दावा है कि ये विश्व की सबसे प्राचीनतम मूर्ति है. भगवान विष्णु के चरणों में माता लक्ष्मी विराजमान हैं, काले पत्थर से बनी यह प्रतिमा काफी आकर्षक है. पुराणों के अनुसार जगतपिता ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण किया था. इसके अनुसार भगवान विष्णु की यह अद्भुत बड़ी प्रतिमा 41 हजार 80 वर्ष प्राचीन है, जबकि मूर्ति से लिए गए कार्बन की जांच रेटिंग में 3200 वर्ष पुरानी मूर्ति बताई जाती है. यह आकलन अमेरिका के वैज्ञानिकों ने किया था, जबकि भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार भगवान विष्णु की यह मूर्ति 4 हजार वर्ष पहले की है.
ब्रह्मा का उद्भव स्थान भी पुष्कर : पुजारी बताते हैं कि तीर्थ नगरी पुष्कर के आरण्य क्षेत्र में नांद गांव के नजदीक सूरजकुण्ड गांव में श्रीरसागर कानबाय मंदिर है, जिसे स्थानीय लोग कानबाय के नाम से पुकारते हैं. हजारों वर्ष पहले यहां से 30 किलोमीटर दूर श्रीरसागर हुआ करता था. पद्म पुराण और हरिवंश पुराण में श्री हरि के इस पवित्र स्थान का उल्लेख है. जगतपिता और सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का उद्भव स्थान भी पुष्कर को ही माना जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से जगतपिता ब्रह्मा का अवतरण होना माना जाता है.
दो बार आए थे यहां श्री राम : पुराणों के अनुसार श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं. भगवान श्री राम दो बार पुष्कर आए थे. कानबाय मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि वनवास के दौरान श्री राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पुष्कर आए थे. यहां पर गया कुंड में उन्होंने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था. वनवास के दौरान श्री राम एक माह तक पुष्कर के आरण्य क्षेत्र कानबाय में रुके थे. दूसरी बार श्री राम अपने भाई भरत के साथ अयोध्या से लंका विभीषण से मिलने पुष्पक विमान से जाते हुए यहां रुके थे. श्री राम ने भरत को लंका जाते हुए वह सभी स्थान दिखाए थे, जहां पर उन्होंने वनवास के दिन काटे थे.
7 बार आए थे भगवान कृष्ण : पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण 7 बार कानबाय आए थे. मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि श्री कृष्ण प्रथम बार मथुरा से द्वारका जाते वक्त कानबाय में रुके थे. दूसरी बार ऋषि दुर्वासा के आग्रह पर हंस और डिम्बक राक्षस से रक्षा करने के लिए कृष्ण बलराम अपनी सेना के साथ यहां आए थे. दोनों शक्तिशाली राक्षसों का वध करने के बाद कई लोग कानबाय क्षेत्र के आसपास बस गए. हरिवंश पुराण में इसका उल्लेख है. इसके बाद श्री कृष्ण जब भी द्वारका से मथुरा-कुरुक्षेत्र आते-जाते, यहां रुका करते थे. श्री कृष्ण के साथ आए लोगों ने ही यहां आस-पास कई गांव बसाए. इनका नाम भी ब्रज में स्थित गांवों के नामों के समान रखा गया, जो बाद में अभ्रंश हो गए. मसलन गोकुल से गोयला हो गया, नन्द से नांद और बरसाना से बासेली गांव का नाम हो गया.
भगवान शिव की तपोस्थली रहा समीप स्थान : कानबाय से नजदीक पंच नदियों के संगम के स्थान के समीप भगवान शिव का पवित्र स्थान है, जहां पद्म पुराण के अनुसार भगवान शिव ने 9100 वर्ष तक यहां तप किया था. इस स्थान पर तीन अलग-अलग शिवलिंग हैं. पद्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि यज्ञ की रक्षा के लिए चारों दिशाओं में 4 शिवलिंग स्थापित किए थे. इनमें से एक मकडे़श्वर शिवलिंग है.
शिवलिंग में कृष्ण और बलराम की प्रतिमा : मकडे़श्वर महादेव मंदिर में 35 वर्षों से निवास कर रहे संत शांडिल्य बताते है कि वर्षों पहले मकड़ी के आकार जैसा शिवलिंग एक बड़ के पेड़ के नीचे था, बाद में ऋषि मंकण ने शिवलिंग को यहां स्थापित किया. ग्वालियर के राजा ने यहां मंदिर बनवाया था. दूसरा शिवलिंग भभूतेश्वर है. 5 फिट लंबा शिवलिंग वर्षों से खुले आसमान के नीचे है. इस शिवलिंग को श्री कृष्ण के समकक्ष माना जाता है. शिवलिंग में कृष्ण और बलराम की प्रतिमा बनी हुई है, जो अपने आप में अनूठी है. मान्यता है कि शिवलिंग की सुबह पूजा अर्चना करने से चर्म रोग से मुक्ति मिलती है.
ककडे़श्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग स्वंय भू : तीसरा शिवलिंग ककडे़श्वर महादेव मंदिर में है. सफेद संगमरमर के पत्थर से निर्मित अति प्राचीन शिवलिंग का आकार ककड़ी की तरह लगता है, इसलिए स्थानीय लोग ककडे़श्वर महादेव के नाम से पुकारते हैं. ककडे़श्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग स्वंय भू हैं. बताया जाता है कि मंदिर के समीप ही ऋषि कण्व की तपोस्थली थी. यहीं पर राजा दुष्यंत की पत्नी शंकुतला रही थी. शंकुतला के पुत्र भरत यहीं आसपास के जंगलों में शेरों के साथ खेला करते थे. भरत के नाम से ही देश का नाम भारत हुआ है.