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Eating Disorder : टीनएजर्स में ज्यादा देखा जाता है ये मनोरोग, शारीरिक और मानसिक दुर्बलता का बनता है कारण

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Published : Jun 5, 2023, 10:42 PM IST

किशोरावस्था बड़ी नाजुक होती है. इसमें शारीरिक बदलाव होते हैं, इसलिए इस उम्र में बच्चों को पौष्टिक आहार की जरूरत होती है. हालांकि, कई टीनएजर्स ईटिंग डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं. यह एक प्रकार का मनोरोग है इसका इलाज भी मनोरोग चिकित्सा से ही संभव है.

what is Eating Disorder
साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़
क्या है ईटिंग डिसऑर्डर, जानिए डॉ. मनीषा गौड़ से

अजमेर. ईटिंग डिसऑर्डर एक प्रकार का मनोरोग है. आमतौर पर यह मनोरोग किशोर उम्र में पाया जाता है. खासकर टीनएजर्स लड़कियों में यह ज्यादा पाया जाता है. दुनिया की जनसंख्या के अनुपात में 9 फीसदी लोग ईटिंग डिसऑर्डर के शिकार हैं, लेकिन लोग बीमारी के बारे में कम जानते हैं. मसलन जिन टीनेजर्स को ईटिंग डिसऑर्डर होता भी है तो उनके अभिभावक इस रोग को पहचान नहीं पाते हैं. अजमेर की साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ से जानते हैं हेल्थ टिप्स में ईटिंग डिसऑर्डर के कारण लक्षण और उपचार.

पहले स्टेप में ये होता है : साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि ईटिंग डिसऑर्डर दो प्रकार के होते हैं. इनमें एनोरेक्सिया नर्वोसा और बुलिमिया नर्वोसा शामिल हैं. उन्होंने बताया कि ईटिंग डिसऑर्डर की शुरुआत एनोरेक्सिया नर्वोसा से होती है. इसमें रोगी बॉडी शेप और वजन सही होने पर भी कम खाता है, उसे ऐसा महसूस होता है कि खाने से उसका मोटापा बढ़ रहा है. वह अपने फिगर को लेकर काफी चिंतित रहता है. उन्होंने बताया कि ऐसे रोगी खाना-पीना बंद कर देते हैं और यदि वह खा भी लेते हैं तो उसे जबरन उल्टी करके निकाल देते हैं. इस कारण उनका वजन घटने लगता है. शरीर को आवश्यक तत्व नहीं मिल पाते हैं. इस कारण से शारीरिक दुर्बलता आने लगती है.

पढ़ें. No Diet Day : डाइटिंग और फास्टिंग घटाएगा मोटापा! एक्सपर्ट से जानिए एक दिन भोजन छोड़ने के मायने

दूसरा स्टेप भी खतरनाक : डॉ. गौड़ बताती हैं कि ईटिंग डिसऑर्डर का दूसरा प्रकार बुलिमिया नर्वोसा है. इस रोग से पीड़ित भोजन ज्यादा करता है और बार-बार करता है. ऐसा करने के बाद वह खाए भोजन को जबरन उल्टी करके बाहर निकाल देता है. यदि ऐसा नहीं करते हैं तो रोगी खुद को 2 से 3 दिन तक भूखा रखते हैं ताकि ज्यादा खाना खाने से शरीर को हुए नुकसान की भरपाई की जा सके. दोनों ही प्रकार में रोगी बॉडी शेमिंग के कारण भी ऐसा करता है. उन्होंने बताया कि ईटिंग डिसऑर्डर मनोरोग कई मॉडल्स और सुपर मॉडल्स में ज्यादा देखने को मिलता है.

ईटिंग डिसऑर्डर के शुरुआती लक्षण : डॉ. मनीषा गौड़ बताती है कि ईटिंग डिसऑर्डर की शुरुआत एनोरेक्सिया से होती है. इस कारण शारीरिक विकास में कमी आती है. टीनएजर्स लड़कियों में महामारी डिस्टर्ब होती है. साथ ही स्तनों का आकार भी प्रभावित होता है. इसी प्रकार टीनएजर्स लड़कों में जननांगों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है. ईटिंग डिसऑर्डर के कारण बड़े होने पर भी बच्चों जैसे ही उनके जननांग रह जाते हैं. ऐसे किशोर उम्र के लड़के-लड़कियों में शारीरिक दुर्बलता के साथ-साथ मानसिक दुर्बलता भी बढ़ने लगती है. उन्होंने बताया कि अभिभावकों को अपने किशोर उम्र बच्चों के स्वभाव में बदलाव, शारीरिक कमजोरी, खाने की आदत में बदलाव, बार-बार उल्टी करने की शिकायत, खाना खाने के बाद टॉयलेट जाना, बार-बार मोटापे की शिकायत करना, शीशे के सामने ज्यादा वक्त गुजारना आदि लक्षण दिखे तो उन्हें सावधान हो जाना चाहिए.

पढ़ें. Health Tips: खिलौना दिखाने और बोलने पर भी अगर बच्चा न दे प्रतिक्रिया तो हो सकता है इस बीमारी का खतरा...

मनोरोग चिकित्सक को दिखाएं : डॉ. गौड़ बताती हैं कि ईटिंग डिसऑर्डर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. इस कारण वह इस मनोरोग को गंभीरता से नहीं ले पाते हैं. भूख कम लगने, उल्टी करने जैसे लक्षणों को लोग पेट संबंधी बीमारी समझ लेते हैं और ईटिंग डिसऑर्डर से ग्रसित बच्चे को पेट के इलाज से संबंधित चिकित्सक को दिखाते हैं, तब तक काफी देर हो चुकी होती है. ऐसे मरीज को मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए. उन्होंने बताया कि इसमें साइकेट्रिक तरीके से इलाज किया जाता है. आवश्यकता पड़ने पर रोगी को दवा दी जाती है. साथ ही अलग-अलग प्रकार की थेरेपी भी रोगी को दी जाती है.

क्या है ईटिंग डिसऑर्डर, जानिए डॉ. मनीषा गौड़ से

अजमेर. ईटिंग डिसऑर्डर एक प्रकार का मनोरोग है. आमतौर पर यह मनोरोग किशोर उम्र में पाया जाता है. खासकर टीनएजर्स लड़कियों में यह ज्यादा पाया जाता है. दुनिया की जनसंख्या के अनुपात में 9 फीसदी लोग ईटिंग डिसऑर्डर के शिकार हैं, लेकिन लोग बीमारी के बारे में कम जानते हैं. मसलन जिन टीनेजर्स को ईटिंग डिसऑर्डर होता भी है तो उनके अभिभावक इस रोग को पहचान नहीं पाते हैं. अजमेर की साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ से जानते हैं हेल्थ टिप्स में ईटिंग डिसऑर्डर के कारण लक्षण और उपचार.

पहले स्टेप में ये होता है : साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि ईटिंग डिसऑर्डर दो प्रकार के होते हैं. इनमें एनोरेक्सिया नर्वोसा और बुलिमिया नर्वोसा शामिल हैं. उन्होंने बताया कि ईटिंग डिसऑर्डर की शुरुआत एनोरेक्सिया नर्वोसा से होती है. इसमें रोगी बॉडी शेप और वजन सही होने पर भी कम खाता है, उसे ऐसा महसूस होता है कि खाने से उसका मोटापा बढ़ रहा है. वह अपने फिगर को लेकर काफी चिंतित रहता है. उन्होंने बताया कि ऐसे रोगी खाना-पीना बंद कर देते हैं और यदि वह खा भी लेते हैं तो उसे जबरन उल्टी करके निकाल देते हैं. इस कारण उनका वजन घटने लगता है. शरीर को आवश्यक तत्व नहीं मिल पाते हैं. इस कारण से शारीरिक दुर्बलता आने लगती है.

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दूसरा स्टेप भी खतरनाक : डॉ. गौड़ बताती हैं कि ईटिंग डिसऑर्डर का दूसरा प्रकार बुलिमिया नर्वोसा है. इस रोग से पीड़ित भोजन ज्यादा करता है और बार-बार करता है. ऐसा करने के बाद वह खाए भोजन को जबरन उल्टी करके बाहर निकाल देता है. यदि ऐसा नहीं करते हैं तो रोगी खुद को 2 से 3 दिन तक भूखा रखते हैं ताकि ज्यादा खाना खाने से शरीर को हुए नुकसान की भरपाई की जा सके. दोनों ही प्रकार में रोगी बॉडी शेमिंग के कारण भी ऐसा करता है. उन्होंने बताया कि ईटिंग डिसऑर्डर मनोरोग कई मॉडल्स और सुपर मॉडल्स में ज्यादा देखने को मिलता है.

ईटिंग डिसऑर्डर के शुरुआती लक्षण : डॉ. मनीषा गौड़ बताती है कि ईटिंग डिसऑर्डर की शुरुआत एनोरेक्सिया से होती है. इस कारण शारीरिक विकास में कमी आती है. टीनएजर्स लड़कियों में महामारी डिस्टर्ब होती है. साथ ही स्तनों का आकार भी प्रभावित होता है. इसी प्रकार टीनएजर्स लड़कों में जननांगों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है. ईटिंग डिसऑर्डर के कारण बड़े होने पर भी बच्चों जैसे ही उनके जननांग रह जाते हैं. ऐसे किशोर उम्र के लड़के-लड़कियों में शारीरिक दुर्बलता के साथ-साथ मानसिक दुर्बलता भी बढ़ने लगती है. उन्होंने बताया कि अभिभावकों को अपने किशोर उम्र बच्चों के स्वभाव में बदलाव, शारीरिक कमजोरी, खाने की आदत में बदलाव, बार-बार उल्टी करने की शिकायत, खाना खाने के बाद टॉयलेट जाना, बार-बार मोटापे की शिकायत करना, शीशे के सामने ज्यादा वक्त गुजारना आदि लक्षण दिखे तो उन्हें सावधान हो जाना चाहिए.

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मनोरोग चिकित्सक को दिखाएं : डॉ. गौड़ बताती हैं कि ईटिंग डिसऑर्डर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. इस कारण वह इस मनोरोग को गंभीरता से नहीं ले पाते हैं. भूख कम लगने, उल्टी करने जैसे लक्षणों को लोग पेट संबंधी बीमारी समझ लेते हैं और ईटिंग डिसऑर्डर से ग्रसित बच्चे को पेट के इलाज से संबंधित चिकित्सक को दिखाते हैं, तब तक काफी देर हो चुकी होती है. ऐसे मरीज को मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए. उन्होंने बताया कि इसमें साइकेट्रिक तरीके से इलाज किया जाता है. आवश्यकता पड़ने पर रोगी को दवा दी जाती है. साथ ही अलग-अलग प्रकार की थेरेपी भी रोगी को दी जाती है.

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