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अजमेर का यह परिवार 46 सालों से बकरा पालकर देता आ रहा है कुर्बानी

अजमेर स्थित ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के खादिम सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी 1963 से ही घर मे जानवर पालकर कुर्बानी करते आये है. उन्होने कहा कि घर मे जानवर पालकर कुर्बानी करने की फ़ज़ीलत भी ज़्यादा है. गुर्देजी हर साल अलग-अलग नस्लों के जानवर लेकर पालते है और इनके नाम भी मुख्तलिफ रखते है.

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Published : Aug 12, 2019, 2:43 AM IST

Goats have been sacrificed since 1963

अजमेर. ईद-उल-अज़हा के लिए लोग यूं तो कुर्बानी के लिए जानवर मंडी से लेकर आते है. लेकिन ज़्यादातर लोग घरों में ही जानवर पाल कर कुर्बानी करते है. इन्ही बकरा पालने वालों में एक नाम अजमेर के दरगाह खादिम सैय्यद गनी गुर्देजी का भी है.

1963 से बकरा पालकर दी जाती है कुर्बानी

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के खादिम सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी 1963 से ही घर मे जानवर पालकर कुर्बानी करते आए है. उन्होने कहा कि घर मे जानवर पालकर कुर्बानी करने की फ़ज़ीलत भी ज़्यादा है. गुर्देजी हर साल अलग-अलग नस्लों के जानवर लेकर पालते है. और इनके नाम भी मुख्तलिफ रखते है. गुर्देजी ने इस साल जो जानवर कुर्बानी के लिए पाला है उसका नाम अराफात रखा है.

पढ़ेंः बोहरा समाज ने धूमधाम से मनाई ईद, देश में अमन चैन की मांगी दुआ

अराफात को हर रोज़ सुबह 1 किलो दूध और 1 किलो चने की दाल खिलाया जाता हैं. गुर्देजी इन जानवरों को घर मे बच्चों की तरह पालते है.सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी हर साल अपने घर 'ख्वाजा महल' में ईद उल अज़हा के मौके पर पंजतने पाक के नाम से कुर्बानी देते है. इससे एक दिन पहले इस जानवर को बग्गी में लगाकर अपने घर से होते हुए लंगर खाना गली से दरगाह के निजाम गेट तक इसकी सवारी निकालते है और दरगाह पर सलामी के बाद दोबारा घर ले जाते है.

अजमेर. ईद-उल-अज़हा के लिए लोग यूं तो कुर्बानी के लिए जानवर मंडी से लेकर आते है. लेकिन ज़्यादातर लोग घरों में ही जानवर पाल कर कुर्बानी करते है. इन्ही बकरा पालने वालों में एक नाम अजमेर के दरगाह खादिम सैय्यद गनी गुर्देजी का भी है.

1963 से बकरा पालकर दी जाती है कुर्बानी

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के खादिम सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी 1963 से ही घर मे जानवर पालकर कुर्बानी करते आए है. उन्होने कहा कि घर मे जानवर पालकर कुर्बानी करने की फ़ज़ीलत भी ज़्यादा है. गुर्देजी हर साल अलग-अलग नस्लों के जानवर लेकर पालते है. और इनके नाम भी मुख्तलिफ रखते है. गुर्देजी ने इस साल जो जानवर कुर्बानी के लिए पाला है उसका नाम अराफात रखा है.

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अराफात को हर रोज़ सुबह 1 किलो दूध और 1 किलो चने की दाल खिलाया जाता हैं. गुर्देजी इन जानवरों को घर मे बच्चों की तरह पालते है.सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी हर साल अपने घर 'ख्वाजा महल' में ईद उल अज़हा के मौके पर पंजतने पाक के नाम से कुर्बानी देते है. इससे एक दिन पहले इस जानवर को बग्गी में लगाकर अपने घर से होते हुए लंगर खाना गली से दरगाह के निजाम गेट तक इसकी सवारी निकालते है और दरगाह पर सलामी के बाद दोबारा घर ले जाते है.

Intro:ईद उल अज़हा के लिए लोग यूं तो कुर्बानी के लिए जानवर मंडी से लेकर आते ही है।लेकिन ज़्यादातर लोग घरों में ही जानवर पाल कर कुर्बानी करते है।इन्ही बकरा पालने वालों में एक नाम अजमेर के दरगाह खादिम सैय्यद गनी गुर्देजी का भी है।




Body:ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के खादिम सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी 1963 से ही घर मे जानवर पालकर कुर्बानी करते आये है।और घर मे जानवर पालकर कुर्बानी करने की फ़ज़ीलत भी ज़्यादा है। गुर्देजी हर साल अलग-अलग नस्लों के जानवर लेकर पालते है और इनके नाम भी मुख्तलिफ रखते है।



गुर्देजी ने इस साल जो जानवर कुर्बानी के लिए पाला है उसका नाम अराफात रखा है। अराफात को हर रोज़ सुबह 1 किलो दूध और 10/-की जलेबी,दोपहर में 20/-का हरा चारा, शाम को 1 किलो चने की दाल खिलाने का मामूल है। गुर्देजी इन जानवरों को घर मे बच्चों की तरह पालते है।






Conclusion:सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी हर साल अपने घर 'ख्वाजा महल' में ईद उल अज़हा के मौके पर पंजतने पाक के नाम से कुर्बानी देते है।इससे एक दिन पहले इस जानवर को बग्गी में लगाकर अपने घर से होते हुए लंगर खाना गली से दरगाह के निजाम गेट तक सवारी निकालते है ओर दरगाह पर सलामी के बाद दोबारा घर ले जाते है।


बाईट- सैयद अब्दुल गनी गुर्देजी खादिम दरगाह शरीफ
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