अजमेर. दुल्हन सी सजी यह बारगाह है उस शहर की जिसने लोगों को नवाज दिया है. यह करम है ख्वाजा गरीब नवाज का. जो इस दर पर आता है वो यही का हो कर रह जाता है. दौड़ने लगे हैं ख्वाजा के दीवाने अजमेर की और. मौका है ख्वाजा गरीब नवाज के 807 वर्ष का, जहां झंडे की रस्म के साथ ही और उसकी अनौपचारिक शुरुआत हो चुकी है. गुरूवार को गरीब नवाज की दरगाह में खुद्दामो द्वारा संदल की रस्म का निभाया गया.
इस रस्म को आस्ताना मामूल होने के बाद निभाया जाता है. दरगाह शरीफ की खुद्दामो की ओर से इस रस्म को निभाया जाता है. यह परम्परा लंबे अरसे से इसी प्रकार निभाई जाती रही है.
आस्ताना शरीफ पर शाही कव्वालों की ओर से सूफी कव्वालियां प्रस्तुत की गई जिसकी रौनक हर किसी को थामने पर मजबूर कर देती हैं. हर कोई इस सराबोर में डूबना चाहता है. कव्वालियों की धुनों पर मदहोश ख्वाजा के दीवाने बस उनके ही नाम में डूबे हैं.
क्या है संदल की रस्म
संदल की रस्म सिर्फ गरीब नवाज के उर्स में ही निभाई जाती है. संदल चंदन को कहा जाता है जो कि गरीब नवाज की मजार के ऊपरी हिस्से पर लेप की तरह लगाया जाता है. यह खादिम की ओर से रोज पेश किया जाता है. इसके एक दिन पहले गरीब नवाज के उर्स के समय ही इसे गरीब नवाज के खादिम द्वारा उतारा जाता है.
इस संदल को उतारने के बाद जायरीनों में बांटा जाता है. जिसे पाने के लिए बाहर से आने वाले जायरीनों में होड़ सी मच जाती है और ऐसा माना जाता है कि संदल को पानी के साथ पीने से और इसे खाने से इंसान के सभी दुख व दर्द दूर हो जाते .हैं इसलिए जायरीन इसे बोतल में उसका पानी बनाकर यहां से लेकर जाते हैं.
जानकारी देते हुए ख़ादिम कुतुबुद्दीन सखी ने बताया यह रस्म काफी लंबे अरसे से निभाई जा रही है, जो साल में गरीब नवाज के उर्स के समय पर ही निभाई जाती है.