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Exclusive Interview: लोक नृत्यांगना गुलाबो ने मां और मौसी को किया याद, कहा- अगर दफन हो गई होती तो आज ये शोहरत न होती

महज 6 वर्ष की उम्र में सपेरा नृत्य को जन्म देने वाली गुलाबो आज चार बेटियों की मां और दो पोतियों की दादी बन चुकी हैं. इस नृत्य कौशल के बूते गुलाबो ने देश-दुनिया में अपना नाम बनाया और आज उन्हें दुनिया में कालबेलिया नृत्यांगना (Kalbelia Dancer Padmashree Gulabo) के रूप में लोग जानते हैं. ईटीवी भारत ने लोक नृत्यांगना पद्मश्री गुलाबो से खास बातचीत की...

Folk Dancer Padmashree Gulabo
लोक नृत्यांगना पद्मश्री गुलाबो
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Published : Nov 6, 2022, 11:57 AM IST

अजमेर. आज कालबेलिया संगीत व नृत्य राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage of Rajasthan) का अटूट हिस्सा बन चुका है. लेकिन बहुत कम ही लोग जानते होंगे इसकी शुरुआत पुष्कर से हुई थी. महज 6 वर्ष की उम्र में सपेरा नृत्य को जन्म देने वाली गुलाबो आज (Kalbelia Dancer Padmashree Gulabo) चार बेटियों की मां और दो पोतियों की दादी बन चुकी हैं.

इस नृत्य कौशल के बूते गुलाबो ने देश-दुनिया में अपना नाम बनाया और आज उन्हें दुनिया में कालबेलिया नृत्यांगना के रूप में लोग जानते हैं. वहीं, एक नृत्यांकना के इतर गुलाबो आज समाज सुधार के क्षेत्र में भी खासा सक्रिय हैं. ईटीवी भारत ने लोक नृत्यांगना पद्मश्री गुलाबो से (Folk Dancer Padmashree Gulabo) खास बातचीत की और उनके आगामी लक्ष्यों के बारे में जाना.

कालबेलिया की पहचान पद्मश्री गुलाबो

पुष्कर के धोरों पर नाचने वाली नन्हीं सी गुलाबो को पहली बार पुष्कर मेले में 6 साल की उम्र में अपनी कला देखने का मौका मिला था. इसके बाद गुलाबो ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. दुनिया के 167 देशों में गुलाबो अपनी नृत्य का जलवा बिखेर चुकी हैं. वहीं, उनके असाधारण प्रतिमा व नृत्य कौशल के लिए उन्हें कइयों अवार्ड से नवाजा गया. उन्हें पद्मश्री अवार्ड से भी (Ajmer Gulabo got recognition in Pushkar) सम्मानित किया जा चुका है.

इसे भी पढ़ें - पुष्कर मेला 2022: कालबेलिया नृत्यांगना पद्मश्री गुलाबो ने शानदार नृत्य से बांधा समा... देखें वीडियो

खैर, यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि गुलाबो ने अपनी विरासत खुद बनाई. उन्हें इसके लिए न तो कोई गुरु मिला और न ही उन्होंने किसी से तालीम ली. लेकिन खुद एक बेहतर शिक्षक बनी और उन्होंने अपनी बेटियों से पहले अपनी कई शिष्यों को कालबेलिया नृत्य सिखाया, जो विदेशों तक में परफार्म कर चुकी हैं. गुलाबो ने अपनी चार बेटियों के बाद अब अपनी पोतियों को नृत्य की विरासत से जोड़ा है.

वहीं, शनिवार को पुष्कर की शाम गुलाबो (Pushkar Mela 2022) के लिए बेहद खास था, क्योंकि मेले में पहली बार गुलाबो ने अपनी चार बेटियों राखी, पूनम, हेमलता और रूपा के साथ ही अपनी दोनों पोती माही और तिया के साथ मंच साझा किया. गुलाबो समेत उनकी तीन पीढ़ी को एक साथ एक मंच पर नृत्य करते देखने के लिए मेले में भारी भीड़ उमड़ी आई. इतना ही नहीं गुलाबो के साथ 20 कलाकारों की टोली भी जयपुर से पुष्कर आई थी. जिनके घूमर, फायर डांस और कालबेलिया नृत्य ने वहां मौजूद लोगों को मत्रमुग्ध कर दिया.

मंच पर अपनी परफॉर्मेंस देने से पहले पद्मश्री नृत्यांगना गुलाबो ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में उनके जीवन से जुड़ी कई अहम बातें बताई. गुलाबो ने बताया कि साल 1981 में पुष्कर मेले में उन्होंने पहली बार अपनी कला का प्रदर्शन किया था. अजमेर उनकी जन्मभूमि है, लेकिन पेट पालन के लिए वो अपने पिता के साथ पुष्कर चली आई थीं. महज 6 साल की उम्र में उन्हें मंच पर परफार्म करने का मौका मिला. उन्होंने कहा कि जब वो अपनी 6 साल की पोती को देखती हैं तो उन्हें उनका बचपन याद आता है. आज उनकी तीसरी पीढ़ी इस कला से जुड़ी है.

मां और मौसी का रहा बड़ा योगदान: गुलाबो ने बताया कि जन्म के एक घंटे बाद ही उन्हें समाज के लोगों ने जिंदा जमीन में दफन कर दिया था. कालबेलिया समाज में गरीबी के कारण लड़कियों को जन्म के बाद मार दिया जाता था. समाज के लोगों के पास बच्चियों को पालने, शिक्षित करने और उनकी शादी करने के लिए पैसे भी नहीं थे. ज्यादातर लोग भीख मांगकर किसी तरह से गुजर बसर करते थे. लिहाजा समाज में इस रूढ़िवादी परंपरा की जड़े बहुत मजबूत हो गई थी. सदियों से समाज में यही रिवाज बना हुआ था. उन्होंने बताया कि उन्हें भी जन्म के बाद जमीन में दफन कर दिया गया था. लेकिन तब उनके परिजनों ने हिम्मत कर उनकी जान बचाई. उन्होंने बताया कि उनका धनतेरस के दिन जन्म हुआ था. रिवायतन समाज के लोगों ने उन्हें जमीन में दफन कर दिया, लेकिन 5 घंटे तक जमीन में रहने के बाद मां और मौसी ने हिम्मत कर उन्हें बाहर निकाला.

सांपों से मिली प्रेरणा: नृत्यांगना गुलाबो ने बताया कि उन्हें नृत्य की प्रेरणा सांपों से मिली. जब वो 4 साल की थी तब उनके पिता उन्हें अपने साथ मेले में ले जाया करते थे, जहां वो बीन बजाकर सांपों को नचाते थे. सांप को रोज बीन की धूम पर नाचते देख आहिस्ते-आहिस्ते वो भी नृत्य के प्रति आकर्षित होने लगी. उन्होंने बताया कि उनके पिता व घर के अन्य सदस्यों को समाज से बहिष्कृत कर दिया गया था. ऐसे में उनके पिता उन्हें लेकर पुष्कर चले आए, जहां वो अपनी कला का प्रदर्शन कर किसी तरह से परिवार का भरण-पोषण करते थे.

विरासत सहेजने को खोलेंगी पुष्कर में स्कूल: गुलाबो कालबेलिया नृत्य को सपेरा नृत्य कहती हैं. उन्होंने कहा कि वो सांप की तरह नृत्य करती हैं, इसलिए वो इसे सपेरा डांस कहती हैं. वहीं, कालबेलिया नृत्य नामकरण पर उन्होंने कहा कि हम काल को बस में करते हैं. इसी लिए आगे चलकर इसे कालबेलिया नृत्य कहा जाने लगा. आगे उन्होंने बताया कि अब वो पुष्कर में अपनी विरासत सहेजने को स्कूल बना रही हैं. ताकि अधिक से अधिक बच्चियां इस नृत्य को सीख सके.

खुद को साबित कर बदला समाज: गुलाबो ने बताया कि 1985 में जब वह अमेरिका में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन कर भारत लौटी, तब समाज के पंचों ने उन्हें कहा कि क्या आप समाज के बीच रहने को तैयार हैं. समाज में वापस आने के लिए पंचों के सामने उन्होंने शर्त रखी. उन्होंने कहा कि अगर गुलाबो समाज में चाहिए तो बेटियों के प्रति सोच और बर्ताव में तब्दीली करनी होगी. बेटियों की हत्या बंद करनी होगी. खैर, समाज में आज कई लोगों की 4-5 बेटियां हैं. अब बेटी होने पर समाज के लोग कहते हैं कि घर में गुलाबो आई है. इससे उन्हें बहुत खुशी होती है.

अजमेर. आज कालबेलिया संगीत व नृत्य राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage of Rajasthan) का अटूट हिस्सा बन चुका है. लेकिन बहुत कम ही लोग जानते होंगे इसकी शुरुआत पुष्कर से हुई थी. महज 6 वर्ष की उम्र में सपेरा नृत्य को जन्म देने वाली गुलाबो आज (Kalbelia Dancer Padmashree Gulabo) चार बेटियों की मां और दो पोतियों की दादी बन चुकी हैं.

इस नृत्य कौशल के बूते गुलाबो ने देश-दुनिया में अपना नाम बनाया और आज उन्हें दुनिया में कालबेलिया नृत्यांगना के रूप में लोग जानते हैं. वहीं, एक नृत्यांकना के इतर गुलाबो आज समाज सुधार के क्षेत्र में भी खासा सक्रिय हैं. ईटीवी भारत ने लोक नृत्यांगना पद्मश्री गुलाबो से (Folk Dancer Padmashree Gulabo) खास बातचीत की और उनके आगामी लक्ष्यों के बारे में जाना.

कालबेलिया की पहचान पद्मश्री गुलाबो

पुष्कर के धोरों पर नाचने वाली नन्हीं सी गुलाबो को पहली बार पुष्कर मेले में 6 साल की उम्र में अपनी कला देखने का मौका मिला था. इसके बाद गुलाबो ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. दुनिया के 167 देशों में गुलाबो अपनी नृत्य का जलवा बिखेर चुकी हैं. वहीं, उनके असाधारण प्रतिमा व नृत्य कौशल के लिए उन्हें कइयों अवार्ड से नवाजा गया. उन्हें पद्मश्री अवार्ड से भी (Ajmer Gulabo got recognition in Pushkar) सम्मानित किया जा चुका है.

इसे भी पढ़ें - पुष्कर मेला 2022: कालबेलिया नृत्यांगना पद्मश्री गुलाबो ने शानदार नृत्य से बांधा समा... देखें वीडियो

खैर, यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि गुलाबो ने अपनी विरासत खुद बनाई. उन्हें इसके लिए न तो कोई गुरु मिला और न ही उन्होंने किसी से तालीम ली. लेकिन खुद एक बेहतर शिक्षक बनी और उन्होंने अपनी बेटियों से पहले अपनी कई शिष्यों को कालबेलिया नृत्य सिखाया, जो विदेशों तक में परफार्म कर चुकी हैं. गुलाबो ने अपनी चार बेटियों के बाद अब अपनी पोतियों को नृत्य की विरासत से जोड़ा है.

वहीं, शनिवार को पुष्कर की शाम गुलाबो (Pushkar Mela 2022) के लिए बेहद खास था, क्योंकि मेले में पहली बार गुलाबो ने अपनी चार बेटियों राखी, पूनम, हेमलता और रूपा के साथ ही अपनी दोनों पोती माही और तिया के साथ मंच साझा किया. गुलाबो समेत उनकी तीन पीढ़ी को एक साथ एक मंच पर नृत्य करते देखने के लिए मेले में भारी भीड़ उमड़ी आई. इतना ही नहीं गुलाबो के साथ 20 कलाकारों की टोली भी जयपुर से पुष्कर आई थी. जिनके घूमर, फायर डांस और कालबेलिया नृत्य ने वहां मौजूद लोगों को मत्रमुग्ध कर दिया.

मंच पर अपनी परफॉर्मेंस देने से पहले पद्मश्री नृत्यांगना गुलाबो ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में उनके जीवन से जुड़ी कई अहम बातें बताई. गुलाबो ने बताया कि साल 1981 में पुष्कर मेले में उन्होंने पहली बार अपनी कला का प्रदर्शन किया था. अजमेर उनकी जन्मभूमि है, लेकिन पेट पालन के लिए वो अपने पिता के साथ पुष्कर चली आई थीं. महज 6 साल की उम्र में उन्हें मंच पर परफार्म करने का मौका मिला. उन्होंने कहा कि जब वो अपनी 6 साल की पोती को देखती हैं तो उन्हें उनका बचपन याद आता है. आज उनकी तीसरी पीढ़ी इस कला से जुड़ी है.

मां और मौसी का रहा बड़ा योगदान: गुलाबो ने बताया कि जन्म के एक घंटे बाद ही उन्हें समाज के लोगों ने जिंदा जमीन में दफन कर दिया था. कालबेलिया समाज में गरीबी के कारण लड़कियों को जन्म के बाद मार दिया जाता था. समाज के लोगों के पास बच्चियों को पालने, शिक्षित करने और उनकी शादी करने के लिए पैसे भी नहीं थे. ज्यादातर लोग भीख मांगकर किसी तरह से गुजर बसर करते थे. लिहाजा समाज में इस रूढ़िवादी परंपरा की जड़े बहुत मजबूत हो गई थी. सदियों से समाज में यही रिवाज बना हुआ था. उन्होंने बताया कि उन्हें भी जन्म के बाद जमीन में दफन कर दिया गया था. लेकिन तब उनके परिजनों ने हिम्मत कर उनकी जान बचाई. उन्होंने बताया कि उनका धनतेरस के दिन जन्म हुआ था. रिवायतन समाज के लोगों ने उन्हें जमीन में दफन कर दिया, लेकिन 5 घंटे तक जमीन में रहने के बाद मां और मौसी ने हिम्मत कर उन्हें बाहर निकाला.

सांपों से मिली प्रेरणा: नृत्यांगना गुलाबो ने बताया कि उन्हें नृत्य की प्रेरणा सांपों से मिली. जब वो 4 साल की थी तब उनके पिता उन्हें अपने साथ मेले में ले जाया करते थे, जहां वो बीन बजाकर सांपों को नचाते थे. सांप को रोज बीन की धूम पर नाचते देख आहिस्ते-आहिस्ते वो भी नृत्य के प्रति आकर्षित होने लगी. उन्होंने बताया कि उनके पिता व घर के अन्य सदस्यों को समाज से बहिष्कृत कर दिया गया था. ऐसे में उनके पिता उन्हें लेकर पुष्कर चले आए, जहां वो अपनी कला का प्रदर्शन कर किसी तरह से परिवार का भरण-पोषण करते थे.

विरासत सहेजने को खोलेंगी पुष्कर में स्कूल: गुलाबो कालबेलिया नृत्य को सपेरा नृत्य कहती हैं. उन्होंने कहा कि वो सांप की तरह नृत्य करती हैं, इसलिए वो इसे सपेरा डांस कहती हैं. वहीं, कालबेलिया नृत्य नामकरण पर उन्होंने कहा कि हम काल को बस में करते हैं. इसी लिए आगे चलकर इसे कालबेलिया नृत्य कहा जाने लगा. आगे उन्होंने बताया कि अब वो पुष्कर में अपनी विरासत सहेजने को स्कूल बना रही हैं. ताकि अधिक से अधिक बच्चियां इस नृत्य को सीख सके.

खुद को साबित कर बदला समाज: गुलाबो ने बताया कि 1985 में जब वह अमेरिका में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन कर भारत लौटी, तब समाज के पंचों ने उन्हें कहा कि क्या आप समाज के बीच रहने को तैयार हैं. समाज में वापस आने के लिए पंचों के सामने उन्होंने शर्त रखी. उन्होंने कहा कि अगर गुलाबो समाज में चाहिए तो बेटियों के प्रति सोच और बर्ताव में तब्दीली करनी होगी. बेटियों की हत्या बंद करनी होगी. खैर, समाज में आज कई लोगों की 4-5 बेटियां हैं. अब बेटी होने पर समाज के लोग कहते हैं कि घर में गुलाबो आई है. इससे उन्हें बहुत खुशी होती है.

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