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बंगाली परंपराओं की तर्ज पर अजमेर में बन रही दुर्गा प्रतिमाएं

हमारे देश की सबसे बड़ी खूबसूरती है 'विविधता में एकता'. हजारों मील की दूरी पर पश्चिम बंगाल में पारंपरिक रूप से दुर्गा प्रतिमा का निर्माण कर उसकी स्थापना की जाती है. अब यह परंपरा अब बंगाल तक सीमित नहीं रही है, बल्कि अजमेर में भी बंगाली परंपरा के अनुसार दुर्गा मां की प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है.

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Published : Sep 28, 2019, 2:34 PM IST

अजमेर. शहर में बंगाली समाज से जुड़े लोगों की काफी संख्या है. यहां के कचहरी रोड स्थित बंगाली धर्मशाला में नवरात्रि पर्व की तैयारियां चल रही हैं. इसके लिए महिषासुर मर्दिनी की भव्य प्रतिमा का निर्माण किया जा रहा है. 92 साल से बंगाल के कारीगर यहां आकर दुर्गा प्रतिमा का निर्माण कर रहे है.

बंगाली परंपराओं के अनुसार बन रही दुर्गा की प्रतिमाएं

कारीगर तरुण कुंडू की तीसरी पीढ़ी है, जो यहां नवरात्र के पावन अवसर पर दुर्गा माता की प्रतिमा को बनाते है. इस परिवार की बनाई हुई मूर्तियां यहां के लोगों को भी काफी आकर्षित करती है. यही वजह है कि अब कुंडू का परिवार वर्षों से बंगाली धर्मशाला में आकर प्रतिमा की मांग के अनुसार प्रतिमा का निर्माण कर रहे हैं.

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बंगाली धर्मशाला के प्रबंधक दिनेश गोस्वामी बताते हैं कि बंगाली कारीगर समाज के लिए महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा तो बनाते ही हैं. साथ ही साथ सिंह वाहिनी दुर्गा, गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाएं भी बनाते है. गोस्वामी ने बताया कि इन मूर्तियों की सबसे खास बात यह है कि ये सब प्रतिमाएं मिट्टी और घास से बनी हुई है. जो पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती है.

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मां दुर्गा की प्रतिमा को आकार देता बंगाली कारीगर

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गौरतलब है कि राजस्थान में माता के सिंह वाहिनी दुर्गा रूप को पूजा जाता है. लिहाजा बंगाली कारीगरों ने माता का उसी स्वरूप की प्रतिमा का निर्माण करते हैं. खास बात यह है कि इन प्रतिमाओं में बंगाली परंपरा के अनुसार माता का श्रंगार किया जाता है, जो स्थानीय लोगों को भी खूब पसंद आता है.

अजमेर. शहर में बंगाली समाज से जुड़े लोगों की काफी संख्या है. यहां के कचहरी रोड स्थित बंगाली धर्मशाला में नवरात्रि पर्व की तैयारियां चल रही हैं. इसके लिए महिषासुर मर्दिनी की भव्य प्रतिमा का निर्माण किया जा रहा है. 92 साल से बंगाल के कारीगर यहां आकर दुर्गा प्रतिमा का निर्माण कर रहे है.

बंगाली परंपराओं के अनुसार बन रही दुर्गा की प्रतिमाएं

कारीगर तरुण कुंडू की तीसरी पीढ़ी है, जो यहां नवरात्र के पावन अवसर पर दुर्गा माता की प्रतिमा को बनाते है. इस परिवार की बनाई हुई मूर्तियां यहां के लोगों को भी काफी आकर्षित करती है. यही वजह है कि अब कुंडू का परिवार वर्षों से बंगाली धर्मशाला में आकर प्रतिमा की मांग के अनुसार प्रतिमा का निर्माण कर रहे हैं.

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बंगाली धर्मशाला के प्रबंधक दिनेश गोस्वामी बताते हैं कि बंगाली कारीगर समाज के लिए महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा तो बनाते ही हैं. साथ ही साथ सिंह वाहिनी दुर्गा, गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाएं भी बनाते है. गोस्वामी ने बताया कि इन मूर्तियों की सबसे खास बात यह है कि ये सब प्रतिमाएं मिट्टी और घास से बनी हुई है. जो पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती है.

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मां दुर्गा की प्रतिमा को आकार देता बंगाली कारीगर

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गौरतलब है कि राजस्थान में माता के सिंह वाहिनी दुर्गा रूप को पूजा जाता है. लिहाजा बंगाली कारीगरों ने माता का उसी स्वरूप की प्रतिमा का निर्माण करते हैं. खास बात यह है कि इन प्रतिमाओं में बंगाली परंपरा के अनुसार माता का श्रंगार किया जाता है, जो स्थानीय लोगों को भी खूब पसंद आता है.

Intro:अजमेर। हमारे देश की सबसे बड़ी खूबसूरत है यह है कि विविधता में भी एकता है हजारों मील की दूरी पर पश्चिम बंगाल में पारंपरिक रूप से दुर्गा प्रतिमा का निर्माण कर उसकी स्थापना की जाती है। लेकिन यह परंपरा अब बंगाल तक सीमित नहीं रही है बल्कि अजमेर में भी बंगाली परंपरा के अनुसार बनी दुर्गा मां की प्रतिमा का ना केवल निर्माण किया जा रहा है बल्कि वर्षों से लोग इन मूर्तियों की स्थापना कर माता की पूजा अर्चना और आराधना करते आए हैं।

अजमेर में बंगाली समाज से जुड़े लोगों की काफी संख्या है। कचहरी रोड स्थित बंगाली धर्मशाला में नवरात्रि पर्व की तैयारियां की जा रही है। इसके लिए महिषासुर मर्दिनी की भव्य प्रतिमा का निर्माण किया जा रहा है। विशेषकर बंगाल से हर वर्ष यहां कारीगर आकर मूर्ति का निर्माण करते हैं। 92 वर्षो से बंगाल के कारीगर यहां आकर दुर्गा प्रतिमा का निर्माण कर रहे है। कारीगर तरुण कुंडू की तीसरी पीढ़ी है जो यहां नवरात्र के पावन अवसर पर दुर्गा माता की प्रतिमा को बना रही है। खास बात यह है कि कुंडू परिवार की बनाई हुई मूर्तियां अजमेर के लोगों को भी काफी आकर्षित करती है। यही वजह है कि अब कुंडू का परिवार वर्षों से बंगाली धर्मशाला में आकर प्रतिमा की मांग के अनुसार बढ़ी संख्या में प्रतिमा का निर्माण करता है। बंगाली धर्मशाला के प्रबंधक दिनेश गोस्वामी बताते हैं कि बंगाली कारीगर बंगाली समाज के लिए महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा तो बनाते ही हैं साथ ही सिंह वाहिनी दुर्गा माता, गणेश लक्ष्मी और सरस्वती माता की प्रतिमाएं भी बनाते है। गोस्वामी ने बताया कि इन मूर्तियों की सबसे खास बात यह है कि यह सब प्रतिमाएं मिट्टी और घास से बनी हुई है जो कि पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती है।

बंगाली कारीगर पूरी तल्लीनता से मां दुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं बता दें कि बंगाली धर्मशाला में बंगाली समाज की ओर से नवरात्र महोत्सव का बंगाली परंपरा के अनुसार शानदार आयोजन किया जाता है। जिसमें महिषासुर मर्दिनी कि आराधना की जाती है। वही अजमेर में भी सिंहवाहिनी दुर्गा की प्रतिमाओ की कई जगह स्थापना की जाती है। 9 दिन तक माता की आराधना होती है। राजस्थान में माता के सिंह वाहिनी दुर्गा के रूप में पूजा जाता है। लिहाजा बंगाली कारीगरों ने माता का उसी स्वरूप की प्रतिमा का निर्माण करते हैं। खास बात यह है कि इन प्रतिमाओं में बंगाली परंपरा के अनुसार माता का श्रंगार किया जाता है जो स्थानीय लोगों को भी खूब पसंद आता है....



Body:प्रियंक शर्मा
अजमेर


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