ETV Bharat / state

Health Tips : बवासीर और भगंदर की पीड़ा से बचाव के लिए करें ये उपाय, मिलेगी जल्द राहत - जेएलएन अस्पताल

आज हम आपको बवासीर और भगंदर की पीड़ा से बचाव के उपाय के साथ ही समुचित उपचार के बारे में (Remedies for piles and fistula) बताएंगे. यहां जानिए वरिष्ठ डॉ. बीएन मिश्रा से हेल्थ टिप्स

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By

Published : Mar 27, 2023, 7:34 PM IST

आयुर्वेद विभाग के वरिष्ठ डॉ. बीएन मिश्रा के हेल्थ टिप्स

अजमेर. अनियमित जीवन शैली से शरीर में कई रोग हो सकते हैं. इनमें एक पीड़ादायक रोग अर्श बवासीर और भगंदर भी है. इस रोग का संबंध मुख्यतः कब्ज से है. ज्यादा लंबे समय तक कब्ज रहने से इसके होने की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन समय रहते अगर नियमित रूप से इसका इलाज कराया जाए तो इससे मुक्ति मिल सकती है और आयुर्वेद में इसका इलाज संभव है. चलिए संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल के आयुर्वेद चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएल मिश्रा से इसके लक्षण व बचाव के बारे में जानते हैं.

अर्श बवासीर और भगंदर रोग होने के बाद व्यक्ति को काफी पीड़ा का सामना करना पड़ता है. कई लोग तो इस रोग के बारे में किसी को बताते तक नहीं है. इस कारण उनकी स्थिति और भी विकट होने लगती है. जिसके बाद तकलीफ और दर्द बढ़ने लगता है. समय पर इलाज नहीं से अंतिम स्थिति में सर्जरी ही एक मात्र उपाय बचता है, लेकिन वो भी काफी पीड़ादायक होता है. आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि 15 साल की आयु के बाद किसी भी उम्र में अर्श, बवासीर और भगंदर हो सकता है. उन्होंने बताया कि मल मार्ग (गुदा) में वायु दोष बढ़ने, खुसकी बढ़ने और कब्ज अधिक रहने से फुंसीनुमा एक गांठ बन जाती है, जिसे अर्श कहते हैं.

ऐसे में लंबे समय तक कब्ज बना रहता है. इस कारण अर्श तेजी से फैलता है. इसमें रोगी को मल त्याग के समय काफी दर्द और जलन होती है. लंबे समय तक यह अवस्था रहती है तो अर्श के स्थान पर सूजन अधिक बढ़ने लगती है. इस कारण से मल त्यागने से पहले या बाद में खून आने लगता है. यह स्थिति आने पर वही अर्श बवासीर में तब्दील हो जाता है. उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में अर्श बवासीर और भगंदर का इलाज संभव है, लेकिन इसके लिए रोगी को नियमित रूप से परहेज और दवा के सेवन के साथ-साथ अपनी अनियमित जीवन शैली में भी सुधार करना आवश्यक है.

इसे भी पढे़ं - Health Tips: मौसमी बीमारियों से रहे सावधान, करें ये प्रावधान, लापरवाही पड़ सकती है महंगी

रोग के कारण : आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि जिन लोगों को कब्ज की समस्या अधिक रहती है, उन्हें अर्श होने की संभावना भी अधिक रहती है. इसके अलावा अनियमित रूप से भोजन करने की आदत, मसालेदार, डिब्बाबंद भोजन करना, भोजन में मैदा और बेसन का ज्यादा उपयोग, फाइबर रहित भोजन करना, पानी का कम सेवन, रात्रि जागरण, ज्यादा सीटिंग करने और तनाव के कारण अर्श बवासीर और भगंदर होने की अधिक संभावना रहती है.

रोग के लक्षण : डॉ. मिश्रा बताते हैं कि मल मार्ग में हमेशा दर्द और जलन रहना, मल त्याग के समय दर्द और तीव्र जलन होना, मल त्याग करने से पहले और बाद में खून आना इसके लक्षण हैं. उन्होंने कहा कि बवासीर यदि लंबे समय तक रहता है तो दर्द और जलन बढ़ जाती है. साथ ही संचित रक्त और मवाद अतिरिक्त मार्ग बना लेते हैं. इस कारण दूसरे स्थान पर अर्श की तरह ही फुंसी हो जाती है, जो आपस में मिल जाती है, जिसे भगंदर कहते हैं. भगंदर काफी पीड़ादायक अवस्था होती है. इससे रोगी में रक्त की कमी भी हो जाती है. इस कारण याददाश्त कम होने लगती है. शरीर में कमजोरी आ जाती है. डॉ. मिश्रा बताते हैं कि लंबे समय तक भगंदर रहने पर इसका अंतिम उपचार सर्जरी ही होता है, जो कि काफी पीड़ादायक होता है.

रोग से बचाव : डॉ. मिश्रा बताते हैं कि कब्ज नहीं रहना ही रोग का उपचार है. उन्होंने बताया कि फाइबर युक्त मोटे अनाज का भोजन में उपयोग करना, हरी सब्जियां और गद्देदार सब्जियों और रसदार फल के सेवन करने से इस समस्या से काफी हद तक राहत मिलती है. इनके अलावा पर्याप्त पानी पीने, दोपहर के भोजन में दो ग्लास छाछ का उपयोग करने और रात्रि भोजन के बाद सोने से आधे घंटे पहले एक ग्लास दूध पीने से भी कब्ज नहीं रहता है. उन्होंने बताया कि शुरुआत में ही रोगी को चिकित्सक से संपर्क कर इलाज लेना चाहिए. वहीं, अपनी जीवन शैली में सुधार कर पौष्टिक भोजन और हल्का व्यायाम करना चाहिए.

आयुर्वेद विभाग के वरिष्ठ डॉ. बीएन मिश्रा के हेल्थ टिप्स

अजमेर. अनियमित जीवन शैली से शरीर में कई रोग हो सकते हैं. इनमें एक पीड़ादायक रोग अर्श बवासीर और भगंदर भी है. इस रोग का संबंध मुख्यतः कब्ज से है. ज्यादा लंबे समय तक कब्ज रहने से इसके होने की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन समय रहते अगर नियमित रूप से इसका इलाज कराया जाए तो इससे मुक्ति मिल सकती है और आयुर्वेद में इसका इलाज संभव है. चलिए संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल के आयुर्वेद चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएल मिश्रा से इसके लक्षण व बचाव के बारे में जानते हैं.

अर्श बवासीर और भगंदर रोग होने के बाद व्यक्ति को काफी पीड़ा का सामना करना पड़ता है. कई लोग तो इस रोग के बारे में किसी को बताते तक नहीं है. इस कारण उनकी स्थिति और भी विकट होने लगती है. जिसके बाद तकलीफ और दर्द बढ़ने लगता है. समय पर इलाज नहीं से अंतिम स्थिति में सर्जरी ही एक मात्र उपाय बचता है, लेकिन वो भी काफी पीड़ादायक होता है. आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि 15 साल की आयु के बाद किसी भी उम्र में अर्श, बवासीर और भगंदर हो सकता है. उन्होंने बताया कि मल मार्ग (गुदा) में वायु दोष बढ़ने, खुसकी बढ़ने और कब्ज अधिक रहने से फुंसीनुमा एक गांठ बन जाती है, जिसे अर्श कहते हैं.

ऐसे में लंबे समय तक कब्ज बना रहता है. इस कारण अर्श तेजी से फैलता है. इसमें रोगी को मल त्याग के समय काफी दर्द और जलन होती है. लंबे समय तक यह अवस्था रहती है तो अर्श के स्थान पर सूजन अधिक बढ़ने लगती है. इस कारण से मल त्यागने से पहले या बाद में खून आने लगता है. यह स्थिति आने पर वही अर्श बवासीर में तब्दील हो जाता है. उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में अर्श बवासीर और भगंदर का इलाज संभव है, लेकिन इसके लिए रोगी को नियमित रूप से परहेज और दवा के सेवन के साथ-साथ अपनी अनियमित जीवन शैली में भी सुधार करना आवश्यक है.

इसे भी पढे़ं - Health Tips: मौसमी बीमारियों से रहे सावधान, करें ये प्रावधान, लापरवाही पड़ सकती है महंगी

रोग के कारण : आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि जिन लोगों को कब्ज की समस्या अधिक रहती है, उन्हें अर्श होने की संभावना भी अधिक रहती है. इसके अलावा अनियमित रूप से भोजन करने की आदत, मसालेदार, डिब्बाबंद भोजन करना, भोजन में मैदा और बेसन का ज्यादा उपयोग, फाइबर रहित भोजन करना, पानी का कम सेवन, रात्रि जागरण, ज्यादा सीटिंग करने और तनाव के कारण अर्श बवासीर और भगंदर होने की अधिक संभावना रहती है.

रोग के लक्षण : डॉ. मिश्रा बताते हैं कि मल मार्ग में हमेशा दर्द और जलन रहना, मल त्याग के समय दर्द और तीव्र जलन होना, मल त्याग करने से पहले और बाद में खून आना इसके लक्षण हैं. उन्होंने कहा कि बवासीर यदि लंबे समय तक रहता है तो दर्द और जलन बढ़ जाती है. साथ ही संचित रक्त और मवाद अतिरिक्त मार्ग बना लेते हैं. इस कारण दूसरे स्थान पर अर्श की तरह ही फुंसी हो जाती है, जो आपस में मिल जाती है, जिसे भगंदर कहते हैं. भगंदर काफी पीड़ादायक अवस्था होती है. इससे रोगी में रक्त की कमी भी हो जाती है. इस कारण याददाश्त कम होने लगती है. शरीर में कमजोरी आ जाती है. डॉ. मिश्रा बताते हैं कि लंबे समय तक भगंदर रहने पर इसका अंतिम उपचार सर्जरी ही होता है, जो कि काफी पीड़ादायक होता है.

रोग से बचाव : डॉ. मिश्रा बताते हैं कि कब्ज नहीं रहना ही रोग का उपचार है. उन्होंने बताया कि फाइबर युक्त मोटे अनाज का भोजन में उपयोग करना, हरी सब्जियां और गद्देदार सब्जियों और रसदार फल के सेवन करने से इस समस्या से काफी हद तक राहत मिलती है. इनके अलावा पर्याप्त पानी पीने, दोपहर के भोजन में दो ग्लास छाछ का उपयोग करने और रात्रि भोजन के बाद सोने से आधे घंटे पहले एक ग्लास दूध पीने से भी कब्ज नहीं रहता है. उन्होंने बताया कि शुरुआत में ही रोगी को चिकित्सक से संपर्क कर इलाज लेना चाहिए. वहीं, अपनी जीवन शैली में सुधार कर पौष्टिक भोजन और हल्का व्यायाम करना चाहिए.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.