अजमेर. अनियमित महामारी और निसंतानता है, तो यह पीसीओडी (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज) भी हो सकता है. यह 12 से 45 वर्ष तक की महिलाओं में होने वाला रोग है. संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल में आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में चिकित्सक डॉ प्रियंका शर्मा से जानते हैं पीसीओडी के कारण, लक्षण और बचाव के लिए हेल्थ टिप्स.
दिनचर्या में तनाव, अनियमित खानपान, बिगड़ी लाइफस्टाइल, फास्ट फूड, मसालेदार भोजन से हार्मांस असंतुलित होने की समस्या आम हो गई है. डॉ प्रियंका शर्मा बताती हैं कि हार्मांस असंतुलित होने के कारण महिलाओं में पुरुष हार्मोन का लेवल बढ़ने लगा है. पीसीओडी (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज) के मामले ज्यादातर महिलाओं में देखे जा रहे हैं. इसका प्रमुख कारण स्ट्रेसफुल लाइफ स्टाइल भी है. इससे हार्मांस संतुलित होते हैं जिस कारण महिलाओं में महामारी अनियमित होने लगती है.
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उन्होंने बताया कि पीसीओडी में महिलाओं के अंडाशय में छोटी-छोटी गांठें हो जाती हैं. इन छोटी गांठों की वजह से अंडाशय से अंडे बाहर नहीं निकल पाते हैं. इस कारण फर्टिलिटी की प्रक्रिया पूर्ण नहीं होने पर महिलाओं को निसंतानता की समस्या होने लगती है. इसके लिए सबसे जरूरी है कि महिलाओं की महावारी नियमित रूप से हो. ऐसा होने पर हार्मांस भी बैलेंस रहते हैं. जिसके कारण महिलाओं में अन्य समस्याएं भी कम होने लगती हैं.
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पीसीओडी के कारणः डॉ शर्मा का कहना है कि बिगड़ी हुई लाइफस्टाइल और तनाव के कारण पीसीओडी की समस्या महिलाओं में ज्यादातर देखने को मिल रही है. 12 वर्ष तक की बच्चियों को भी पीसीओडी हो रही है. उन्होंने बताया कि घर परिवार में कलह पूर्ण माहौल, पढ़ाई, नौकरी, शादी या अन्य किसी भी कारण से स्ट्रेस होना पीसीओडी का कारण बन सकता है. महामारी जाने के समय पीसीओडी ज्यादा मुश्किलें पैदा करती है. ऐसे वक्त में महिलाओं को अंदाजा ही नहीं लग पाता है कि अनियमित महावारी उन्हें किस कारण हो रही है. ऐसे समय में गर्भाशय में भी छोटी-छोटी गांठे होने लगती हैं.
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पीसीओडी के लक्षणः डॉ शर्मा बताती हैं कि आयुर्वेद पद्धति में पीसीओडी का कारगर इलाज है. बशर्ते की रोगी नियमित रूप से दवा का सेवन करे और अपने आप को तनाव मुक्त रखे. पीसीओडी के लक्षणों में से प्रमुख है महिलाओ में महामारी नियमित नहीं रहना. हार्मोंस असंतुलित होने के कारण शरीर में मोटापा आने लगता है. रोगी के शरीर में खून की कमी हो जाती है. चेहरे पर अनचाहे बाल आने लगते हैं. ऐसी स्थिति लगातार बनने पर रोगी और भी ज्यादा डिप्रेशन का शिकार हो जाती है. इसके अलावा रोगी का पेट भी भारी रहता है. उन्होंने बताया कि पांच से छह महीने में आयुर्वेद पद्धति से महिलाओं में अनियमित महावारी की समस्या दूर होने लगती है. इससे हार्मोंस संतुलित होते हैं और अन्य समस्याएं धीरे-धीरे खत्म होने लगती हैं.