अजमेर. दुनिया में अस्थमा के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. यह फेफड़ों की संक्रामक बीमारी है जो कई कारणों से हो सकती है. चिंता की बात यह है कि बदलते खान पान और वातावरण के कारण कई बच्चे अस्थमा के साथ ही पैदा हो रहे हैं. वहीं छोटे बच्चों में भी अस्थमा की समस्या देखी जा रही है. 2 मई को वर्ल्ड अस्थमा डे मनाया जा रहा है. यह इसलिए मनाया जाता है ताकि लोग अस्थमा के प्रति जागरूक होकर इलाज और बचाव पर ध्यान दें. जानते हैं कमला नेहरू अस्पताल में वरिष्ठ आचार्य डॉ. रमाकांत दीक्षित से अस्थमा रोग के कारण, लक्षण और बचाव.
देश में बढ़ रही है अस्थमा रोगियों की संख्याः भारत में अस्थमा रोग के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. हालांकि नेशनल वाइड सर्वे अस्थमा के रोगियों का नहीं हुआ है, लेकिन 33 के करीब हेल्थ एजुकेशन संस्थाओं की स्टडीज के अनुसार 7.9 प्रतिशत लोगों को अस्थमा है. इनमें 0 से 15 वर्ष तक के बच्चों में 4 प्रतिशत, 15 से 18 वर्ष ट्रक के लड़कों में 8 प्रतिशत और लड़कियों में छह प्रतिशत अस्थमा के रोगी है. अजमेर में राजकीय कमला नेहरू टीवी अस्पताल में सहायक आचार्य डॉ रमाकांत दीक्षित बताते हैं कि अजमेर मेडिकल कॉलेज में 2008 में की गई. स्टडीज में शहर और गांव के 4 हजार 53 बच्चों का सर्वे किया गया था इसमें शहरी क्षेत्र के 5 से 10 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों में 5 प्रतिशत और देहात क्षेत्र में 4 प्रतिशत बच्चों में अस्थमा रोग पाया गया.
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किसी भी उम्र हो सकता है अस्थमाः 15 साल पहले जब आंकड़ों की यह स्थिति थी, तो संभवत है आंकड़ों में इजाफा निश्चित रूप से हुआ है. डॉ. दीक्षित बताते हैं कि अस्थमा किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है. यह पूर्णतः अनुवांशिक नहीं है, लेकिन माता-पिता को एलर्जी की शिकायत है तो बच्चों को भी एलर्जी और उसके बाद अस्थमा होने की संभावना रहती है. हालांकि ऐसा कम देखने को मिलता है. उन्होंने बताया कि 2 मई को विश्व अस्थमा दिवस पर अस्पताल में रोगियों और स्टॉफ कर्मियों को अस्थमा के बारे में बताया जाता है. साथ ही इनहेलर के उपयोग के बारे में भी जानकारी देकर उन्हें जागरूक किया जाता है.
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अस्थमा के कारण: वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. रमाकांत दीक्षित बताते हैं कि अस्थमा असंक्रामक रोग है. यह रोगी के फेफड़ों की नालियों में सूजन और रुकावट की वजह से होता है. इसमें गलियां सिकुड़ जाती है. इससे रोगी को सांस लेने में दिक्कत आती है. अस्थमा उन लोगों में पाया जाता है, जिन्हें किसी न किसी कारण से एलर्जी होती है. मसलन फूलों के पराग के कण, धुआं, मिट्टी, काई और फंगस, पक्षियों एवं जानवरों के बालों के कण, प्रदूषण आदि के कारण भी अस्थमा हो सकता है. इसके अलावा माता-पिता के धूम्रपान करने पर गर्भस्थ शिशु में भी अस्थमा रोग हो सकता है. ठंडी हवाओं से भी अस्थमा होने की संभावना रहती है. उन्होंने बताया कि जो माताएं अपने नवजात बच्चों को स्तनपान नहीं करवाती हैं और उन बच्चों को बोतल से दूध पिलाया जाता है. ऐसे बच्चों को भी अस्थमा होने की संभावना ज्यादा रहती है.
अस्थमा के लक्षण: डॉ. दीक्षित बताते हैं कि श्वास लेने में परेशानी, सीने में जकड़न, खांसी होना, सूखी खांसी यह रात को ज्यादा होती है. श्वास लेने पर सीटी की आवाज आना, आंखों में खुजली होना, आंखें लाल होना, नाक से पानी का टपकना, लगातार छींके आना, चमड़ी में खुजली होना, शरीर पर दाफड़ उभरना भी अस्थमा रोग के लक्षण हैं.
अस्थमा के लिए परामर्श और जांच: लक्षण प्रतीत होने पर व्यक्ति को तुरंत चिकित्सक से परामर्श और चिकित्सक की सलाह पर अस्थमा के लिए आवश्यक जांच करवाना चाहिए. अस्थमा के लिए स्पायरोमेट्री, जांच आवश्यक है. इसके साथ ही अन्य जांचे भी होती है. इनमें Fino जांच एवं BPT टेस्ट से सांस नली की सूजन और रुकावट का पता चलता है. एलर्जी के लिए एसपीटी जांच होती है. इस जांच से एलर्जी के कारक के बारे में पता चलता है. उन्होंने बताया कि कई बार ब्लड के सैंपल से भी एलर्जी जांच होती है, लेकिन यह ज्यादा प्रमाणिक नहीं होती है.
अस्थमा रोगी रखें इन बातों का ध्यान: वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. रमाकांत दीक्षित बताते हैं कि अस्थमा रोगियों को जिस कारणों से एलर्जी है, उससे बचाव रखना चाहिए एवं नियमित रूप से नियंत्रण करने की दवाइयां लेनी चाहिए. इसके अलावा एम्यूनो थेरेपी भी उपलब्ध है. जिस कारण से रोगी को एलर्जी है. उसके खिलाफ इस थेरेपी को काम में लिया जाता है. अस्थमा के रोगी को नियमित रूप से उपचार लेना चाहिए. साथ ही मौसम के बदलाव होने पर अथवा समय-समय पर चिकित्सक से परामर्श लेते रहना चाहिए. डॉ दीक्षित बताते हैं कि अस्थमा के लिए कई तरह के इनहेलर होते हैं. जिनका उपयोग चिकित्सक के परामर्श से रोगी को करना होता है. इनहेलर को लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतियां होती है. ऐसे में चिकित्सक उनकी भ्रांतियों को दूर करते हैं.