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Health Tips : बाल मनोरोग के प्रकार व कारण, जानिए क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं काउंसलर मनीषा गौड़ से

व्यक्ति का शारीरिक रूप से स्वस्थ होना ही काफी नहीं है, बल्कि मानसिक रूप से भी स्ट्रांग होना जरूरी है. मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में जीवन में आने वाली समस्याओं का मुकाबला करने, सोचने और समाधान निकालने की क्षमता होनी चाहिए. अजमेर की साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ से जानते हैं बाल मनोरोग से जुड़े हेल्थ टिप्स.

डॉ मनीषा गौड़
डॉ मनीषा गौड़
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Published : Mar 15, 2023, 7:44 AM IST

Updated : Mar 16, 2023, 9:19 AM IST

डॉ. मनीषा गौड़

अजमेर. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दो अलग-अलग बातें हो सकती हैं, लेकिन यह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. इनमें से किसी में भी समस्या आने पर दूसरा भी प्रभावित होता है. जिस तरह से शरीर में बीमारी हो सकती है उसी तरह से दिमाग भी रोगी हो सकता है. मनोरोग होने के कई कारण हो सकते हैं. वहीं, मनोरोग किसी भी उम्र में हो सकता है. बच्चों में भी मनोरोग की काफी समस्याएं देखने को मिलती हैं. अजमेर में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि बच्चों में भी मानसिक परेशानियां होती हैं. मानसिक या व्यवहारिक बदलाव अथवा जन्मजात समस्या भी होती हैं. उन्हें बाल मनोरोग कहते हैं. इनमें 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे और 12 वर्षों से 16 वर्ष तक के किशोर शामिल हैं.

यह है बाल मनोरोग के कारण : बाल मनोरोग के कई कारण हो सकते हैं. सामान्यतः बच्चों में अनुवांशिक कारण होता है. माता पिता में से किसी के भी मनोरोग होने की स्थिति में उनसे होने वाली संतान में भी मानसिक बीमारी हो सकती है. डॉ. गौड़ बताती हैं कि बच्चों की हरकत पर नजर रखनी चाहिए. खास कर उनके खेलने के तरीके में परिवर्तन, व्यवहार में बदलाव आने पर तुरंत मनोरोग चिकित्सक से संपर्क करें.

बाल मनोरोग का सामाजिक भी कारण : उन्होंने बताया कि बच्चों में मनोरोग का सोशल कारण भी होता है. घर और बाहर के नकारात्मक माहौल से बच्चों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. गृह क्लेश और पारिवारिक झगड़ों की वजह से बच्चों के मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है. उन्होंने बताया कि परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति का भी बच्चों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. जब एक बच्चा दूसरे के पास अच्छी वस्तु देखता है और उसे पाने के लिए जिद्द करता है तब परिजन उसे डांट या मारकर चुप कराते हैं.

पढ़ें : Health Tips: टीबी नहीं लाइलाज मगर इन बातों का रखें ध्यान

बाल मन परिस्थितियों को नहीं समझ पाता है. इस कारण भी बाल मनोरोग उनमें पैदा होने लगते हैं. इस कारण वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं. डॉ. गौड़ बताती है कि बच्चों को सकारात्मक माहौल मिलना चाहिए. माता-पिता अपने बच्चों को समय दे व उनसे नियमित बातचीत करें, साथ ही बच्चों की बातों को भी सुनें. बच्चों को हर बात पर टोके नहीं. किशोर अवस्था में यदि बच्चे का व्यवहार बदलता है तो उसे समझाने की कोशिश करें. बच्चों को अपनापन महसूस कराएं, ताकि वह अपनी समस्या के बारे में आपसे खुलकर बात कर सके. बातचीत में लगे कि बच्चे का व्यवहार असामान्य है तो मनोरोग चिकित्सक से अवश्य ही परामर्श लें.

नशा भी कारण : डॉ. गौड़ ने बताया कि छोटे बच्चों में नशा भी मनोरोग का एक बड़ा कारण होता है. क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को सुलाने के लिए अफीम दी जाती है. इस कारण बच्चों में नशे की लत लग जाती है और जब नशा नही मिलता है तो ऐसे बच्चे मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं. घर परिवार में माता-पिता या अन्य परिजनों को नशा करते देख बच्चा भी बड़ों की तरह नशा करने लगता है. ऐसे में बाल मनोरोगी बच्चे ज्यादातर गरीब तबके से होते हैं. उन्होंने बताया कि बच्चों के सामने नशा करने या उन्हें नशा कराने से उनके मस्तिष्क पर बूरा प्रभाव पड़ता है जो मनोरोग का कारण बनता है.

मोबाइल से भी बढ़ रहे हैं बाल मनोरोग के केस : क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती है कि कोविड-19 के समय से बच्चों में मोबाइल का प्रचलन ज्यादा बढ़ा है. माता-पिता छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में मोबाइल देने लगे हैं. जबकि 6 वर्ष तक की आयु के बच्चों को मोबाइल नहीं देना चाहिए. लेकिन बच्चा कुछ नहीं खा रहा है और रो रहा है तो बच्चे के हाथ में मोबाइल दे देते हैं. बच्चों में मोबाइल एडिक्शन के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं. इससे बच्चों में तनाव, एकाग्रता की कमी, क्रोध बढ़ने, सोचने समझने की क्षमता कम होने, धैर्य की कमी, आंखें कमजोर होने के अलावा भी कई शारीरिक और मानसिक समस्याएं हो रही हैं.

डॉ. मनीषा ने बताया कि मोबाइल एडिक्शन के शिकार बच्चों को जब मोबाइल नहीं मिलता है तो वह बेचैन हो जाते हैं. उनका स्वभाव उग्र हो जाता है लोगों से मिलना जुलना बंद कर देते हैं. खुद को सबसे अलग थलग कर लेते हैं. ऐसे बच्चे सामाजिक नहीं होते हैं उनका आत्मविश्वास कमजोर पड़ने लगता है. उन्होंने बताया कि कई बच्चे मोबाइल पर पोर्नोग्राफी भी देखते हैं. इससे उनके मानसिक और शारीरिक अवस्था पर बूरा प्रभाव पड़ता है. डॉ. गौड़ बताती हैं कि बच्चों को आवश्यकता पड़ने पर ही मोबाइल देना चाहिए. स्क्रीन पर बच्चों को 1 घंटे से ज्यादा समय न बिताने दें. मोबाइल यूज कर रहे बच्चों पर माता-पिता को अवश्य ही निगरानी रखनी चाहिए.

बाल मनोरोग के कई प्रकार : डॉ. गौड़ बताती है कि बाल रोग कई प्रकार के होते हैं. मसलन मंदबुद्धि, मानसिक टेंशन डिफिशिएंसी हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर, ओरिजिन स्पेक्ट्रम, चाइल्डहुड डिप्रेशन, जनरल एंग्जायटी, चाइल्डहुड सिजोफ्रेनिया आदि रोग शामिल हैं. मनोरोग के प्रकार के बारे में पड़ताल के उपरांत ही बच्चों को उनके रोग के अनुसार उपचार दिया जाता है.

डॉ. मनीषा गौड़

अजमेर. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दो अलग-अलग बातें हो सकती हैं, लेकिन यह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. इनमें से किसी में भी समस्या आने पर दूसरा भी प्रभावित होता है. जिस तरह से शरीर में बीमारी हो सकती है उसी तरह से दिमाग भी रोगी हो सकता है. मनोरोग होने के कई कारण हो सकते हैं. वहीं, मनोरोग किसी भी उम्र में हो सकता है. बच्चों में भी मनोरोग की काफी समस्याएं देखने को मिलती हैं. अजमेर में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि बच्चों में भी मानसिक परेशानियां होती हैं. मानसिक या व्यवहारिक बदलाव अथवा जन्मजात समस्या भी होती हैं. उन्हें बाल मनोरोग कहते हैं. इनमें 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे और 12 वर्षों से 16 वर्ष तक के किशोर शामिल हैं.

यह है बाल मनोरोग के कारण : बाल मनोरोग के कई कारण हो सकते हैं. सामान्यतः बच्चों में अनुवांशिक कारण होता है. माता पिता में से किसी के भी मनोरोग होने की स्थिति में उनसे होने वाली संतान में भी मानसिक बीमारी हो सकती है. डॉ. गौड़ बताती हैं कि बच्चों की हरकत पर नजर रखनी चाहिए. खास कर उनके खेलने के तरीके में परिवर्तन, व्यवहार में बदलाव आने पर तुरंत मनोरोग चिकित्सक से संपर्क करें.

बाल मनोरोग का सामाजिक भी कारण : उन्होंने बताया कि बच्चों में मनोरोग का सोशल कारण भी होता है. घर और बाहर के नकारात्मक माहौल से बच्चों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. गृह क्लेश और पारिवारिक झगड़ों की वजह से बच्चों के मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है. उन्होंने बताया कि परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति का भी बच्चों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. जब एक बच्चा दूसरे के पास अच्छी वस्तु देखता है और उसे पाने के लिए जिद्द करता है तब परिजन उसे डांट या मारकर चुप कराते हैं.

पढ़ें : Health Tips: टीबी नहीं लाइलाज मगर इन बातों का रखें ध्यान

बाल मन परिस्थितियों को नहीं समझ पाता है. इस कारण भी बाल मनोरोग उनमें पैदा होने लगते हैं. इस कारण वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं. डॉ. गौड़ बताती है कि बच्चों को सकारात्मक माहौल मिलना चाहिए. माता-पिता अपने बच्चों को समय दे व उनसे नियमित बातचीत करें, साथ ही बच्चों की बातों को भी सुनें. बच्चों को हर बात पर टोके नहीं. किशोर अवस्था में यदि बच्चे का व्यवहार बदलता है तो उसे समझाने की कोशिश करें. बच्चों को अपनापन महसूस कराएं, ताकि वह अपनी समस्या के बारे में आपसे खुलकर बात कर सके. बातचीत में लगे कि बच्चे का व्यवहार असामान्य है तो मनोरोग चिकित्सक से अवश्य ही परामर्श लें.

नशा भी कारण : डॉ. गौड़ ने बताया कि छोटे बच्चों में नशा भी मनोरोग का एक बड़ा कारण होता है. क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को सुलाने के लिए अफीम दी जाती है. इस कारण बच्चों में नशे की लत लग जाती है और जब नशा नही मिलता है तो ऐसे बच्चे मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं. घर परिवार में माता-पिता या अन्य परिजनों को नशा करते देख बच्चा भी बड़ों की तरह नशा करने लगता है. ऐसे में बाल मनोरोगी बच्चे ज्यादातर गरीब तबके से होते हैं. उन्होंने बताया कि बच्चों के सामने नशा करने या उन्हें नशा कराने से उनके मस्तिष्क पर बूरा प्रभाव पड़ता है जो मनोरोग का कारण बनता है.

मोबाइल से भी बढ़ रहे हैं बाल मनोरोग के केस : क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं काउंसलर डॉ. मनीषा गौड़ बताती है कि कोविड-19 के समय से बच्चों में मोबाइल का प्रचलन ज्यादा बढ़ा है. माता-पिता छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में मोबाइल देने लगे हैं. जबकि 6 वर्ष तक की आयु के बच्चों को मोबाइल नहीं देना चाहिए. लेकिन बच्चा कुछ नहीं खा रहा है और रो रहा है तो बच्चे के हाथ में मोबाइल दे देते हैं. बच्चों में मोबाइल एडिक्शन के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं. इससे बच्चों में तनाव, एकाग्रता की कमी, क्रोध बढ़ने, सोचने समझने की क्षमता कम होने, धैर्य की कमी, आंखें कमजोर होने के अलावा भी कई शारीरिक और मानसिक समस्याएं हो रही हैं.

डॉ. मनीषा ने बताया कि मोबाइल एडिक्शन के शिकार बच्चों को जब मोबाइल नहीं मिलता है तो वह बेचैन हो जाते हैं. उनका स्वभाव उग्र हो जाता है लोगों से मिलना जुलना बंद कर देते हैं. खुद को सबसे अलग थलग कर लेते हैं. ऐसे बच्चे सामाजिक नहीं होते हैं उनका आत्मविश्वास कमजोर पड़ने लगता है. उन्होंने बताया कि कई बच्चे मोबाइल पर पोर्नोग्राफी भी देखते हैं. इससे उनके मानसिक और शारीरिक अवस्था पर बूरा प्रभाव पड़ता है. डॉ. गौड़ बताती हैं कि बच्चों को आवश्यकता पड़ने पर ही मोबाइल देना चाहिए. स्क्रीन पर बच्चों को 1 घंटे से ज्यादा समय न बिताने दें. मोबाइल यूज कर रहे बच्चों पर माता-पिता को अवश्य ही निगरानी रखनी चाहिए.

बाल मनोरोग के कई प्रकार : डॉ. गौड़ बताती है कि बाल रोग कई प्रकार के होते हैं. मसलन मंदबुद्धि, मानसिक टेंशन डिफिशिएंसी हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर, ओरिजिन स्पेक्ट्रम, चाइल्डहुड डिप्रेशन, जनरल एंग्जायटी, चाइल्डहुड सिजोफ्रेनिया आदि रोग शामिल हैं. मनोरोग के प्रकार के बारे में पड़ताल के उपरांत ही बच्चों को उनके रोग के अनुसार उपचार दिया जाता है.

Last Updated : Mar 16, 2023, 9:19 AM IST
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