अजमेर. सन 1992 में अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड की कालिख आज भी अजमेर से जुड़ी हुई है. इस घिनौने प्रकरण में 6 आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में मामला विचाराधीन है. कोर्ट में गवाहों के बयान लिए जा रहे हैं. प्रकरण में अगली सुनवाई 22 जून को रखी गई है. इस मामले में 9 आरोपियों को उम्र कैद की सजा हो चुकी है, जबकि एक आरोपी आत्महत्या कर चुका है. अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड का एक आरोपी अमेरिका में है, जिसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया जा चुका है.
इन आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में प्रकरणः प्रकरण में 6 आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा जारी है. मामले में तत्कालीन यूथ कांग्रेस के उपाध्यक्ष और खादिम परिवार के सदस्य नफीस चिश्ती, सोहेल गनी, सलीम चिश्ती, सैयद जमीर हुसैन के अलावा इकबाल भाटी के खिलाफ प्रकरण में अजमेर की पॉक्सो एक्ट प्रकरण की कोर्ट संख्या दो में सुनवाई जारी है. इससे पहले महिला अत्याचार से संबंधित कोर्ट में प्रकरण चल रहा था. बाद में इस प्रकरण को पॉक्सो कोर्ट संख्या दो में स्थानांतरित किया है.
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जिला अभियोजन विभाग के सहायक निदेशक वीरेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड में 18 आरोपी थे. इनमें से 9 आरोपियों को स्थानीय अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी, जबकि 6 आरोपियों के खिलाफ प्रकरण विचाराधीन है. एक आरोपी अलमास महाराज फरार है उसके खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी है. उन्होंने बताया कि प्रकरण में 104 गवाहों की गवाही हो चुकी है, जबकि 50 गवाहों के बयान अभी बाकी हैं. राठौड़ ने बताया कि 20 जून को कोर्ट में गवाहों के बयान होने थे, लेकिन बयान देने के लिए कोई गवाह कोर्ट नहीं पहुंचा. अब प्रकरण की सुनवाई 22 जून को होगी.
कोर्ट में जारी केस: इस केस का पहला फैसला मुकदमा दर्ज होने के 6 साल बाद 1998 में आया था. तत्कालीन सेशन कोर्ट के जज ने मामले में 8 आरोपियों को उम्र कैद की सजा से दंडित किया. कोर्ट के इस निर्णय से पहले प्रकरण के मुख्य आरोपी एवं यूथ कांग्रेस का तत्कालीन अध्यक्ष फारूक चिश्ती ने सिजोफ्रेनिया नामक मानसिक रोग होने का हवाला देकर उसके खिलाफ चल रहे मुकदमे में राहत पाने की कोशिश की. बाद में कोर्ट में इसकी अलग से सुनवाई हुई और 2007 में उसे सजा हुई. 1998 के फैसले के खिलाफ आरोपियों ने हाई कोर्ट में अपील की जहां से आरोपियों को राहत मिल गई.
हाईकोर्ट ने आरोपियों की सजा 10 साल का कारावास कर दी. आरोपियों की सजा कम होने के बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग अपील दायर की, जिसका निस्तारण करते हुए 10 साल की सजा को ही यथावत रखा गया. सन 2003 में दिल्ली के धौला कुआं इलाके से मुख्य आरोपी नफीस चिश्ती को महिलाओं के बुर्के में घूमते हुए गिरफ्तार किया गया. सन 2010 में मुख्य आरोपी नफीस चिश्ती के खिलाफ सुनवाई पूरी होने से पहले नसीम और इकबाल भाटी को गिरफ्तार किया गया. इसके बाद सलीम चिश्ती और जमीर चिश्ती को 2012 में पुलिस ने गिरफ्तार किया. इन छह आरोपियों के खिलाफ नए सिरे से अदालत में मुकदमा शुरू हुआ जो अभी लंबित है.
पुलिस से हुई चूक का आरोपी उठाते रहे फायदाः अश्लील छाया चित्र ब्लैक मेल कांड में पुलिस ने शुरुआत में 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया था. सन 1998 में इन आरोपियों को उम्र कैद की सजा हो गई, जबकि शेष आरोपी फरार थे. पुलिस ने मामले में चालान शीट तैयार करने में चूक कर दी, जिसका खमियाजा आज तक पीड़िताओं को भुगतना पड़ रहा है. विधि जानकारों की मानें तो धारा 299 में प्रवधान है कि गवाहों के बयान आरोपी की अनुपस्थिति में लिए जाते हैं, जब आरोपी कोर्ट में पेश होता है तब गवाह नहीं मिलता है, तब अभियुक्त की अनुपस्थिति में हुए बयान ही मान्य होते हैं. चालान क्षेत्र में धारा 299 का उपयोग पुलिस ने नहीं किया, जिस कारण धारा 273 के प्रवधान के तहत जब-जब प्रकरण से संबंधित आरोपी गिरफ्तार हुए हैं, तब तब गवाहों के तौर पर पीड़ितों को बयान देने के लिए कोर्ट में आना पड़ा है. आरोपियों की ओर से यह एक रणनीति भी थी ताकि परेशान होकर गवाह और पीड़िताएं बयान देने कोर्ट में न आएं.
यह था अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांडः अजमेर में यूथ कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष फारूख चिश्ती, उसका साथी नफीस चिश्ती और उसके गुर्गे स्कूल और कॉलेज की लड़कियों को शिकार बनाते थे. फार्महाउस और रेस्टोरेंट में पार्टियों के नाम पर छात्राओं को बुलाकर उन्हें नशीला पदार्थ पिलाकर सामूहिक दुराचार किया जाता और उनके अश्लील फोटो खींच लिए जाते. इन अश्लील फोटो के आधार पर लड़कियों से अन्य लड़कियों को लाने के लिए मजबूर किया जाता, यानी एक शिकार से दूसरे शिकार को फंसाया जाता था. प्रकरण दर्ज होने से पहले कुछ लड़कियों ने हिम्मत कर बयान देने पुलिस के पास भी गई थी, लेकिन पुलिस ने उन पीड़िताओं के खाली बयान लेकर उन्हें चलता कर दिया. बाद में उन पीड़िताओं को धमकियां मिलती रहीं. लिहाजा वह दोबारा पुलिस के सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं. इसके बाद लोक लज्जा के डर से कोई सामने आकर पुलिस में शिकायत करने को तैयार नहीं थी. बाद में 18 पीड़िताओं ने आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में बयान दिए. इनमें से 14 पीड़िताओं के बयान कोर्ट में हो चुके हैं, चार पीड़िताओं के बयान कोर्ट में होने हैं.
ऐसे खुलासा हुआ इस घिनोने कांड काः सन 1992 में अजमेर के एक कलर लैब से कुछ अश्लील फोटो लीक हो गए. यह फोटो शहर में घूमने लगे, तब पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर अश्लील फोटो की जांच की, तब इस घिनौने अपराध और षड्यंत्र का भांडा फूट गया. अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड में 100 से ज्यादा लड़कियों के साथ रेप हुआ. आरोपियों की गुंडागर्दी और ऊंचे रासुखातों की वजह से प्रकरण दर्ज होने के बाद भी किसी भी लड़की ने सामने आने की हिम्मत नहीं दिखाई. तब पुलिस ने फोटो के आधार पर पीड़िताओं को खोजना शुरू किया.
रेप और ब्लैकमेल की शिकार हुई कुछ लड़कियों ने आत्महत्या कर ली. वहीं, कुछ ने चुप्पी साधते हुए शहर ही छोड़ दिया. पुलिस ने कड़ी मशक्कत करके कुछ पीड़िताओं के बयान दर्ज करवाए और मामले की चालानशीट कोर्ट में पेश की. अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड उस दौर में सामने आया जब देश में अयोध्या में राम जन्मभूमि को लेकर देशभर में सियासत गर्म थी. वहीं, साम्प्रदायिक माहौल बना हुआ था, तब दंगे की आशंका के मद्देनजर भी अजमेर पुलिस ने मामले को लंबित रखा. तत्कालीन समय भैरोंसिंह शेखावत सरकार ने मामले की जांच सीआईडी-सीबी को सौंपने का निर्णय लिया, तब इस मामले में पुलिस को मुकदमा दर्ज करना पड़ा.
अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड की शुरुआतः राजनीति और धार्मिक स्थल से जुड़े होने के कारण आरोपियों के रसूख ऊंचे थे. वहीं, धनबल की भी उनके पास कमी नहीं थी. एक लड़की को पद और रसोई गैस सिलेंडर का कनेक्शन दिलवाने का लालच देकर शिकार बनाया और उसके जरिए अन्य लड़कियों को फंसाया गया. इतना ही नहीं, एक लड़के को भी अश्लील फोटो के जरिए ब्लैकमेल कर उसकी परिचित की लड़कियों को शिकार बनाया. ऐसे ब्लैकमेल की शिकार लड़कियों की चैन काफी लंबी होती गई, लेकिन आरोपियों को अंजाम तक पहुंचाने की हिम्मत 18 पीड़िताएं ही जुटा पाईं.
प्रकरण से कुछ माह पहले और बाद में शहर में लड़कियों के आत्महत्या करने की कई घटनाएं हुईं. सीधे तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि उनका इस प्रकरण से जुड़ाव था, क्योंकि न तो वह कोई सुसाइड नोट छोड़कर गईं और न ही उनके परिजनों ने कोई प्रकरण के संबंध में बयान दिए. लेकिन इतना जरूर था कि जिन लड़कियों ने सुसाइड किए थे, उसकी कोई वजह सामने नहीं आई. प्रकरण को 30 वर्ष से अधिक बीत गए हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि आज भी पीड़ितओं और गवाहों को बयान के लिए कोर्ट में जाना पड़ता है. यह उनके लिए उस घटना से भी ज्यादा पीड़ादायक है.
ज्यादा कष्टदायक है बार-बार कोर्ट में गवाही देने आनाः अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड को 31 वर्ष से अधिक हो गए. कई पीड़िताओं की शादी हो चुकी है, वहीं बच्चे बड़े हो चुके हैं. इनमें से कुछ पीड़िताओं के पोते-पोती हैं. इन सबके बीच 31 वर्ष पहले मिले घिनौने दंश का दर्द फिर जाग जाता है, जब गवाह के लिए समन घर आता है और गवाही के लिए पीड़िताओं को कोर्ट जाना पड़ता है. यह पीड़ा उनके लिए ज्यादा कष्टदायक है.