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Lord Shiva Unique Temple: शिव का ऐसा अनूठा शिवलिंग जहां बकरे की आती है गंध, जगतपिता ब्रह्मा ने किया था स्थापित

देश और दुनिया में महादेव के अनगिनत मंदिर हैं. सभी मंदिर अपनी धार्मिक विशेषताओं के कारण श्रद्धालुओं को आकर्षित करते रहे हैं. इनमें से एक अनूठा शिवालय अजमेर में भी है. आइये हम आपको इस अनूठे मंदिर की खासियत से परिचित कराते हैं.

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Published : Feb 9, 2023, 10:16 PM IST

Updated : Feb 10, 2023, 8:49 AM IST

Ajgandheshwar Mahadev Temple in Ajmer
Ajgandheshwar Mahadev Temple in Ajmer
अजमेर में महादेव का अनूठा मंदिर

अजमेर. देवों के देव महादेव के अनगिनत भक्त हैं और इतने ही महादेव के धरती पर शिवलिंग विराजमान हैं. हर शिवलिंग की अपनी महिमा है. बताया जाता है कि इनमें से कुछ शिवलिंग तो हजारों वर्ष पुराने हैं. ऐसे ही एक शिवलिंग का जिक्र आज हम आपसे करने जा रहे हैं, जो न केवल अनूठा है, बल्कि इसकी स्थापना जगतपिता ब्रह्मा ने की थी.

अजमेर शहर से करीब 16 किलोमीटर दूर अजयसर गांव की पहाड़ियों की तलहटी में अजगंधेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंदिर में विराजित शिवलिंग सृष्टि की रचना से पहले से है. मान्यता है कि स्वंय जगतपिता ब्रह्मा ने अजगंधेश्वर शिवलिंग की स्थापना कहां की थी. पुराणों और धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक पुष्कर को जगतपिता ब्रह्मा की नगरी कहा जाता है.

पढ़ें. राजस्थान में यहां है एशिया की दूसरी सबसे बड़ी नीलकंठ महादेव की प्रतिमा

बताया जाता है कि यहीं से जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी, लेकिन उससे पहले अपनी बसाई नगरी में सृष्टि यज्ञ किया था. सृष्टि यज्ञ में जब दानव असुर विघ्न डालने लगे तब जगतपिता ब्रह्मा ने पुष्कर के चारों ओर भगवान शिव शंकर के शिवलिंग स्थापित किए. जिससे महादेव सृष्टि यज्ञ की रक्षा करें. इन चार शिवलिंग में से एक अजगंधेश्वर महादेव शिवलिंग है. मंदिर के चारों ओर पहाड़ियां और जंगल हैं. मंदिर के समीप प्राकृतिक बरसाती झरना है और ठीक पीछे जंगल में एक छोटी सी बावड़ी है. जिसे गंगा बावड़ी के नाम से जाना जाता है.

Ajgandheshwar Mahadev Temple in Ajmer
राजा अजयपाल के बचपन की तस्वीर

स्थानीय लोगों ने लोहे की जाली से बावड़ी के ऊपरी सिरे को बंद कर दिया है और वहां एक हैंडपंप लगा दिया है. बताया जाता है कि बावड़ी का पानी कभी नहीं सूखता. पुष्कर अरण्य क्षेत्र में विराजमान अजगंधेश्वर महादेव प्रमुख तीर्थ स्थल है. वहीं प्राकृतिक सौंदर्य के कारण यह पिकनिक स्पॉट भी है. विकास से अछूते इस पावन स्थल में आज भी मंदिर पर उभरी हुई कलाकृतियां नजर आती हैं जो उस समय के स्थापत्य और सभ्यता को प्रदर्शित करती हैं.

पढ़ें. Kasoti Nath Mahadev Mandir: बीकानेर का अनूठा शिव मंदिर जहां शेरशाह सूरी से पराजित होकर मुगल शासक हुंमायू ने ली थी शरण

यह है अजगंधेश्वर महादेव की कथाः पुष्कर में तीर्थ पुरोहित पंडित रवि शर्मा अजगंधेश्वर महादेव की महिमा बताते हुए कहते हैं कि पुष्कर में वशकली नाम का एक असुर ने 10 हजार वर्षों तक घोर तपस्या की थी. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर जगतपिता ब्रह्मा ने उसे वरदान दिया था उसकी मृत्यु किसी भी देवी देवता, त्रिदेव और मनुष्य के हाथों नहीं होगी. साथ ही कोई अस्त्र शस्त्र उसे नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा. जगतपिता ब्रह्मा के आशीर्वाद से दानव ने इंद्रलोक को जीत लिया था. भगवान इंद्र ने जगतपिता ब्रह्मा से सहायता मांगी तब इंद्र को तपस्या कर भगवान शिव शंभू को प्रसन्न करने का सुझाव दिया.

इंद्र ने घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव वशकली दानव का वध करने का वचन दिया. एक दिन जब दानव पुष्कर सरोवर में स्नान और पूजा करने के बाद अपने विलास में लौट रहा था तब उसने एक बड़े से बकरे को देखा जो आम बकरे से काफी बड़ा था. उस बकरे को देखकर दानव की तामसी प्रवृत्ति जागृत हो गई और बकरे का मांस खाने के इरादे से उसने बकरे का पीछा करना शुरू कर दिया. बकरे के पीछे दौड़ते हुए वह दानव इसी स्थान पर पहुंचा. यहां बकरे के सिंघ से महादेव ने दानव का अंत कर दिया. दानव के अंत के बाद इंद्र को इंद्रलोक मिल गया.

पढ़ें. Devsomnath Mandir Dungarpur : न रेत लगी, न चूना...12वीं सदी का ऐसा मंदिर जो रातों-रात खड़ा हुआ

जगतपिता ब्रह्मा ने महादेव को यहीं पर रोकने की कोशिश की और उनसे वचन लिया. लेकिन महादेव ने ब्रह्मा के वचन का मान रखा और कहा कि वर्ष में 1 दिन वह अपने पूरे परिवार के साथ यहां जरूर विराजमान रहेंगे. बताया जाता है कि कार्तिक माह की चौदस को भगवान शिव शंकर अपने परिवार के साथ यहां विराजते हैं. सदियों से श्रद्धालु अजगंधेश्वर के दर्शनों के लिए आते रहे हैं. यहां अनूठी बात यह है कि आज भी श्रद्धा के साथ जो भी भक्त शिवलिंग को जल अर्पित करने के बाद अपने दोनों हाथों से शिवलिंग को रगड़ता है. खास बात यह है कि यह गंध हर किसी को नहीं आती है. कहा जाता है कि शिव के सच्चे भक्तों को ही यह अनुभूति होती है.

यहां बसी थी पहले अजयमेरु नगरीः अजगंधेश्वर महादेव के आसपास के क्षेत्र में कभी अजयमेरु नगरी बसा करती थी. आज भी इस क्षेत्र में कई जगह खुदाई में मकान की नींव की ईंटे मिलती हैं. मंदिर के पुजारी भंवर नाथ बताते हैं कि अजगंधेश्वर महादेव के मंदिर के समीप अजमेर के संस्थापक राजा अजयपाल की समाधि है. उन्होंने बताया कि अजय पाल ने यहीं रहकर घोर तप किया था. अजय पाल ने तंत्र मंत्रों को यहां सिद्ध किया था. अजय पाल महादेव के अनन्य भक्त थे. प्रतिदिन वह महादेव के शिवलिंग पर जल चढ़ाया करते थे. बताया जाता है कि अपनी सिद्धियों के जरिए अजय पाल प्रतिदिन हरिद्वार से गंगा जल लेकर आते थे. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गंगा मैया ने उन्हें वरदान दिया था कि अब उन्हें यहां आने की जरूरत नही है वह स्वंय वहीं प्रकट होंगी. मंदिर के पीछे जंगल मे गंगा बावड़ी वह स्थान है, जिसका जल कभी नहीं सूखता. उन्होंने बताया कि यहां के बाद अजमेर नगरी को वर्तमान जगह पर बसाया गया था.

पढ़ें. अद्भुत है करौली का ये शिव मंदिर...यहां विराजते हैं वक्र गर्दन वाले महादेव...दिन में तीन बार रूप बदलती है प्रतिमा

जंगल में होने के कारण शिव के पावन धाम पर लोगों का प्रतिदिन कम ही आना जाना रहता है. यही वजह है कि जिम्मेदार भी मंदिर क्षेत्र के विकास में कोई रुचि नहीं लेते. शिवरात्रि और कार्तिक महा की चौदस पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. अजमेर से दर्शन के लिए शिव के इस पावन स्थल पर आए कपिल व्यास बताते हैं कि अति प्राचीन अजगंधेश्वर मंदिर की महिमा को सुनते आए हैं. यहां अनूठा शिवलिंग है जिसमें से बकरे की गंध आती है. उन्होंने बताया कि यह अनुभति हर किसी को नहीं होती है.

अजगंधेश्वर महादेव मन्दिर भारतीय पुरात्तव विभाग की ओर से संरक्षित है. यहां विभाग का बोर्ड लगा है, लेकिन सरंक्षण के नाम पर यहां कुछ नजर नहीं आता. सादियां बीत जाने के बाद भी यहां कुछ नही बदला, सिवाय जंगल की सघनता कम हुई है.

अजमेर में महादेव का अनूठा मंदिर

अजमेर. देवों के देव महादेव के अनगिनत भक्त हैं और इतने ही महादेव के धरती पर शिवलिंग विराजमान हैं. हर शिवलिंग की अपनी महिमा है. बताया जाता है कि इनमें से कुछ शिवलिंग तो हजारों वर्ष पुराने हैं. ऐसे ही एक शिवलिंग का जिक्र आज हम आपसे करने जा रहे हैं, जो न केवल अनूठा है, बल्कि इसकी स्थापना जगतपिता ब्रह्मा ने की थी.

अजमेर शहर से करीब 16 किलोमीटर दूर अजयसर गांव की पहाड़ियों की तलहटी में अजगंधेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंदिर में विराजित शिवलिंग सृष्टि की रचना से पहले से है. मान्यता है कि स्वंय जगतपिता ब्रह्मा ने अजगंधेश्वर शिवलिंग की स्थापना कहां की थी. पुराणों और धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक पुष्कर को जगतपिता ब्रह्मा की नगरी कहा जाता है.

पढ़ें. राजस्थान में यहां है एशिया की दूसरी सबसे बड़ी नीलकंठ महादेव की प्रतिमा

बताया जाता है कि यहीं से जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी, लेकिन उससे पहले अपनी बसाई नगरी में सृष्टि यज्ञ किया था. सृष्टि यज्ञ में जब दानव असुर विघ्न डालने लगे तब जगतपिता ब्रह्मा ने पुष्कर के चारों ओर भगवान शिव शंकर के शिवलिंग स्थापित किए. जिससे महादेव सृष्टि यज्ञ की रक्षा करें. इन चार शिवलिंग में से एक अजगंधेश्वर महादेव शिवलिंग है. मंदिर के चारों ओर पहाड़ियां और जंगल हैं. मंदिर के समीप प्राकृतिक बरसाती झरना है और ठीक पीछे जंगल में एक छोटी सी बावड़ी है. जिसे गंगा बावड़ी के नाम से जाना जाता है.

Ajgandheshwar Mahadev Temple in Ajmer
राजा अजयपाल के बचपन की तस्वीर

स्थानीय लोगों ने लोहे की जाली से बावड़ी के ऊपरी सिरे को बंद कर दिया है और वहां एक हैंडपंप लगा दिया है. बताया जाता है कि बावड़ी का पानी कभी नहीं सूखता. पुष्कर अरण्य क्षेत्र में विराजमान अजगंधेश्वर महादेव प्रमुख तीर्थ स्थल है. वहीं प्राकृतिक सौंदर्य के कारण यह पिकनिक स्पॉट भी है. विकास से अछूते इस पावन स्थल में आज भी मंदिर पर उभरी हुई कलाकृतियां नजर आती हैं जो उस समय के स्थापत्य और सभ्यता को प्रदर्शित करती हैं.

पढ़ें. Kasoti Nath Mahadev Mandir: बीकानेर का अनूठा शिव मंदिर जहां शेरशाह सूरी से पराजित होकर मुगल शासक हुंमायू ने ली थी शरण

यह है अजगंधेश्वर महादेव की कथाः पुष्कर में तीर्थ पुरोहित पंडित रवि शर्मा अजगंधेश्वर महादेव की महिमा बताते हुए कहते हैं कि पुष्कर में वशकली नाम का एक असुर ने 10 हजार वर्षों तक घोर तपस्या की थी. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर जगतपिता ब्रह्मा ने उसे वरदान दिया था उसकी मृत्यु किसी भी देवी देवता, त्रिदेव और मनुष्य के हाथों नहीं होगी. साथ ही कोई अस्त्र शस्त्र उसे नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा. जगतपिता ब्रह्मा के आशीर्वाद से दानव ने इंद्रलोक को जीत लिया था. भगवान इंद्र ने जगतपिता ब्रह्मा से सहायता मांगी तब इंद्र को तपस्या कर भगवान शिव शंभू को प्रसन्न करने का सुझाव दिया.

इंद्र ने घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव वशकली दानव का वध करने का वचन दिया. एक दिन जब दानव पुष्कर सरोवर में स्नान और पूजा करने के बाद अपने विलास में लौट रहा था तब उसने एक बड़े से बकरे को देखा जो आम बकरे से काफी बड़ा था. उस बकरे को देखकर दानव की तामसी प्रवृत्ति जागृत हो गई और बकरे का मांस खाने के इरादे से उसने बकरे का पीछा करना शुरू कर दिया. बकरे के पीछे दौड़ते हुए वह दानव इसी स्थान पर पहुंचा. यहां बकरे के सिंघ से महादेव ने दानव का अंत कर दिया. दानव के अंत के बाद इंद्र को इंद्रलोक मिल गया.

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जगतपिता ब्रह्मा ने महादेव को यहीं पर रोकने की कोशिश की और उनसे वचन लिया. लेकिन महादेव ने ब्रह्मा के वचन का मान रखा और कहा कि वर्ष में 1 दिन वह अपने पूरे परिवार के साथ यहां जरूर विराजमान रहेंगे. बताया जाता है कि कार्तिक माह की चौदस को भगवान शिव शंकर अपने परिवार के साथ यहां विराजते हैं. सदियों से श्रद्धालु अजगंधेश्वर के दर्शनों के लिए आते रहे हैं. यहां अनूठी बात यह है कि आज भी श्रद्धा के साथ जो भी भक्त शिवलिंग को जल अर्पित करने के बाद अपने दोनों हाथों से शिवलिंग को रगड़ता है. खास बात यह है कि यह गंध हर किसी को नहीं आती है. कहा जाता है कि शिव के सच्चे भक्तों को ही यह अनुभूति होती है.

यहां बसी थी पहले अजयमेरु नगरीः अजगंधेश्वर महादेव के आसपास के क्षेत्र में कभी अजयमेरु नगरी बसा करती थी. आज भी इस क्षेत्र में कई जगह खुदाई में मकान की नींव की ईंटे मिलती हैं. मंदिर के पुजारी भंवर नाथ बताते हैं कि अजगंधेश्वर महादेव के मंदिर के समीप अजमेर के संस्थापक राजा अजयपाल की समाधि है. उन्होंने बताया कि अजय पाल ने यहीं रहकर घोर तप किया था. अजय पाल ने तंत्र मंत्रों को यहां सिद्ध किया था. अजय पाल महादेव के अनन्य भक्त थे. प्रतिदिन वह महादेव के शिवलिंग पर जल चढ़ाया करते थे. बताया जाता है कि अपनी सिद्धियों के जरिए अजय पाल प्रतिदिन हरिद्वार से गंगा जल लेकर आते थे. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गंगा मैया ने उन्हें वरदान दिया था कि अब उन्हें यहां आने की जरूरत नही है वह स्वंय वहीं प्रकट होंगी. मंदिर के पीछे जंगल मे गंगा बावड़ी वह स्थान है, जिसका जल कभी नहीं सूखता. उन्होंने बताया कि यहां के बाद अजमेर नगरी को वर्तमान जगह पर बसाया गया था.

पढ़ें. अद्भुत है करौली का ये शिव मंदिर...यहां विराजते हैं वक्र गर्दन वाले महादेव...दिन में तीन बार रूप बदलती है प्रतिमा

जंगल में होने के कारण शिव के पावन धाम पर लोगों का प्रतिदिन कम ही आना जाना रहता है. यही वजह है कि जिम्मेदार भी मंदिर क्षेत्र के विकास में कोई रुचि नहीं लेते. शिवरात्रि और कार्तिक महा की चौदस पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. अजमेर से दर्शन के लिए शिव के इस पावन स्थल पर आए कपिल व्यास बताते हैं कि अति प्राचीन अजगंधेश्वर मंदिर की महिमा को सुनते आए हैं. यहां अनूठा शिवलिंग है जिसमें से बकरे की गंध आती है. उन्होंने बताया कि यह अनुभति हर किसी को नहीं होती है.

अजगंधेश्वर महादेव मन्दिर भारतीय पुरात्तव विभाग की ओर से संरक्षित है. यहां विभाग का बोर्ड लगा है, लेकिन सरंक्षण के नाम पर यहां कुछ नजर नहीं आता. सादियां बीत जाने के बाद भी यहां कुछ नही बदला, सिवाय जंगल की सघनता कम हुई है.

Last Updated : Feb 10, 2023, 8:49 AM IST
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