चेन्नई : भारत ने पहली बार ऑनलाइन शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीता. 15 वर्षीय प्रागननंदा को इस आश्चर्यजनक एतिहासिक जीत में अपने योगदान पर बेहद खुशी महसूस होती है. वो उस 14 सदस्यीय भारतीय टीम का हिस्सा थे जिसने इस अगस्त में अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में भाग लिया था. देश के सबसे युवा ग्रैंडमास्टर, वो ये खिताब हासिल करने वाले दुनिया के चौथे खिलाड़ी हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रागननंदा ने अपने करियर से जुड़ी कई अहम बातें साझा की.
ये पहली बार है जब देश ने शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीता है. आप इस बड़ी उपलब्धि को कैसे देखते हैं?
मैं बेहद खुश हूं. मैं इस अवसर पर अपने प्रायोजक, अपने स्कूल और अपने कोच रमेश को उनके असहनीय समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूं. ये वास्तव में बहुत अच्छा लग रहा है कि मैंने भी इस ऐतिहासिक जीत में योगदान दिया है.
आपने कोरोना महामारी के समय में अपना प्रशिक्षण और तैयारी कैसे की?
मेरे कोच रमेश ने मुझे ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया. वो रोज क्लास लेते थे लॉकडाउन की वजह से मुझे भी ऑनलाइन ट्रेनिंग की आदत हो गई थी.
ये पहली बार है जब ओलंपियाड ऑनलाइन आयोजित किया गया था. आपका अनुभव कैसा रहा
किसी भी ऑनलाइन प्रतियोगिता में खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी एक बड़ा मुद्दा होगा. केवल इंटरनेट सेवा में व्यवधान के कारण भारत को तीन मैचों में दुर्भाग्य से हारना पड़ा. उसके बाद हमने ऐप डाउनलोड किया. एक बार जब हमने ऐसा कर लिया तो हमें कनेक्टिविटी में कोई समस्या नहीं हुई.
आपने टूर्नामेंट में हैवीवेट के साथ प्रतिस्पर्धा की है. आप एक ऐसी टीम का हिस्सा थे जिसमें शीर्ष खिलाड़ी थे. आपने क्या सीखा?
मैं खेल पर चर्चा करने के लिए कई बार विश्वनाथन आनंद के घर गया. हालांकि, ऑनलाइन आयोजित किए जाने वाले इस दौरे के लिए मैं दूसरों के साथ ज्यादा चर्चा नहीं कर सका. हम खेल शुरू होने से पहले अपनी टीम के सह-खिलाड़ियों के साथ संक्षिप्त बातचीत करते थे.
शतरंज के प्रति आपके जुनून के लिए आपका परिवार - पिता, माता और बड़ी बहन कितना सहायक थे?
जब मैंने खुद को प्रशिक्षित करने के लिए ओलंपियाड में भाग लेने वाले अन्य खिलाड़ियों के साथ खेलना शुरू किया, तो मुझे बार-बार इंटरनेट बाधित होने की समस्या का सामना करना पड़ा. इसे देखते हुए, मेरे माता-पिता ने घर पर एक सुरक्षित इंटरनेट कनेक्शन लगाया. इसके अलावा, ये सुनिश्चित करने के लिए कि मुझे कोई दिक्कत ना हो, टूर्नामेंट खत्म होने तक रिश्तेदारों को हमारे घर पर नहीं आने के लिए कहा गया था. उनका समर्थन एक उत्प्रेरक और एक महान मनोबल बढ़ाने वाला था.
आप पढ़ाई और शतरंज के बीच संतुलन कैसे बनाते हैं?
मैं अपने स्कूल के लिए बहुत आभारी हूं जिसने मुझे तीन साल के लिए विशेष अनुमति दी, जिससे मुझे शतरंज को आगे बढ़ाने और टूर्नामेंट में भाग लेने की सुविधा मिली. अब जब मैं दसवीं कक्षा में आ गया था, तो मुझे अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देना होगा.