उदयपुर. झीलों की नगरी के नाम से उदयपुर देश-विदेश में मशहूर है. यहां की झीलों को देखने दुनियाभर के पर्यटक आते हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से यहां की झीलें अपनी खूबसूरती खोती जा रही हैं. सूरज की किरण गिरने पर हीरे की तरह चमकने वाला इन झीलों का पानी अब सीवरेज की गंदगी से लबरेज है. इन्हीं झीलों से पीने के पानी की सप्लाई शहरवासियों को की जाती है. जो सेहत और पर्यावरण के लिए घातक बनता जा रहा है.
सीवरेज सिस्टम में लीकेज
उदयपुर में पिछोला झील, फतेहसागर झील और उदयसागर झील प्रमुख हैं. इन झीलों में कैचमेंट इलाके और नदियों से पानी आता है. लेकिन अब इस झीलों में सीवरेज और कारखानों का दूषित पानी भी आ रहा है. जिसके चलते झीलों का पानी लगातार जहरीला होता जा रहा है. झीलों में प्लास्टिक का ढेर लग रहा है. उदयपुर के महापौर गोविंद सिंह टाक ने कहा कि जैसे ही सीवरेज सिस्टम ठीक हो जाएगा. झीलों में गंदे पानी की समस्या अपने आप ही ठीक हो जाएगी. उन्होंने कहा कि सीवरेज में लीकेज के चलते गंदा पानी झीलों में जा रहा है.
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स्थानीय लोग भी डाल रहे हैं झीलों में कचरा
गोविंद टाक ने कहा कि आम जनता की भी लापरवाही के चलते झीलों की स्थिति बद से बदतर हो रही हैं. प्रशासन की तरफ से झीलों में कचरा फैलाने वालों के खिलाफ जुर्माना लगाया जाएगा. नगर निगम प्रशासन की तरफ से हर संभव कोशिश की जा रही है कि झीलों में प्लास्टिक और अन्य कचरा ना जाए. विधायक फूल सिंह मीणा ने कहा कि उदयपुर में पिछले लंबे समय से झीलों में फैक्ट्रियों का दूषित जल जा रहा है, जिसको लेकर उन्होंने राजस्थान की विधानसभा में भी प्रश्न लगाया था. जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने उनसे झीलों की वास्तविक स्थिति का मौका निरीक्षण करने की बात कही. जब मौका निरीक्षण किया गया तो कुछ फैक्ट्रियों पर कार्रवाई भी की गई लेकिन अभी यह कार्रवाई सिर्फ कागजी है और हकीकत में अब भी उदयपुर की प्रमुख झीलों में कारखानों का दूषित जल जा रहा है. जो आम जनता के लिए काफी हानिकारक है. ऐसे में शासन प्रशासन द्वारा समय रहते इसे रोकने की जरूरत है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो झीलें कचरा घर में तब्दील हो जाएंगी.
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स्थानीय प्रशासन की लापरवाही
झीलों की साफ सफाई के लिए लंबे समय से काम कर रहे महेश शर्मा का कहना है कि स्थानीय प्रशासन की लापरवाही के चलते झीलें दूषित हो रही हैं. कागजों में तो झीलों की सफाई के लिए बड़े-बड़े काम किए जा रहे हैं. लेकिन वास्तव में झीलों के हालात नहीं सुधरे हैं. शहर में पीने के पानी की सप्लाई भी इन्हीं झीलों से की जाती है. ऐसे में अब दूषित पानी शहरवासियों के कीचन तक पहुंच गया है. पानी साफ करने के जो प्लांट लगाए गए हैं उनकी क्षमता से कहीं अधिक सीवरेज का पानी शहर से आ रहा है.
अगर समय रहते शहर की झीलों में जाने वाले गंदे पानी को नहीं रोका गया तो यह पर्यटन को भी प्रभावित कर सकता है. हजारों लोगों की रोजी-रोटी यहां आने वाले पर्यटकों से चलती है. साथ ही गंदे पानी से झीलों के जलीय जीव भी लगातार नष्ट हो रहे हैं. निगम प्रशासन और आम जनता की भागीदारी से ही झीलों को स्वच्छ रखा जा सकता है. इसके लिए सरकार को भी जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिए.