उदयपुर. सीकर के गुरुकुल यूनिवर्सिटी विवाद के मामले में वेरिफिकेशन कमेटी (Sikar Gurukul University controversy) के सदस्य प्रोफेसर घनश्याम सिंह राठौड़ के निलंबन पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर घनश्याम सिंह राठौड़ भी सीकर के गुरुकुल यूनिवर्सिटी की वेरिफिकेशन कमेटी के सदस्य थे. ऐसे में पिछले दिनों इस पूरे मामले में फर्जी रिपोर्ट पेश करने को लेकर उन्हें निलंबित कर दिया गया था.
इसके बाद वे राजस्थान हाई कोर्ट जोधपुर बेंच में मामले को लेकर गए थे. लेकिन अब इस मामले को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट ने सुखाड़िया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर घनश्याम सिंह राठौड़ के निलंबन पर रोक लगा दी है. इतना ही नहीं मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि कुलपति के आदेशों में घनश्याम सिंह के खिलाफ कंटेंप्लेटेड इंक्वायरी जैसी कोई बात नहीं कही गई है. इसी आधार पर हाईकोर्ट ने घनश्याम सिंह के सस्पेंशन पर स्टे लगा दिया है.
पिछले दिनों राज्य सरकार की ओर से गुरुकुल यूनिवर्सिटी की वेरिफिकेशन रिपोर्ट के मामले में कार्रवाई करते हुए कमेटी के तीन सदस्यों को सस्पेंड किया गया था. इनमें से दो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर थे. इस पूरे मामले में सुखाड़िया यूनिवर्सिटी के कुलपति ने कई दिनों तक टालमटोल करते हुए 13 अप्रैल को राठौड़ को सस्पेंड कर 14 अप्रैल को सस्पेंशन के आदेश जारी किए थे.
राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर मुख्यपीठ के जस्टिस अरूण भंसाली की अदालत ने उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. घनश्याम सिंह राठौड़ को निलम्बन करने वाले आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए जवाब तलब किया है. याचिकाकर्ता राठौड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कुलदीप माथुर और उनके सहयोगी धीरेन्द्र सिंह सोढा ने याचिका पेश करते हुए पैरवी की. इस पर कोर्ट ने 14 अप्रेल 2022 को राज्य सरकार के नोटिस के बाद कुलपति प्रो. अमरीका सिंह के निलम्बन के आदेश जारी किए थे.
ये निलम्बन सीकर के प्रस्तावित गुरुकुल विश्वविद्यालय के भौतिक सत्यापन में हुई गड़बड़ी के बाद जांच कमेटी की रिपोर्ट में लापरवाही के आरोप पर किया गया है. विश्वविद्यालय कुल सचिव की ओर से जारी निलम्बन आदेश में कहा गया कि 8 और 13 अप्रैल को राज्य सरकार से जारी पत्र में डीन राठौड़ पर गुरुकुल विश्वविद्यालय के मामले में गलत तथ्य प्रस्तुत करने आरोप लगाए गए हैं. गुरुकुल विश्वविद्यालय सत्यापन में फर्जीवाड़े का मामला विधानसभा में उठाए जाने पर सरकार को विश्वविद्यालय का बिल वापस लेना पड़ा था जिससे सरकार की किरकिरी हुई थी.