उदयपुर. देशभर में जन्माष्टमी का पावन पर्व 19 अगस्त को मनाया जाएगा.कोरोना के 2 साल बाद भगवान श्री कृष्ण के मंदिरों में एक बार फिर पुरानी रौनक देखने को मिलेगी.राजस्थान के नाथद्वारा स्थित विश्व प्रसिद्ध भगवान श्रीनाथजी के मंदिर में भी जन्माष्टमी के पर्व को लेकर तैयारियां अंतिम दौर में हैं. योग योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव को लेकर श्रीनाथजी के मंदिर में दो दिवसीय पर्व का आयोजन किया जाएगा.राजसमंद के नाथद्वारा स्थित पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की प्रधानपीठ श्रीनाथजी का मंदिर में 19 अगस्त को जन्माष्टमी एवं 20 अगस्त को नंद महोत्सव बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाएगा. बड़ी संख्या में भक्त देश के कोने कोने से यहां भगवान के जन्मोत्सव मे शामिल होने के लिए पहुंचते हैं.
श्रीनाथजी मंदिर मंडल सीईओ जितेंद्र कुमार ओझा ने बताया कि पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ श्री नाथजी के मंदिर में 19 अगस्त को जन्माष्टमी जबकि 20 अगस्त को नंद महोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा. सुबह भगवान श्रीनाथ जी को पंचामृत स्नान व मंगला आरती के दर्शन होंगे. जिसके बाद प्रभु को राजभोग वहीं प्रति वर्ष की भांति जागरण के दर्शन 9:00 बजे से अर्द्ध रात्रि 12:00 बजे तक होंगे. शाम को इस बार फिर शोभायात्रा निकाली जाएगी.जन्माष्टमी के दूसरे दिन नंद महोत्सव की धूम होगी. नंदलाल के आगमन की खुशी में ग्वाल-बाल दूध-दही से होली खेल खुशियां मनाएंगे. मंदिर में दर्शन करने आने वाले सभी लोगों के संग ग्वाल-बाल हल्दी- केसर युक्त दूध दही से होली खेलेंगे. इसके लिए अभी से विशेष तैयारियां कर ली गई हैं.
21 तोपों की सलामी: 350 वर्षों से चली आ रही भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के समय यहां इक्कीस तोपों की सलामी दी जाती है.रात्रि 12 बजे जन्म की खुशियां स्थानीय रिसाला चौक मे 21 तोपों की सलामी देकर मनाई जाएगी. इन तोपों को छोड़ने के पीछे तर्क है कि मुखिया नंदराय के गांव और उनके आसपास के गांव में लोगों को सूचना मिल जाएगी कि नंदराय के घर उनके तारणहार का जन्म हो चुका है और वो लोग इसकी खुशियां मनाना प्रारंभ कर सकते हैं. इन तोपों की गूंज कई किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है. इसे देखने के लिए देश-दुनिया से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. रात 12: बजते ही तोपों की गूंज सुनाई पड़ती है.
कहते हैं कि श्रीनाथजी आज से करीब 370 वर्ष पूर्व जब मेवाड़ पधारे तब से अब तक इस परंपरा का हर वर्ष मनाया जा रहा है.नाथद्वारा को ब्रज का ही एक रूप मानकर यहां भी आसपास के गांव में भगवान श्री कृष्ण को लेकर गहरी आस्था है.रात्रि 12 बजते ही तोपों की आवाज सुनकर श्री कृष्ण के जन्म की खुशियां मनाते हैं. तोपों के लिए बारूद पोटाश से बनाए जाते हैं.
पढ़ें-राजस्थान में वृंदावन से पधारे श्री कृष्ण के तीन विग्रह, रोचक है इतिहास
ये भी पढ़ें-अद्भुत है गढ़वा का बंशीधर मंदिर, 1280 किलो शुद्ध सोने की है भगवान कृष्ण की जीवंत प्रतिमा
मथुरा से सुरक्षित पधारे श्रीनाथजी: कहा जाता है कि मध्यकाल में आततायियों के आतंक के बीच प्रभु श्रीनाथजी को सुरक्षित रखने के लिए मथुरा के जतीपुरा से भगवान को यहां लाया गया था. मथुरा से आगरा, कोटा, जोधपुर होते हुए काफी लंबी यात्रा के बाद मेवाड़ के राजा श्रीनाथ जी की सुरक्षा का वचन देते हुए उन्हें यहीं ठहराने की गुजारिश की थी. तब से वे यहीं विराजित हैं.