उदयपुर. राजस्थान के उदयपुर में 28 जून को दिनदहाड़े कन्हैया लाल (udaipur murder case) की निर्मम हत्या कर दी गई थी. इस वारदात को अंजाम देकर आरोपी रियाज अत्तारी और गौस मोहम्मद फरार हो गए थे. लेकिन राजसमंद के भीम क्षेत्र में इन दोनों हत्यारों को पुलिस ने दबोच लिया. इन दोनों ही आरोपियों को पकड़वाने में भीम इलाके के दो युवाओं की भी भूमिका अहम रही है. इन दोनों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए 30 किलोमीटर तक इन दोनों आरोपियों का पीछा किया और पुलिस को लोकेशन की जानकारी देते रहे जिससे पुलिस दोनों आतंकियों को पकड़ सकी.
शक्ति और पहलाद ने 30 किमी तक किया आरोपियों का पीछा...
28 जून को कन्हैया लाल की हत्या कर रियाज और गौस मोहम्मद राजसमंद के भीम इलाके की तरफ पहुंचे थे. इस बीच आरोपियों ने इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया और जिसमें धारदार हथियार से दोनों हत्यारे कन्हैया को मार रहे थे.इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया के माध्यम से शक्ति सिंह और पहलाद सिंह के पास भी पहुंचा. इसी दौरान जब यह दोनों वीडियो देख रहे थे. तभी उनके पास एक पुलिसकर्मी का फोन आया और पूरी घटना की जानकारी देते हुए आरोपियों की बाइक नंबर और उनके हुलिये के बारे में जानकारी दें. इस दौरान पहलाद और शक्ति सिंह ने 30 किलोमीटर तक आरोपियों का पीछा किया और पुलिस को लगातार उनकी सूचना देते रहे.
इन दोनों की बहादुरी को लेकर चौतरफा चर्चा हुई: पहलाद सिंह चुंडावत ने बताया उदयपुर हत्याकांड को अंजाम देने वाले बेखौफ आतंकियों ने धारदार हथियार दिखाते हुए वीडियो भी वायरल किया लेकिन इन दोनों हत्यारों को पकड़ने में उन्हें रत्ती भर भी डर नहीं लगा. पीछा करते समय भी दोनों आरोपियों ने युवकों को खंजर दिखाए और पीछा न करने के लिए धमकी दी. क्योंकि वे चुंडावत वंश (Chundawat Dynasty has great history of bravery) से हैं जो हरावल के दस्ते में सबसे आगे रहा करते थे. उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने यही सिखाया है कि कभी डरना और घबराना नहीं चाहिए.
चुंडावतों का इतिहास...
इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि मेवाड़ प्रारंभ से ही शक्ति, शौर्य और वीरता के साथ त्याग और बलिदान के लिए (Chundawat Dynasty has great history of bravery) जाना जाता है. इतिहास में राव चुंडा के त्याग और बलिदान के कारण मेवाड़ में हरावल के दस्ते में चुंडावत को स्थान मिला. हरावल उस दस्ते को कहते हैं जो कि सेना का प्रमुख दस्ता होता है. ऐसे में अगर युद्ध में सबसे पहले आक्रमण करता और युद्ध में आक्रमण को झेलता भी है. इसलिए हरावल दस्ते में युद्ध करना चुंडावतों के लिए हमेशा एक गौरव का विषय रहा है.
महाराणा अमर सिंह के समय यह सवाल उठा कि सिर्फ चुंडावत ही हरावल से क्यों लड़ते हैं. इसको लेकर उटाला किले पर अधिकार करने की प्रतिस्पर्धा रखी गई, लेकिन चुंडा ने अपना सर काट कर दुर्ग के अंदर फेंक दिया. शर्त यह थी कि जो दुर्ग में पहले पहुंचेगा उसे हरावल का अधिकार प्राप्त होगा. इस तरह प्राचीन समय से चले आ रहे हरावल के अधिकार को राव चुंडा के वंशज कायम रख पाए.
महाराणा प्रताप को उत्तराधिकार दिलाने में भी निभाई थी भूमिका
इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि महाराणा प्रताप को उत्तराधिकार दिलाने में भी चुंडावतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. देवगढ़ के रावत सांगा (चुंडावत) ने रावत चुंडा के पौत्र रावत कृष्ण दास से कहा था कि महाराणा उदय सिंह के उत्तराधिकार के निर्णय के लिए आप की सहमति से लेना था. क्योंकि आप चुंडा के पुत्र हैं. अत: कृष्ण दास के विरोध के कारण जगमाल का पदच्युत किया गया और प्रताप को मेवाड़ की गद्दी सौंपी गई. उन्होंने बताया कि यदि यह सुधार नहीं होता तो महाराणा प्रताप जैसा ऐतिहासिक विराट व्यक्तित्व शासक के रूप में प्राप्त नहीं होता. अतः चुंडावत हमेशा ही देश के हित में कार्य करते रहे हैं. प्रताप कालीन इतिहास इसका साक्षी है.
उन्होंने बताया कि इतना ही नहीं राणा लाखा के बड़े पुत्र होकर भी पितृ सेवा में रावत चुंडा ने अपने राज का त्याग कर दिया था और मारवाड़ के रणमल के षड्यंत्र के कारण मेवाड़ से निष्कासित जीवन जीते रहे. अपने भाई मोकल को सुरक्षित करने के लिए रावत चुंडा वीमाता हनसाबाई के बुलावे पर मेवाड़ को संकट से बचाया. मारवाड़ के शासक रणमल का मेवाड़ पर अधिकार करने का सपना भी चुंडावत के लड़ाकों के कारण ही नहीं पूरा हो सका था. रणमल अपने सगे भांजे और मेवाड़ के शासक मोकल का राज्य हथियाना चाहता था लेकिन रावत चुंडा ने उसका सपना पूरा नहीं होने दिया.
यह मेवाड़ की गौरवशाली परंपरा रही है कि यहां पर पहले कौन वीरगति प्राप्त करेगा इसको लेकर प्रतिस्पर्धा चलती थी. अपने देश और कुल की रक्षा के लिए कौन अपने प्राणों की आहुति देगा इसे लेकर यहां के लड़ाकों का उत्साह अपने आप में शौर्य की गाथा कहता है. ऐसा विश्व के किसी अन्य इतिहास में देखना दुर्लभ है.