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गोल्ड अब तक होल्ड : जिस 56 किलो सोने से तौलना था शास्त्रीजी को...उसे अब सेंट्रल जीएसटी डिपार्टमेंट को सौंपने के आदेश

देश के प्रधानमंत्री रहे स्व. लाल बहादुर शास्त्री का चित्तौड़गढ़ आने का कार्यक्रम था. उनके स्वागत में उन्हें तोलने के लिए भेंट किया गया 56 किलो 857 ग्राम सोना अब सेंट्रल जीएसटी डिपार्टमेंट के सुपुर्द करने के आदेश दिए गए हैं.

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लाल बहादुर शास्त्री की अनसुनी कहानी
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Published : Feb 21, 2021, 3:17 PM IST

उदयपुर. सादगी की मूरत कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री के बारे में ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्हें चित्तौड़गढ़ में 56 किलो 857 ग्राम सोने से तौलने की पूरी तैयारी हो गई थी. इसके लिए स्थानीय भामाशाह गणपतलाल आंजना ने सोना प्रशासन को दान किया था.

लाल बहादुर शास्त्री की अनसुनी कहानी
चित्तौड़गढ़ में 56 किलो सोने से तौलना था शास्त्रीजी को, उस सोने पर आया फैसला

सोने से तौलने का यह कार्यक्रम नहीं हो सका क्योंकि शास्त्रीजी उस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके. लेकिन 56 किलो 857 ग्राम सोना प्रशासन ने अपने पास रख लिया. बात 1965 की है. सोना वापस लेने के लिए आंजना ने कानूनी लड़ाई लड़ी लेकिन सोना उन्हें फिर नहीं मिल सका.

उदयपुर के सीजीएम कोर्ट ने एक फैसले पर दायर निगरानी याचिका पर सेशन कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है. फैसला सुनाते हुए पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के स्वागत में उन्हें तौलने के लिए भेंट किया गया 56 किलो 857 ग्राम सोना अब सेंट्रल जीएसटी डिपार्टमेंट के सुपुर्द करने के आदेश दिए हैं.

सोने की कीमत वर्तमान में लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों रुपए में हो गई है. अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस सोने की कीमत वर्तमान में करीब 27 करोड रुपए है.

पढ़ें- थम गई रिश्तों की रेल: थार एक्सप्रेस न चलने से तीन दुल्हनों की विदाई अधर में, इंतजार में एक बनी मां

शास्त्रीजी तो कार्यक्रम में नहीं पहुंचे. लेकिन गणपत लाल आंजना ने शास्त्री जी के स्वागत में उनकी वजन के बराबर सोने में तौलने के लिए तत्कालीन कलक्टर को 56 किलो 857 ग्राम सोना भेंट पहले ही कर दिया था. शास्त्रीजी उस कार्यक्रम में नहीं आ पाए इसलिए सोना प्रशासन के पास ही रखा रह गया.

आंजना परिवार ने इस सोने को वापस लेने के लिए लंबी लड़ाई भी अदालत में लड़ी. लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी. यह सोना गोल्ड कंट्रोल ऑफिस के पास जमा रखने के आदेश दिए गए. बाद में 2009 में उदयपुर के सीजीएम कोर्ट में अर्जी लगा कर सोने को एक्साइज विभाग को सौंपने के लिए मांग की गई. सीजीएम कोर्ट से भी फैसला सोने को सीजीएसटी को सौंपने के आदेश हुए और उस पर दायर निगरानी याचिका ने सीजीएम कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.

उदयपुर. सादगी की मूरत कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री के बारे में ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्हें चित्तौड़गढ़ में 56 किलो 857 ग्राम सोने से तौलने की पूरी तैयारी हो गई थी. इसके लिए स्थानीय भामाशाह गणपतलाल आंजना ने सोना प्रशासन को दान किया था.

लाल बहादुर शास्त्री की अनसुनी कहानी
चित्तौड़गढ़ में 56 किलो सोने से तौलना था शास्त्रीजी को, उस सोने पर आया फैसला

सोने से तौलने का यह कार्यक्रम नहीं हो सका क्योंकि शास्त्रीजी उस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके. लेकिन 56 किलो 857 ग्राम सोना प्रशासन ने अपने पास रख लिया. बात 1965 की है. सोना वापस लेने के लिए आंजना ने कानूनी लड़ाई लड़ी लेकिन सोना उन्हें फिर नहीं मिल सका.

उदयपुर के सीजीएम कोर्ट ने एक फैसले पर दायर निगरानी याचिका पर सेशन कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है. फैसला सुनाते हुए पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के स्वागत में उन्हें तौलने के लिए भेंट किया गया 56 किलो 857 ग्राम सोना अब सेंट्रल जीएसटी डिपार्टमेंट के सुपुर्द करने के आदेश दिए हैं.

सोने की कीमत वर्तमान में लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों रुपए में हो गई है. अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस सोने की कीमत वर्तमान में करीब 27 करोड रुपए है.

पढ़ें- थम गई रिश्तों की रेल: थार एक्सप्रेस न चलने से तीन दुल्हनों की विदाई अधर में, इंतजार में एक बनी मां

शास्त्रीजी तो कार्यक्रम में नहीं पहुंचे. लेकिन गणपत लाल आंजना ने शास्त्री जी के स्वागत में उनकी वजन के बराबर सोने में तौलने के लिए तत्कालीन कलक्टर को 56 किलो 857 ग्राम सोना भेंट पहले ही कर दिया था. शास्त्रीजी उस कार्यक्रम में नहीं आ पाए इसलिए सोना प्रशासन के पास ही रखा रह गया.

आंजना परिवार ने इस सोने को वापस लेने के लिए लंबी लड़ाई भी अदालत में लड़ी. लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी. यह सोना गोल्ड कंट्रोल ऑफिस के पास जमा रखने के आदेश दिए गए. बाद में 2009 में उदयपुर के सीजीएम कोर्ट में अर्जी लगा कर सोने को एक्साइज विभाग को सौंपने के लिए मांग की गई. सीजीएम कोर्ट से भी फैसला सोने को सीजीएसटी को सौंपने के आदेश हुए और उस पर दायर निगरानी याचिका ने सीजीएम कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.

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