श्रीगंगानगर. इसे सरकारी तंत्र की नाकामी कहें या लापरवाही की हद, जिन नर्सिंग छात्र-छात्राओं के लिए सरकार ने करीब तीन करोड़ रुपए खर्च कर हॉस्टल बनवाया वह आज बदहाली का शिकार हो रहा है. पिछले एक साल से हॉस्टल बनकर तैयार है, लेकिन अब तक इसमें छात्रों को कमरे एलॉट नहीं किए गए हैं. हालात ये हैं कि साल भर से बंद पड़े छात्रावास में गंदगी के कारण जाले लग गए हैं.
हास्टल शुरू करने के लिए कई बार उठाई आवाज
ऐसा नहीं है कि जिला अस्पताल परिसर में करोड़ों की लागत से बने इस नर्सिंग जीएनएम छात्रावास को शुरू करवाने के लिए नर्सिंग विधार्थियों ने आवाज नहीं उठाई है बल्कि जिला अस्पताल पीएमओ से लेकर मुख्यमंत्री तक को ज्ञापन दिया जा चुका है. लेकिन परिणाम के नाम पर वही ढाक के तीन पात. विधार्थियों की माने तो राजकीय चिकित्सालय श्रीगंगानगर में जो जीएनएम विधार्थियों के लिए छात्रावास बना हुआ है उसमें बेड, कुर्सी, अलमारी, गद्दे-चादर भी विभाग की ओर से उपलब्ध करवाई गई है. बावजूद इसके छात्रावास छात्र-छात्राओं के लिए आवंटित नहीं किया जा रहा है.
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बाहर किराये पर रहने को मजबूर छात्र
छात्रावास शुरू नहीं होने से नर्सिंग की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राएं मोटी रकम देकर बाहर किराए पर रहने को मजबूर हैं. प्रशिक्षण केंद्र में अधिकांश छात्र-छात्राएं गंगानगर जिले से बाहर के रहने वाले हैं और छात्रावास होते हुए भी इन्हें कमरा किराए पर लेकर रहना पड़ता है. इसमें इनका काफी खर्चा आता है. ऐसे में राज्य सरकार की ओर से नर्सिंग छात्र छात्राओं के लिए बनाए गए छात्रावास खंडहर होते जा रहे हैं. लेकिन विभाग की लापरवाही के चलते इन विद्यार्थियों को हॉस्टल होते हुए भी इसकी सुविधा नहीं मिल पा रही है.
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जिला अस्पताल के परिसर में छात्रावास इसलिए बनाया गया था कि अस्पताल में ट्रेनिंग करने वाले विद्यार्थियों को रहने के लिए बाहर कहीं भटकना न पड़े. नर्सिंग स्कूल प्रिंसिपल राजेंद्र कुमार की असंवेदनशीलता के चलते नर्सिंग विद्यार्थियों की कक्षाएं जिला अस्पताल के ऊपरी भवन में ही चलाई जा रही हैं, लेकिन हॉस्टल शुरू नहीं होने से इन विद्यार्थियों को ना केवल रोजाना आने-जाने में दिक्कत होती है बल्कि जिला अस्पताल से 7 किलोमीटर दूर शहर के भीतरी एरिया में मकान किराए पर लेकर रहने से खर्च अधिक पड़ रहा है.
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बजट के अभाव में स्टाफ नहीं हो पा रहा
नर्सिंग विद्यार्थियों के लिए बनाए गए इस छात्रावास को शुरू नहीं करने के पीछे जिला अस्पताल प्रशासन मैन पावर की कमी बता रहा है. प्रिंसिपल का कहना है कि हॉस्टल के लिए सुरक्षा गार्ड, सफाई कर्मी और खर्च के लिए बजट नहीं होने से परेशानी हो रही है, जिसके लिए प्रयास किया जा रहा है. वहीं विद्यार्थी अस्पताल से बाहर किराए पर कमरा लेकर रहने से आर्थिक बोझ तले दबते जा रहे हैं. छात्रावास में नर्सिंग की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी कहते हैं कि हॉस्टल शुरू होने से उन्हें काफी राहत मिलेगी. फिलहाल हॉस्टल पर ताले लगे होने से छात्राएं पीजी में रहने को मजबूर हैं तो वहीं छात्र किराए पर रूम लेकर रहने को मजबूर हैं. विद्यार्थी कहते हैं कि छात्रावास शुरू करवाने के लिए कई बार ज्ञापन दिया गया है लेकिन इसे शुरू नहीं किया गया.
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हालांकि आश्वासन हर बार दिया जाता है कि जल्द ही छात्रावास शुरू करने का दिया जाता है. कुछ विद्यार्थी कहते हैं कि रोजाना कक्षाएं लगाने के लिए वे हॉस्पिटल जाते हैं जिसके चलते ऑटो का किराया भी महंगा पड़ता है. हॉस्टल शुरू होने से ना केवल खर्चा बचेगा बल्कि समय से कक्षाओं में पहुंचना भी उनके लिए आसान होगा.
नर्सिंग ट्यूटर मंजू पंवार बताती हैं कि नर्सिंग हॉस्टल शुरू करने के लिए काफी बार प्रयास किया गया लेकिन कोरोना के दौरान कोविड-19 सेन्टर बनाए जाने से यह चालू नहीं किया जा सका. हालांकि हॉस्टल चालू कंडीशन में है. पहले यहां कक्षाएं लगाई जाती थीं. मंजू कहती हैं कि होस्टल शुरू होने से ना केवल विद्यार्थियों को आसानी होगी बल्कि छात्र-छात्राएं उनकी नजर में भी रहेंगे. ऐसे में जितना जल्दी हो सके नर्सिंग हॉस्टल शुरू हो जाए तो बेहतर रहेगा.