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कारगिल विजय दिवस : शेखावाटी के दिलेरों से दहला था दुश्मन देश, वीरांगनाएं बोलीं- अब चीन पर पड़ेंगे भारी - कारगिल विजय दिवस के 21 साल

शेखावाटी के शौर्य से पूरा देश वाकिफ है. यहां के रणबांकुर हमेशा से देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा रखते हैं. चाहे वो युद्ध का मैदान हो या देश के अंदर दुश्मनों से जंग. यहां के बेटों ने हर मोर्चे पर अपनी वीरता का लोहा मनवाया है. ऐसा ही कुछ ऑपरेशन विजय के दौरान देखने को मिला था, जब सीकर के जवानों ने जान की परवाह किये बिना देश की रक्षा के लिए खुशी-खुशी शहादत को गले लगाया था. देखिये ईटीवी भारत पर कारगिल विजय दिवस के शहीदों की शौर्य गाथा...

सीकर न्यूज, राजस्थान न्यूज, हिंदी न्यूज, कारगिल विजय दिवस
कारगिल विजय दिवस के 21 साल
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Published : Jul 24, 2020, 7:57 PM IST

सीकर. कारगिल विजय दिवस यानी 26 जुलाई. यह वो दिन था जब तीन महीने तक चले युद्ध के बाद भारत की सेना ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर किया था. देश की आन, बान और शान की रक्षा के लिए हमेशा आगे रहने वाले शेखावाटी के रणबांकुरों का इस विजय में सबसे बड़ा योगदान रहा है.

कारगिल विजय दिवस के 21 साल

शेखावाटी की धरती को शहीदों की धरती कहा जाता है और कारगिल में हुए पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध में भी शेखावाटी के जवानों ने देश के लिए कुर्बानी दी. आज यहां जिले के गांव-गांव में शहीदों की गाथाएं सुनाई जाती हैं. सीकर जिले की बात की जाए तो करगिल युद्ध में यहां के 6 जवान शहीद हुए थे. इनमें बनवारीलाल बगड़िया, दयाचंद जाखड़, विनोद नागा, श्योदानाराम, सीताराम कुमावत और गणपत सिंह का नाम शामिल है.

ये हैं सीकर के शहीदों की गाथाएं :

कड़ी यातनाएं सहने के बाद भी रखा देश का मान...

सीकर जिले के रहने वाले शहीद बनवारीलाल बगड़िया का फौज में जाना हमेशा से ही सपना था. 10वीं की पढ़ाई करने के बाद ही उनका चयन जाट रेजीमेंट में हुआ था. बॉर्डर पर तैनाती के दौरान ही दादी का निधन हो गया था. छुट्टी ना मिलने के कारण वे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए थे. कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो उनको कैप्टन सौरभ कालिया और चार जवानों के साथ जम्मू के बजरंग सेक्टर में तैनात किया गया.

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शहीद बनवारीलाल को आज भी याद करता है गांव

15 मई 1999 को लड़ते-लड़ते गोला बारूद खत्म हो गया था. जिसके बाद वे दुश्मनों की गिरफ्त में आ गए. एक महीने तो दुश्मन ने उनको कड़ी यातनाएं दी, लेकिन उनसे कुछ भी जानकारी हासिल नहीं कर पाए. दुश्मन ने उनकी आंखें निकाल ली थी, जीभ और नाक काट दिए थे. करीब एक महीने बाद उनका पार्थिव शरीर उनके गांव पहुंचा था. वीरांगना संतोष देवी कहती हैं कि उनके पति ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. आज भी अगर चीन से युद्ध होता है तो हमारी सेना ही जीत हासिल करेगी.

आज भी होता है शहीद विनोद के शौर्य का बखान...

सीकर के रामपुरा के वीर सूपत शहीद विनोद कुमार नागा 1994 में सेना में भर्ती हुए. विनोद कुमार के पिता भी सेना में रहकर देश की सेवा कर चुके हैं. विनोद नागा 30 मई को करगिल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे. गांव में शहीद का स्मारक बनाया गया है. भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव को लेकर शहीद के परिजनों का कहना है कि सरकार को फौज को खुली छूट देनी चाहिए, कब तक इस तरह से हमारे लाडले शहीद होते रहेंगे. परिजनों का कहना है कि जरूरत पड़ी तो वे स्वयं भी सेना में जाकर चीन व पाकिस्तान से युद्ध करने को तैयार हैं.

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5 साल के कार्यकाल में पाई विनोद ने शहादत

पाकिस्तानी घुसपैठियों के छुड़ाए छक्के...

सीकर के पलसाना के शहीद सीताराम कुमावत को बास्केटबॉल बहुत पसंद था. इसी की बदौलत सीताराम खेल कोटे से सेना में भर्ती हुए थे. तभी से देशभक्ति की भावना उनके दिल में थी. ऑपरेशन विजय के दौरान उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों के छक्के छुड़ा दिए थे. इसी दौरान मिसाइल लगने से वे वीरगति को प्राप्त हो गए. शहीद के गांव पलसाना में उनके नाम से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का नामकरण किया गया है और शहीद का स्मारक भी बनाया गया है.

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देश की आन, बान और शान की रक्षा के लिए हमेशा तैयार थे सीताराम

यह भी पढ़ें : कारगिल विजय दिवस: नागौर के वीर सपूत ने तोलोलिंग हाइट्स पर की थी चढ़ाई, सीने पर गोली खाने के बाद भी दुश्मनों के छुड़ा दिए थे छ्क्के

देश के ये बहादुर बेटे आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बहादुरी के किस्से आज भी हर किसी की जुबान पर हैं. देश हमेशा इन शूरवीरों को अपने दिल में बसा कर रखेगा, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया.

सीकर. कारगिल विजय दिवस यानी 26 जुलाई. यह वो दिन था जब तीन महीने तक चले युद्ध के बाद भारत की सेना ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर किया था. देश की आन, बान और शान की रक्षा के लिए हमेशा आगे रहने वाले शेखावाटी के रणबांकुरों का इस विजय में सबसे बड़ा योगदान रहा है.

कारगिल विजय दिवस के 21 साल

शेखावाटी की धरती को शहीदों की धरती कहा जाता है और कारगिल में हुए पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध में भी शेखावाटी के जवानों ने देश के लिए कुर्बानी दी. आज यहां जिले के गांव-गांव में शहीदों की गाथाएं सुनाई जाती हैं. सीकर जिले की बात की जाए तो करगिल युद्ध में यहां के 6 जवान शहीद हुए थे. इनमें बनवारीलाल बगड़िया, दयाचंद जाखड़, विनोद नागा, श्योदानाराम, सीताराम कुमावत और गणपत सिंह का नाम शामिल है.

ये हैं सीकर के शहीदों की गाथाएं :

कड़ी यातनाएं सहने के बाद भी रखा देश का मान...

सीकर जिले के रहने वाले शहीद बनवारीलाल बगड़िया का फौज में जाना हमेशा से ही सपना था. 10वीं की पढ़ाई करने के बाद ही उनका चयन जाट रेजीमेंट में हुआ था. बॉर्डर पर तैनाती के दौरान ही दादी का निधन हो गया था. छुट्टी ना मिलने के कारण वे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए थे. कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो उनको कैप्टन सौरभ कालिया और चार जवानों के साथ जम्मू के बजरंग सेक्टर में तैनात किया गया.

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शहीद बनवारीलाल को आज भी याद करता है गांव

15 मई 1999 को लड़ते-लड़ते गोला बारूद खत्म हो गया था. जिसके बाद वे दुश्मनों की गिरफ्त में आ गए. एक महीने तो दुश्मन ने उनको कड़ी यातनाएं दी, लेकिन उनसे कुछ भी जानकारी हासिल नहीं कर पाए. दुश्मन ने उनकी आंखें निकाल ली थी, जीभ और नाक काट दिए थे. करीब एक महीने बाद उनका पार्थिव शरीर उनके गांव पहुंचा था. वीरांगना संतोष देवी कहती हैं कि उनके पति ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. आज भी अगर चीन से युद्ध होता है तो हमारी सेना ही जीत हासिल करेगी.

आज भी होता है शहीद विनोद के शौर्य का बखान...

सीकर के रामपुरा के वीर सूपत शहीद विनोद कुमार नागा 1994 में सेना में भर्ती हुए. विनोद कुमार के पिता भी सेना में रहकर देश की सेवा कर चुके हैं. विनोद नागा 30 मई को करगिल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे. गांव में शहीद का स्मारक बनाया गया है. भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव को लेकर शहीद के परिजनों का कहना है कि सरकार को फौज को खुली छूट देनी चाहिए, कब तक इस तरह से हमारे लाडले शहीद होते रहेंगे. परिजनों का कहना है कि जरूरत पड़ी तो वे स्वयं भी सेना में जाकर चीन व पाकिस्तान से युद्ध करने को तैयार हैं.

सीकर न्यूज, राजस्थान न्यूज, हिंदी न्यूज, कारगिल विजय दिवस
5 साल के कार्यकाल में पाई विनोद ने शहादत

पाकिस्तानी घुसपैठियों के छुड़ाए छक्के...

सीकर के पलसाना के शहीद सीताराम कुमावत को बास्केटबॉल बहुत पसंद था. इसी की बदौलत सीताराम खेल कोटे से सेना में भर्ती हुए थे. तभी से देशभक्ति की भावना उनके दिल में थी. ऑपरेशन विजय के दौरान उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों के छक्के छुड़ा दिए थे. इसी दौरान मिसाइल लगने से वे वीरगति को प्राप्त हो गए. शहीद के गांव पलसाना में उनके नाम से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का नामकरण किया गया है और शहीद का स्मारक भी बनाया गया है.

सीकर न्यूज, राजस्थान न्यूज, हिंदी न्यूज, कारगिल विजय दिवस
देश की आन, बान और शान की रक्षा के लिए हमेशा तैयार थे सीताराम

यह भी पढ़ें : कारगिल विजय दिवस: नागौर के वीर सपूत ने तोलोलिंग हाइट्स पर की थी चढ़ाई, सीने पर गोली खाने के बाद भी दुश्मनों के छुड़ा दिए थे छ्क्के

देश के ये बहादुर बेटे आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बहादुरी के किस्से आज भी हर किसी की जुबान पर हैं. देश हमेशा इन शूरवीरों को अपने दिल में बसा कर रखेगा, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया.

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