सीकर. खाटूश्यामजी फाल्गुन मेला राजस्थान के सबसे बड़े मेलों में एक है. हर वर्ष मेले में देश-विदेशों से लाखों श्रद्धालु बाबा श्याम के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं. पूरी खाटू नगरी श्याम रंग में रंगी नजर आती है, लेकिन इस बार खाटूश्यामजी फाल्गुन मेले पर कोरोना का साया मंडरा रहा है. 350 साल में पहला मौका है, जब खाटूश्यामजी में बाबा श्याम का वार्षिक लक्खी मेला इस बार नहीं भरेगा. मेला निरस्त होने से ना सिर्फ भक्तों, बल्कि स्थानीय दुकानदारों को भी बड़ा झटका लगा है. देखें ये खास रिपोर्ट...
करोड़ों की अर्थव्यवस्था पर प्रहार...
फाल्गुन मास में करीब 10 दिन तक चलने वाले इस मेले को पहली बार कोरोना वायरस की वजह से निरस्त करना पड़ा है. श्याम मंदिर कमेटी और जिला प्रशासन ने मेले को निरस्त करने का फैसला कर लिया, लेकिन इसके बाद भी श्याम भक्त, खाटू के दुकानदार और कमेटी के कई लोग भी यह चाहते हैं कि मेले का आयोजन होना चाहिए. क्योंकि, खाटू नगरी की पूरी अर्थव्यवस्था इसी मेले पर टिकी होती है. इसके साथ-साथ हजारों परिवार रहते हैं, जिनके जात जडूले केवल फाल्गुन मास की एकादशी द्वादशी को होते हैं.
लाखों श्रद्धालुओं को बड़ा झटका...
हर साल खाटूश्यामजी के फाल्गुन मेले में 30 लाख से ज्यादा श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं. यह मेला पूरे 10 दिन तक चलता है. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. इस बार कोरोना बीमारी की वजह से मेले को निरस्त कर दिया है, इसके साथ-साथ यह भी तय किया गया है कि फाल्गुन मास में 14 मार्च से लेकर 29 मार्च तक मंदिर भी बंद रहेगा. यानी कि इस दौरान श्रद्धालु दर्शन नहीं कर सकेंगे. पहले से ही खाटू नगरी का पूरा कारोबार लॉकडाउन और उसके बाद के हालातों की वजह से प्रभावित है. अब मेला निरस्त करने के आदेशों के बाद तो स्थानीय लोगों और दुकानदारों को बड़ा झटका लगा है. स्थानीय लोग भी पूरे साल मेले का इंतजार करते हैं और मेले के दौरान कई तरह के कारोबार चलते रहते हैं.
मेले पर 6 करोड़ का खर्चा...
मेला निरस्त होने की वजह से श्याम मंदिर कमेटी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि मेले का पूरा खर्चा कमेटी को उठाना पड़ता है. हालांकि, मेले के दौरान मंच को आमदनी अच्छी होती है. लेकिन, खर्चा भी बहुत ज्यादा होता है. सूत्रों की माने तो मेले के दौरान मंदिर कमेटी के 5 से 6 करोड़ रुपए खर्च होते हैं. मेले के दौरान इससे ज्यादा आमदनी हो जाती है, लेकिन हर महीने की एकादशी को मेले की बजाय ज्यादा आमदनी होती है. इस वजह से कमेटी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा.
दुकानदारों को करोड़ों का नुकसान...
मेले के दौरान प्रसाद बेचने की 100 से ज्यादा दुकानें लगती है और हर दुकानदार करीब 10 लाख का कारोबार करता है. इसके साथ-साथ सैकड़ों जगह फुटपाथ पर भी लोग प्रसाद बेचते हैं, वह भी अच्छी आमदनी करते हैं. खाटू में 50 से ज्यादा निजी पार्किंग चलती है और केवल मेले के दौरान ही दिन में वाहन खड़े होते हैं. बाकी दिनों में तो सरकारी पार्किंग भी पूरी नहीं भरती है. कई लोग पार्किंग किराए पर लेते हैं और मेले के दौरान ही उनको आय होती है, लेकिन इस बार उनका कारोबार पूरी तरह से बर्बाद हो गया. इसके अलावा छोटे-मोटे दुकान लगाने वाले हजारों लोग मेले के दौरान आते हैं. धर्मशाला और होटलों में लोगों की भरमार रहती है, इसलिए यहां भी हजारों लोगों को रोजगार मिलता है.
जात जडूला के लिए भी करना पड़ेगा इंतजार...
बहुत से ऐसे परिवार हैं जिनकी जात और जडूला का कार्यक्रम केवल फाल्गुन मास की एकादशी और द्वादशी को होता है. यह लोग 1 साल तक इसका इंतजार करते हैं, लेकिन इस बार मंदिर बंद रहेगा और दर्शन भी नहीं कर पाएंगे. मेला निरस्त करने के साथ-साथ मंदिर को 15 दिन तक बंद रखने का फैसला इसी वजह से किया गया है कि इस दौरान भीड़ नहीं हो.