नागौर. रोशनी का पर्व दिवाली शनिवार को देशभर में श्रद्धा, उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. दिवाली के मौके पर घर-घर में धन की देवी माता लक्ष्मी का पूजन करने की परंपरा है. नागौर में महालक्ष्मी माता का एक प्राचीन मंदिर है. यहां करीब 400 साल पुरानी लक्ष्मी माता की प्रतिमा विराजमान है. बताया जाता है कि नागौर में ब्रह्मपुरी मोहल्ले की स्थापना के साथ ही इस मंदिर की स्थापना हुई थी. अब भी यह मंदिर उसी प्राचीन स्वरूप में है. यहां प्रथम पूज्य भगवान गणेश, माता लक्ष्मी और भगवान बजरंगबली के साथ ही गरुड़ की प्रतिमा भी है. गरुड़ को भगवान विष्णु का वाहन माना जाता है और माता लक्ष्मी की पूजा भगवान विष्णु की अर्धांगिनी के रूप में होती है.
मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा करने वाले भक्तों से माता लक्ष्मी हमेशा प्रसन्न रहती हैं. वैसे तो यहां सालभर श्रद्धालु दर्शन करने और अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना लेकर आते हैं. लेकिन, अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी और दीपावली को यहां विशेष आयोजन होते हैं. मंदिर के पुजारी अरविंद दवे बताते हैं कि नागौर का महालक्ष्मी माता मंदिर करीब 400 साल पुराना है. यहां माता लक्ष्मी की प्राचीन प्रतिमा विराजित है. कमल के पुष्प पर विराजमान माता लक्ष्मी की चार हाथ वाली इस दुर्लभ प्रतिमा के दो हाथ में कलश हैं. वहीं, एक हाथ से धन की वर्षा और दूसरे हाथ से भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा है. प्रतिमा के दोनों ओर दो हाथियों की प्रतिमा है, जो निरंतर माता महालक्ष्मी का अभिषेक करते प्रतीत होते हैं.
बताया जाता है कि नागौर में ब्रह्मपुरी मोहल्ले की स्थापना के साथ ही इस मंदिर की भी स्थापना हुई थी. इस मोहल्ले में अधिकतर घर श्रीमाली ब्राह्मणों के हैं, जो माता महालक्ष्मी की कुलदेवी के रूप में पूजा करते हैं. पुजारी अरविंद दवे बताते हैं कि उनका परिवार कई पीढ़ियों से मंदिर की सेवा-पूजा करता आ रहा है. यहां हर दिन सुबह शाम पूजा और आरती होती है. इसके अलावा सालभर में कई अन्य आयोजन होते हैं. वो बताते हैं कि श्राद्ध पक्ष में अश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मंदिर का प्राकट्योत्सव हर साल धूमधाम से मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन इस मंदिर के गर्भगृह में माता लक्ष्मी की प्रतिमा की विधि विधान के साथ प्राण प्रतिष्ठा हुई थी. इसलिए इस दिन का खास महत्व है. इस दिन वैदिक मंत्रोच्चार के साथ माता लक्ष्मी का अभिषेक और पूजा की जाती है.
इसके अलावा दिवाली के मौके पर भी मंदिर में खास आयोजन होते हैं. पुजारी अरविंद दवे का कहना है कि दिवाली पर दिनभर श्रद्धालु माता महालक्ष्मी के दर्शन के लिए आते हैं. शाम को मंदिर में दीपदान का कार्यक्रम होता है. इसके बाद मुख्य पूजा अर्धरात्रि के बाद सिंह लग्न में की जाती है. उनका कहना है कि दीपावली पर आधी रात के बाद माता महालक्ष्मी का वैदिक मंत्रोच्चार के साथ अभिषेक किया जाएगा और विशेष पूजा की जाएगी. इस मंदिर में दिवाली के बाद अष्टमी को अन्नकूट का आयोजन होता है, जिसमें माता लक्ष्मी को 56 तरह के व्यंजनों का भोग लगाकर भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है.
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हर साल अश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी, दीपावली और अन्नकूट के मौके पर मंदिर में भारी भीड़ उमड़ती है, लेकिन इस साल कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए मंदिर का प्राकट्योत्सव सादगीपूर्वक मनाया गया था. मंदिर के पुजारी अरविंद दवे बताते हैं कि दिवाली पर भी महामारी कोविड संबंधी गाइडलाइंस की पालना सुनिश्चित करवाने के इंतजाम किए गए हैं. मास्क पहनकर ही भक्तों को मंदिर में प्रवेश दिया जा रहा है. इसके अलावा शारीरिक दूरी संबंधी नियमों की पालना को लेकर भी खास इंतजाम किए गए हैं.