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Special: दिवाली पर गृहणियां मांडणे और रंगोली से सजाती हैं व्यापारिक प्रतिष्ठान, डीडवाना की है वर्षों पुरानी परंंपरा

दिवाली का त्योहार आज पूरे देश में बड़े हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. ऐसे में नागौर के डीडवाना में दिवाली पर यहां गृहलक्ष्मी यानी गृहणियां व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर मांडणे और रंगोली सजाती हैं. डीडवाना से शुरू हुई यह परंपरा आज कोलकाता और इंदौर तक भी निभाई जा रही है. जहां बड़ी संख्या में डीडवाना के प्रवासी रहते हैं. देखिए यह खास रिपोर्ट

नागौर डीडवाना की दिवाली परंपरा, Diwali tradition of Nagaur Didwana
डीडवाना में गृहलक्ष्मी बनाती है मांडणे
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Published : Nov 14, 2020, 6:12 PM IST

नागौर. अमावस की रात के अंधकार पर दीपक की ज्योति की विजय के रूप में रोशनी का पर्व दिवाली आज देशभर में श्रद्धा, उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. हर त्योहार पर देश के अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग परंपराएं हैं. राजस्थान को परंपराओं और रीति-रिवाजों का प्रदेश भी कहा जाता है. यहां कई परंपराएं ऐसी हैं, जो जनमानस में इतनी गहराई तक बैठ चुकी हैं कि आज उन परंपराओं और रिवाजों के बिना किसी त्योहार विशेष की कल्पना भी बेमानी सी लगती है. दिवाली पर भी ऐसी कई परंपराएं और रिवाज हैं.

डीडवाना में गृहलक्ष्मी बनाती है मांडणे

नागौर जिले के डीडवाना शहर में दीपावली पर गृहलक्ष्मी यानी घर की महिलाओं द्वारा अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों को पारंपरिक मांडणे और रंगोली से सजाने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. घर की महिलाएं रूप चतुर्दशी (छोटी दिवाली) पर शाम के समय पारंपरिक परिधानों और गहनों से सज-धजकर अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान पर पहुंचती हैं. यहां लाल मिट्टी और सफेद चूने से पारंपरिक मांडणे बनाती हैं. इसके बाद घर की बुजुर्ग महिलाएं और पुरुष महिलाओं और युवतियों को शगुन की भेंट के रूप में रुपए, मिठाई और कपड़े देते हैं.

नागौर डीडवाना की दिवाली परंपरा, Diwali tradition of Nagaur Didwana
गृहिणियां व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर बनाती है रंगोली

पढ़ेंः SPECIAL : दिवाली की उमंग हैप्पी किट के संग...टीम निवाला ने गरीब और बेसहारों को दी 'खुशियां'

मान्यता है कि इससे धन की देवी माता लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और व्यापार में समृद्धि आती है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में घरों में मांडणे बनाने की परंपरा तो प्रदेश और देश के कई इलाकों में है. लेकिन व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर घर की महिलाओं द्वारा मांडने बनाने की यह परंपरा डीडवाना की अनूठी विरासत है.

यह परंपरा डीडवाना से शुरू हुई और यहां से देश के अलग-अलग हिस्सों में बसे लोग इस परंपरा को आज भी शिद्दत से निभा रहे हैं. कोलकाता और इंदौर में बसे डीडवाना के लोगों द्वारा वहां पर भी यह परंपरा उत्साह और उल्लास के साथ निभाई जा रही है.

नागौर डीडवाना की दिवाली परंपरा, Diwali tradition of Nagaur Didwana
महिलाएं बनाती है मांडणे

डीडवाना के बाजारों में ही बाजार में धनतेरस के साथ ही बाजार में सजावट का दौर शुरू हो जाता है. बाजार में आकर्षक रोशनी और सजावट की जाती है. मांडणे और रंगोली बनाने के बाद महिलाएं परिवार के साथ रोशनी का लुत्फ उठाते हैं और एक दूसरे को दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं. दुकानों पर ही एक-दूसरे की मान-मनुहार भी की जाती हैं.

डीडवाना की महिलाओं का कहना है कि उनकी शादी से पहले उनके पीहर में व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर मांडणे और रंगोली बनाने की परंपरा नहीं थी. शादी के बाद यहां आने पर उन्हें यहां की इस अनूठी परंपरा के बारे में घर की बड़ी महिलाओं से जानकारी मिली. इसके बाद वे भी हर साल इस परंपरा का हिस्सा बनती हैं. कई बुजुर्ग महिलाएं बताती हैं कि यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. वह खुद 40 साल से ज्यादा समय से इस परंपरा को निभा रही हैं और आने वाली नई पीढ़ी को भी इस परंपरा को निभाने के लिए प्रेरणा दे रही हैं.

नागौर डीडवाना की दिवाली परंपरा, Diwali tradition of Nagaur Didwana
गृहलक्ष्मी व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर बनाती है मांडणे

आज की नवयुवतियों का मानना है कि आज जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं. हर क्षेत्र में महिलाएं अपने हुनर और मेहनत के दम पर परचम लहरा रही हैं, लेकिन पुराने समय में महिलाओं का घर से बाहर कम ही निकलना होता था, लेकिन डीडवाना की इस परंपरा के बहाने महिलाएं अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर आती और अपनी पसंद की खरीदारी करती थी. कई युवतियों का कहना है कि यह परंपरा बताती है कि डीडवाना के उनके जो बुजुर्ग थे. महिलाओं को बराबरी का अधिकारों को लेकर उस समय भी उनकी सोच कितनी प्रगतिशील रही होगी.

पढ़ेंः जोधपुरः ग्राम पंचायत बड़ला नगर में नवनिर्मित कक्षों का विधायक ने किया लोकार्पण

धनतेरस से गोवर्धन पूजा तक मनाए जाने वाले पांच दिवसीय दीपोत्सव के तहत हर साल डीडवाना सहित नागौर जिले के बाजारों में आकर्षक सजावट की जाती है. लोग परिवार के साथ खरीदारी करने और रोशनी देखने निकलते हैं, लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण के खतरे का असर दीपावली पर भी साफ देखा जा रहा है. बाजार में भीड़भाड़ कम है. रोशनी और सजावट भी पहले की तुलना में कम है, लेकिन फिर भी व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर मांडणे और रंगोली बनाने की परंपरा निभाने के लिए महिलाएं समूह के रूप में पहुंची और इस परंपरा को निभाकर विरासत को सहेजने में अपना योगदान दिया.

नागौर. अमावस की रात के अंधकार पर दीपक की ज्योति की विजय के रूप में रोशनी का पर्व दिवाली आज देशभर में श्रद्धा, उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. हर त्योहार पर देश के अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग परंपराएं हैं. राजस्थान को परंपराओं और रीति-रिवाजों का प्रदेश भी कहा जाता है. यहां कई परंपराएं ऐसी हैं, जो जनमानस में इतनी गहराई तक बैठ चुकी हैं कि आज उन परंपराओं और रिवाजों के बिना किसी त्योहार विशेष की कल्पना भी बेमानी सी लगती है. दिवाली पर भी ऐसी कई परंपराएं और रिवाज हैं.

डीडवाना में गृहलक्ष्मी बनाती है मांडणे

नागौर जिले के डीडवाना शहर में दीपावली पर गृहलक्ष्मी यानी घर की महिलाओं द्वारा अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों को पारंपरिक मांडणे और रंगोली से सजाने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. घर की महिलाएं रूप चतुर्दशी (छोटी दिवाली) पर शाम के समय पारंपरिक परिधानों और गहनों से सज-धजकर अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान पर पहुंचती हैं. यहां लाल मिट्टी और सफेद चूने से पारंपरिक मांडणे बनाती हैं. इसके बाद घर की बुजुर्ग महिलाएं और पुरुष महिलाओं और युवतियों को शगुन की भेंट के रूप में रुपए, मिठाई और कपड़े देते हैं.

नागौर डीडवाना की दिवाली परंपरा, Diwali tradition of Nagaur Didwana
गृहिणियां व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर बनाती है रंगोली

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मान्यता है कि इससे धन की देवी माता लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और व्यापार में समृद्धि आती है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में घरों में मांडणे बनाने की परंपरा तो प्रदेश और देश के कई इलाकों में है. लेकिन व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर घर की महिलाओं द्वारा मांडने बनाने की यह परंपरा डीडवाना की अनूठी विरासत है.

यह परंपरा डीडवाना से शुरू हुई और यहां से देश के अलग-अलग हिस्सों में बसे लोग इस परंपरा को आज भी शिद्दत से निभा रहे हैं. कोलकाता और इंदौर में बसे डीडवाना के लोगों द्वारा वहां पर भी यह परंपरा उत्साह और उल्लास के साथ निभाई जा रही है.

नागौर डीडवाना की दिवाली परंपरा, Diwali tradition of Nagaur Didwana
महिलाएं बनाती है मांडणे

डीडवाना के बाजारों में ही बाजार में धनतेरस के साथ ही बाजार में सजावट का दौर शुरू हो जाता है. बाजार में आकर्षक रोशनी और सजावट की जाती है. मांडणे और रंगोली बनाने के बाद महिलाएं परिवार के साथ रोशनी का लुत्फ उठाते हैं और एक दूसरे को दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं. दुकानों पर ही एक-दूसरे की मान-मनुहार भी की जाती हैं.

डीडवाना की महिलाओं का कहना है कि उनकी शादी से पहले उनके पीहर में व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर मांडणे और रंगोली बनाने की परंपरा नहीं थी. शादी के बाद यहां आने पर उन्हें यहां की इस अनूठी परंपरा के बारे में घर की बड़ी महिलाओं से जानकारी मिली. इसके बाद वे भी हर साल इस परंपरा का हिस्सा बनती हैं. कई बुजुर्ग महिलाएं बताती हैं कि यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. वह खुद 40 साल से ज्यादा समय से इस परंपरा को निभा रही हैं और आने वाली नई पीढ़ी को भी इस परंपरा को निभाने के लिए प्रेरणा दे रही हैं.

नागौर डीडवाना की दिवाली परंपरा, Diwali tradition of Nagaur Didwana
गृहलक्ष्मी व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर बनाती है मांडणे

आज की नवयुवतियों का मानना है कि आज जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं. हर क्षेत्र में महिलाएं अपने हुनर और मेहनत के दम पर परचम लहरा रही हैं, लेकिन पुराने समय में महिलाओं का घर से बाहर कम ही निकलना होता था, लेकिन डीडवाना की इस परंपरा के बहाने महिलाएं अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर आती और अपनी पसंद की खरीदारी करती थी. कई युवतियों का कहना है कि यह परंपरा बताती है कि डीडवाना के उनके जो बुजुर्ग थे. महिलाओं को बराबरी का अधिकारों को लेकर उस समय भी उनकी सोच कितनी प्रगतिशील रही होगी.

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धनतेरस से गोवर्धन पूजा तक मनाए जाने वाले पांच दिवसीय दीपोत्सव के तहत हर साल डीडवाना सहित नागौर जिले के बाजारों में आकर्षक सजावट की जाती है. लोग परिवार के साथ खरीदारी करने और रोशनी देखने निकलते हैं, लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण के खतरे का असर दीपावली पर भी साफ देखा जा रहा है. बाजार में भीड़भाड़ कम है. रोशनी और सजावट भी पहले की तुलना में कम है, लेकिन फिर भी व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर मांडणे और रंगोली बनाने की परंपरा निभाने के लिए महिलाएं समूह के रूप में पहुंची और इस परंपरा को निभाकर विरासत को सहेजने में अपना योगदान दिया.

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