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नागौर पशु मेला: पशुओं के परिवहन के लिए 19 साल बाद बंधी मालगाड़ी चलने की आस, व्यापारियों ने फेरा पानी

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Published : Feb 4, 2020, 9:07 PM IST

नागौर के ख्याति प्राप्त श्री रामदेव पशु मेले में प्रदेश के बाहर से आने वाले पशु व्यापारियों के लिए इस बार 19 साल बाद मालगाड़ी चलने की उम्मीद बंधी थी. लेकिन इस बार भी यह आस पूरी नहीं हो पाई. इसका कारण यह बताया जा रहा है कि कई पशु व्यापारी ट्रेन से अपने पशु ले जाने के लिए राजी नहीं हुए है.

नागौर पशु मेला, Nagaur Animal Fair
पशुओं के परिवहन के लिए 19 साल बाद बंधी मालगाड़ी चलने की आस

नागौर. अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नागौर के श्री रामदेव पशु मेले से खरीदे गए पशुओं को ले जाने के लिए इस बार रेलवे ने स्वीकृति दे दी थी कि पशुओं के परिवहन के लिए इस बार मालगाड़ी चलेगी. लेकिन इस साल भी यह आस अधूरी ही रह गई. कारण यह बताया जा रहा है कि लाख कोशिश के बावजूद कई व्यापारी अपने पशुओं को मालगाड़ी के बजाए ट्रकों से अपने गांव तक ले जाना चाहते हैं.

पशुओं के परिवहन के लिए 19 साल बाद बंधी मालगाड़ी चलने की आस

ऐसे में मालगाड़ी के लिए जरूरी पशुओं की संख्या का आंकड़ा पूरा नहीं हो पाया और मालगाड़ी चलने की आस अधूरी ही रह गई. पशु मेले में खरीदे गए पशुओं के परिवहन के लिए आखिरी बार साल 2001 में मालगाड़ी चली थी.

पढ़ेंः नागौर के पशु मेले में सबसे ज्यादा ऊंट आए, सबसे महंगा बिका घोड़ा

दरअसल, इस बार मेले में 250 से अधिक बैलों की खरीदारी प्रदेश के बाहर से आने वाले व्यापारियों ने की है. इनमें से 200 से ज्यादा बैल उत्तरप्रदेश के व्यापारियों ने खरीदे हैं. पशुओं के परिवहन के लिए जो मालगाड़ी रेलवे की ओर से चलाई जाती है. उससे एक निर्धारित गंतव्य पर सभी पशुओं को उतारा जाता है. वहां से फिर पशु व्यापारियों को अपने-अपने गांवों तक अपने साधनों से ही पशुओं को ले जाना पड़ता है.

इस साल जिन पशु व्यापारियों ने सबसे ज्यादा बैल खरीदे हैं. वह अधिकांश मेरठ के आसपास के हैं. इसलिए पशुपालन विभाग, जिला प्रशासन और सांसद हनुमान बेनीवाल के आग्रह पर रेलवे ने नागौर से मेरठ तक 42 बोगी की मालगाड़ी चलाने की स्वीकृति दे दी थी, लेकिन कई पशु व्यापारियों ने अपने पशुओं को रेल के बजाय सड़क मार्ग से गंतव्य तक ले जाने में ज्यादा रुचि दिखाई. इसके चलते मालगाड़ी चलाने के लिए न्यूनतम पशुओं की संख्या का आंकड़ा पूरा नहीं हो पाया.

पढ़ेंः पाली: असामाजिक तत्वों ने बाबा रामदेव की प्रतिमा को किया खण्डित, श्रद्धलुओं ने किया हंगामा

रेल में पशुओं के परिवहन का सबसे बड़ा फायदा पशु व्यापारियों को यह होता कि उन्हें रास्ते में किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती. यदि इस साल मालगाड़ी चल जाती तो अगले साल नागौर के पशु मेले में आने वाले व्यापारियों की संख्या में इजाफा होने की उम्मीद भी बंधती, क्योंकि सड़क के रास्ते पशुओं के परिवहन में आने वाली दिक्कतों की वजह से कई पशु व्यापारियों ने इस मेले से मुंह मोड़ लिया है. ऐसे में इस बार भी पशुओं के परिवहन के लिए मालगाड़ी चलने की आस पूरी नहीं हो पाई है.

नागौर. अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नागौर के श्री रामदेव पशु मेले से खरीदे गए पशुओं को ले जाने के लिए इस बार रेलवे ने स्वीकृति दे दी थी कि पशुओं के परिवहन के लिए इस बार मालगाड़ी चलेगी. लेकिन इस साल भी यह आस अधूरी ही रह गई. कारण यह बताया जा रहा है कि लाख कोशिश के बावजूद कई व्यापारी अपने पशुओं को मालगाड़ी के बजाए ट्रकों से अपने गांव तक ले जाना चाहते हैं.

पशुओं के परिवहन के लिए 19 साल बाद बंधी मालगाड़ी चलने की आस

ऐसे में मालगाड़ी के लिए जरूरी पशुओं की संख्या का आंकड़ा पूरा नहीं हो पाया और मालगाड़ी चलने की आस अधूरी ही रह गई. पशु मेले में खरीदे गए पशुओं के परिवहन के लिए आखिरी बार साल 2001 में मालगाड़ी चली थी.

पढ़ेंः नागौर के पशु मेले में सबसे ज्यादा ऊंट आए, सबसे महंगा बिका घोड़ा

दरअसल, इस बार मेले में 250 से अधिक बैलों की खरीदारी प्रदेश के बाहर से आने वाले व्यापारियों ने की है. इनमें से 200 से ज्यादा बैल उत्तरप्रदेश के व्यापारियों ने खरीदे हैं. पशुओं के परिवहन के लिए जो मालगाड़ी रेलवे की ओर से चलाई जाती है. उससे एक निर्धारित गंतव्य पर सभी पशुओं को उतारा जाता है. वहां से फिर पशु व्यापारियों को अपने-अपने गांवों तक अपने साधनों से ही पशुओं को ले जाना पड़ता है.

इस साल जिन पशु व्यापारियों ने सबसे ज्यादा बैल खरीदे हैं. वह अधिकांश मेरठ के आसपास के हैं. इसलिए पशुपालन विभाग, जिला प्रशासन और सांसद हनुमान बेनीवाल के आग्रह पर रेलवे ने नागौर से मेरठ तक 42 बोगी की मालगाड़ी चलाने की स्वीकृति दे दी थी, लेकिन कई पशु व्यापारियों ने अपने पशुओं को रेल के बजाय सड़क मार्ग से गंतव्य तक ले जाने में ज्यादा रुचि दिखाई. इसके चलते मालगाड़ी चलाने के लिए न्यूनतम पशुओं की संख्या का आंकड़ा पूरा नहीं हो पाया.

पढ़ेंः पाली: असामाजिक तत्वों ने बाबा रामदेव की प्रतिमा को किया खण्डित, श्रद्धलुओं ने किया हंगामा

रेल में पशुओं के परिवहन का सबसे बड़ा फायदा पशु व्यापारियों को यह होता कि उन्हें रास्ते में किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती. यदि इस साल मालगाड़ी चल जाती तो अगले साल नागौर के पशु मेले में आने वाले व्यापारियों की संख्या में इजाफा होने की उम्मीद भी बंधती, क्योंकि सड़क के रास्ते पशुओं के परिवहन में आने वाली दिक्कतों की वजह से कई पशु व्यापारियों ने इस मेले से मुंह मोड़ लिया है. ऐसे में इस बार भी पशुओं के परिवहन के लिए मालगाड़ी चलने की आस पूरी नहीं हो पाई है.

Intro:नागौर के ख्याति प्राप्त श्री रामदेव पशु मेले में प्रदेश के बाहर से आने वाले पशु व्यापारियों के लिए इस बार 19 साल बाद मालगाड़ी चलने की उम्मीद बंधी थी। लेकिन इस बार भी यह आस पूरी नहीं हो पाई। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि कई पशु व्यापारी ट्रैन से अपने पशु ले जाने के लिए राजी नहीं हुए।


Body:नागौर. अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नागौर के श्री रामदेव पशु मेले से खरीदे गए पशु ले जाने के लिए इस बार रेलवे ने स्वीकृति दे दी थी। इससे यह आस बंधी थी कि करीब 19 साल बाद एक बार फिर पशुओं के परिवहन के लिए इन बार मालगाड़ी चलेगी। लेकिन इस साल भी यह आस अधूरी ही रह गई। कारण यह बताया जा रहा है कि लाख कोशिश के बावजूद कई व्यापारी अपने पशुओं को मालगाड़ी के बजाए ट्रकों से अपने गांव तक ले जाना चाहते हैं। ऐसे में मालगाड़ी के लिए जरूरी पशुओं की संख्या का आंकड़ा पूरा नहीं हो पाया और मालगाड़ी चलने की आस अधूरी ही रह गई। पशु मेले में खरीदे गए पशुओं के परिवहन के लिए आखिरी बार साल 2001 में मालगाड़ी चली थी।
दरअसल, इस बार मेले में 250 से अधिक बैलों की खरीदारी प्रदेश के बाहर से आने वाले व्यापारियों ने की है। इनमें से 200 से ज्यादा बैल उत्तरप्रदेश के व्यापारियों ने खरीदे हैं। पशुओं के परिवहन के लिए जो मालगाड़ी रेलवे की ओर से चलाई जाती है। उससे एक निर्धारित गंतव्य पर सभी पशुओं को उतारा जाता है। वहां से फिर पशु व्यापारियों को अपने-अपने गांवों तक अपने साधनों से ही पशुओं को ले जाना पड़ता है।
इस साल जिन पशु व्यापारियों ने सबसे ज्यादा बैल खरीदे हैं। वे अधिकांश मेरठ के आसपास के हैं। इसलिए पशुपालन विभाग, जिला प्रशासन और सांसद हनुमान बेनीवाल के आग्रह पर रेलवे ने नागौर से मेरठ तक 42 बोगी की मालगाड़ी चलाने की स्वीकृति दे दी थी। लेकिन कई पशु व्यापारियों ने अपने पशुओं को रेल के बजाय सड़क मार्ग से गंतव्य तक ले जाने में ज्यादा रुचि दिखाई। इसके चलते मालगाड़ी चलाने के लिए न्यूनतम पशुओं की संख्या का आंकड़ा पूरा नहीं हो पाया।


Conclusion:रेल में पशुओं के परिवहन का सबसे बड़ा फायदा पशु व्यापारियों को यह होता कि उन्हें रास्ते में किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती। यदि इस साल मालगाड़ी चल जाती तो अगले साल नागौर के पशु मेले में आने वाले व्यापारियों की संख्या में इजाफा होने की उम्मीद भी बंधती। क्योंकि सड़क के रास्ते पशुओं के परिवहन में आने वाली दिक्कतों की वजह से कई पशु व्यापारियों ने इस मेले से मुंह मोड़ लिया है। ऐसे में इस बार भी पशुओं के परिवहन के लिए मालगाड़ी चलने की आस पूरी नहीं हो पाई है।
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बाईट 01- नारायण बेनीवाल, विधायक, खींवसर।
बाईट 02- डॉ. सीआर मेहरड़ा, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग, नागौर।
बाईट 03- नारायण बेनीवाल, विधायक, खींवसर।
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