नागौर. अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नागौर के श्री रामदेव पशु मेले से खरीदे गए पशुओं को ले जाने के लिए इस बार रेलवे ने स्वीकृति दे दी थी कि पशुओं के परिवहन के लिए इस बार मालगाड़ी चलेगी. लेकिन इस साल भी यह आस अधूरी ही रह गई. कारण यह बताया जा रहा है कि लाख कोशिश के बावजूद कई व्यापारी अपने पशुओं को मालगाड़ी के बजाए ट्रकों से अपने गांव तक ले जाना चाहते हैं.
ऐसे में मालगाड़ी के लिए जरूरी पशुओं की संख्या का आंकड़ा पूरा नहीं हो पाया और मालगाड़ी चलने की आस अधूरी ही रह गई. पशु मेले में खरीदे गए पशुओं के परिवहन के लिए आखिरी बार साल 2001 में मालगाड़ी चली थी.
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दरअसल, इस बार मेले में 250 से अधिक बैलों की खरीदारी प्रदेश के बाहर से आने वाले व्यापारियों ने की है. इनमें से 200 से ज्यादा बैल उत्तरप्रदेश के व्यापारियों ने खरीदे हैं. पशुओं के परिवहन के लिए जो मालगाड़ी रेलवे की ओर से चलाई जाती है. उससे एक निर्धारित गंतव्य पर सभी पशुओं को उतारा जाता है. वहां से फिर पशु व्यापारियों को अपने-अपने गांवों तक अपने साधनों से ही पशुओं को ले जाना पड़ता है.
इस साल जिन पशु व्यापारियों ने सबसे ज्यादा बैल खरीदे हैं. वह अधिकांश मेरठ के आसपास के हैं. इसलिए पशुपालन विभाग, जिला प्रशासन और सांसद हनुमान बेनीवाल के आग्रह पर रेलवे ने नागौर से मेरठ तक 42 बोगी की मालगाड़ी चलाने की स्वीकृति दे दी थी, लेकिन कई पशु व्यापारियों ने अपने पशुओं को रेल के बजाय सड़क मार्ग से गंतव्य तक ले जाने में ज्यादा रुचि दिखाई. इसके चलते मालगाड़ी चलाने के लिए न्यूनतम पशुओं की संख्या का आंकड़ा पूरा नहीं हो पाया.
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रेल में पशुओं के परिवहन का सबसे बड़ा फायदा पशु व्यापारियों को यह होता कि उन्हें रास्ते में किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती. यदि इस साल मालगाड़ी चल जाती तो अगले साल नागौर के पशु मेले में आने वाले व्यापारियों की संख्या में इजाफा होने की उम्मीद भी बंधती, क्योंकि सड़क के रास्ते पशुओं के परिवहन में आने वाली दिक्कतों की वजह से कई पशु व्यापारियों ने इस मेले से मुंह मोड़ लिया है. ऐसे में इस बार भी पशुओं के परिवहन के लिए मालगाड़ी चलने की आस पूरी नहीं हो पाई है.