नागौर. संकट के समय में देवी-देवताओं की स्तुति के लिए संस्कृत भाषा में लिखे गए श्लोक हमने पढ़े और सुने हैं. इन श्लोक के समूह को कवच कहते हैं और मान्यता है कि कवच का पाठ करने से बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है. लेकिन क्या आपने कभी किसी संक्रमण कवच के बारे में सुना है. अगर नहीं सुना तो आज हम आपको ले चलते हैं राजस्थान के नागौर जिले में, जहां महिला एवं बाल अधिकारिता विभाग के एक अधिकारी ने राजस्थानी भाषा में कोरोना कवच लिखा हैं.
जी हां, जिला प्रशासन की ओर से लगाई गई जागरूकता प्रदर्शनी में इस कोरोना कवच का भी बैनर लगाया गया. इसमें राजस्थानी भाषा में कोरोना से बचने के उपाय भी बताए गए हैं. इसके साथ ही कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए जो सावधानियां रखनी जरूरी है. उनका भी इस कवच में जिक्र है. कोरोना कवच लिखने वाले महिला एवं बाल अधिकारिता विभाग के उपनिदेशक दुर्ग सिंह उदावत बताते हैं कि कोरोना काल में उन्होंने नागौर मुख्यालय पर बने क्वारेंटाइन सेंटर में काम संभाला.
इसके अलावा कई जागरूकता कार्यक्रमों में भी कोरोना से बचने के तरीकों के बारे में आमजन को बताया. इसी के चलते उन्होंने इस विषय पर विचार किया कि अगर कोरोना से बचाव के लिए अपनाई जाने वाली सावधानियों को राजस्थानी भाषा में कविता के रूप में लिखकर आमजन तक पहुंचाया जाए तो यह ज्यादा असरकार साबित हो सकता हैं. इसके बाद उन्होंने कलम से राजस्थानी भाषा में कोरोना कवच लिख डाला. जुलाई महीने की पहली तारीख को टाउन हॉल में शुरू हुई जागरूकता प्रदर्शनी में भी उनके लिखे कोरोना कवच का बैनर लगाया गया. आमजन को उनकी खुद की भाषा में लिखा कोरोना कवच खूब पसंद भी आ रहा है.
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कोरोना कवच के दो खंड
दुर्ग सिंह उदावत बताते हैं कि इस कोरोना कवच के दो खंड हैं. एक खंड में साबुन से हाथ धोने, हाथों को सैनिटाइज करने, मास्क पहनकर बाहर निकलने और सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करने को लेकर बताया गया है. इसके साथ ही बाहर से आने पर स्क्रीनिंग करवाने, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने बचने, पारिवारिक कार्यक्रमों में कम से कम लोगों को बुलाने हाथ मिलाने से बचने, बाहर खाना खाने से बचने समेत पौष्टिक आहार लेने और नियमित योग करने का संदेश दिया गया है. उनका कहना है कि इन नियमों का कड़ाई से पालन करने पर कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने का खतरा बहुत कम हो जाता है. यह आदतें वह कवच हैं, जो कोरोना वायरस से फैलने वाली कोविड-19 महामारी से बचने में हमारी मदद करती हैं. इसीलिए उन्होंने इसे कोरोना कवच का नाम दिया है.
इस रचना के दूसरे भाग में उन्होंने बताया है कि कोरोना कवच अपनाने के बाद यदि हम कोई भी काम करते है तो इस घातक वायरस के संक्रमण का खतरा कम हो जाता है. इसलिए उन्होंने इसमें लिखा है कि कोरोना कवच अपनाने के बाद रोजी-रोटी कमाने के लिए बाहर जाने, शादी-समारोह या नौकरी पर जाने, पढ़ाई लिखाई के लिए जाने और खरीदारी करने के लिए बाजार जाने पर संक्रमण के खतरे से बच सकते हैं. फिलहाल, इस कोरोना कवच का एक बैनर जागरूकता प्रदर्शनी में लगाया गया.
उदावत ने बताया कि ऐसे अलग-अलग बैनर बनवाकर जिले के विभिन्न सरकारी कार्यालयों में लगवाने की भी योजना है. इसके अलावा पैम्फलेट भी छपवाए गए हैं जो गांव-ढाणियों से लेकर कस्बों और शहरों में सभी सार्वजनिक स्थानों पर लगवाए जाएंगे. उनका मानना है कि मातृभाषा में लिखा गया यह कोरोना कवच लोगों को इस घातक महामारी से बचाने के लिए अपनी अहम भूमिका निभाएगा. एक सवाल के जवाब में उपनिदेशक उदावत बताया कि वे शौकिया तौर पर हिंदी और राजस्थानी भाषा में रचनाएं लिखते हैं और नियमित रूप से डायरी भी लिखते हैं. उनका कहना था कि डायरी लिखते समय भी वे मूड के हिसाब से हिंदी या राजस्थानी भाषा में ही अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं.
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गौरतलब है कि राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए पिछले कई साल से संघर्ष कर रही समिति से भी दुर्ग सिंह उदावत सक्रिय रूप से जुड़े हैं. उनका कहना है कि राजस्थानी भाषा के रूप में हमारी मातृभाषा को संवैधानिक मान्यता अवश्य मिलनी चाहिए. उनका कहना है कि वे और उन जैसे कई लोग इस दिशा में संघर्ष कर लोगों को जागरूक कर रहे हैं. उम्मीद है कि उनका यह संघर्ष एक दिन जरूर रंग लाएगा.